tag:blogger.com,1999:blog-314610924509122169.post2695781723906553997..comments2023-11-27T02:57:26.642-08:00Comments on do patan ke bich: पीसते रहो किसान को / उपजाओ तो 7 रुपये बेचो तो 20 रुपयेरंजीत/ Ranjithttp://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-314610924509122169.post-42891214788014615352009-04-29T00:32:00.000-07:002009-04-29T00:32:00.000-07:00आदर्णीय सांकृत्यायन जी, टिप्पणी और सुझााव के लिए श...आदर्णीय सांकृत्यायन जी, टिप्पणी और सुझााव के लिए शुक्रिया। तुलनात्मक तौर पर विश्व व्यापी मंदी के भारत पर कम प्रभाव पड़ने के पीछे की एक वजह पर आपने कुछ सुझााव दिए हैं। मैं भी आपके इस विचार से सहमत हूं कि यह मंदी अत्यधिक मुनाफाखोरी का परिणाम है। यह तो स्थापित सच है और इससे इंकार कौन कर सकता है कि जब आम लोगों की क्रय शक्ति कमजोर पड़ने लगती है और चीजों के दाम बढ़ते या स्थिर होते चले जाते हैं तो बाजार का गणित नकारात्मक हो जाता है और मंदी आ जाती है।<br />मैंने आलेख में इस बात की जिक्र की है कि इस मंदी के प्रभाव को किसान या ग्रामीण अर्थ व्यवस्था ने कैसे न्यूट्रीलाइज किया है। बताने की आवश्कता नहीं है कि देश के सत्तर से ज्यादा फीसद लोग गांव में रहते हैं। इनमें से अधिकांश आज भी आधुनिक अर्थ व्यवस्था में सीधे-सीधे भागीदार नहीं हैं। मसलन शेयर मार्केट में ग्रामीणों का निवेश शायद नगण्य ही होगा। बैकिंग, टेलीकम्यूनिकेशन, आउटसोर्सिंग आधारित अर्थव्यवस्था में भी ग्रामीणों की भागेदारी न के बराबर होगी। और आप भी मानेंगे कि यही वे प्रक्षेत्र हैं जहां आर्थिक मंदी का सीधा प्रभाव पड़ा है। तो इसका मतलब यह हुआ कि देश की बड़ी ग्रामीण आबादी को इन प्रक्षेत्रों की गिरावट ने सीधा अपने आगोश में नहीं लिया। हालांकि सूक्ष्मतर प्रभाव उन पर भी पड़ेगा ही। मैंने यह कहने का प्रयास किया है कि मंदी के दिनों में भी देश की बड़ी ग्रामीण आबादी ने सरकार के लिए चिंता पैदा नहीं की है। <br />जहां तक मंदी से निपटने के लिए छोटे स्तर पर प्रयास के संदर्भ में सोचने की बात है, तो मुझे लगता है कि भारत के लिए आज भी पारंपरिक उद्यम प्रणाली बेहतर है। हालांकि मुझे अर्थशास्त्र की गूढ़ जानकारी नहीं है फिर भी मुझे लगता है कि हमें तीव्र विकास के सपने देखने बंद करने होंगे। लघु, कुटीर और लोक उद्यम इस देश में आज भी प्रासंगिक है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन में बड़ी कंपनियों को प्रवेश देना हमें बंद करना चाहिए। कृषि प्रक्षेत्र को विदेशी पूंजी निवेश या वृहत आर्थिक निवेश से अलग रखना ही हमारे लिए बेहतर होगा। हम कृषि उत्पादों के वैल्यू एडीशन और प्राइमरी प्रोसेसिंग में काम कर विदेशी अर्थ व्यवस्था के जाल से मुक्त हो सकते हैं। औद्योगिक देशों के आर्थिक मॉडलों को कॉपी करने की प्रवृत्ति हमें छोड़नी ही होगी। और सबसे बड़ी बात यह कि देश के मध्य वर्गों को तीव्र धन वृद्धि की आस छोड़कर, स्थायी पूंजी निवेश के बारे में सोचना होगा। हमें अपनी चिंता करनी चाहिए न की औद्योगिक देशों की। और अगर हम अनुपयोगी, विलासी, स्टेटस सिंबॉल की चीजों से परहेज करते हैं, तो हम अपना ही भला कर रहे हैं।<br />आपको बहुत-बहुत धन्यवाद <br />सप्रेम <br />रंजीत, रांचीरंजीत/ Ranjithttps://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-314610924509122169.post-41063693039875591732009-04-28T10:44:00.000-07:002009-04-28T10:44:00.000-07:00जो आपने कहा है वोह १००% सच है.
आपने इस देश को आइना...जो आपने कहा है वोह १००% सच है.<br />आपने इस देश को आइना दिखाने का प्रयास किया है.<br />हार्दिक धन्यवाद..<br /><br />सच में जय तो आपकी और हमारे किसानो की है!!<br /><br />जयंतजयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-314610924509122169.post-46003518233112645012009-04-28T06:11:00.000-07:002009-04-28T06:11:00.000-07:00बिलकुल सही बात आपने कही है और बड़े प्रभावशाली ढंग स...बिलकुल सही बात आपने कही है और बड़े प्रभावशाली ढंग से. एक सन्दर्भ में मेरा निवेदन है आपसे. आपने लिखा है : <br /><br />'अब आप कहेंगे कि इसका मंदी से क्या रिश्ता है। मंदी से इसका सीधा रिश्ता नहीं है, लेकिन मंदी के बाघ से बचे रहने के पीछे की सबसे बड़ी वजह यही है।' <br /><br />मेरी समझ से इस पर पुनर्विचार की ज़रूरत है. मन्दी की सबसे बड़ी वजह ही अत्यधिक मुनाफ़ाखोरी है. चीज़ों के दाम इतने ज़्यादा बढ़ा दिए गए कि ख़रीदना आम लोगों के बस की बात नहीं रह गई. बस ख़रीदने की प्रक्रिया बन्द हो गई और मन्दी आ गई. इस बारे में आपका क्या ख़याल है? <br />और हां! सोचिए कि इस दिशा में किया क्या जा सकता है. क्या इससे उबरने के लिए छोटे स्तर से कुछ किया जा सकता है?इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-314610924509122169.post-70827770728381344302009-04-28T05:23:00.000-07:002009-04-28T05:23:00.000-07:00रंजीत जी आपने किसानों की व्यथा को सही उकेरा है। उन...रंजीत जी आपने किसानों की व्यथा को सही उकेरा है। उनके पसीने की सही कीमत नही मिल पाती। दलाल कही भी हो मौज करता है। जब तक किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब दाम नही मिलेगा तब तक यह देश सही मायनों में तरक्की नही कर सकता है।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.com