बुधवार, 16 जून 2010

दो प्राचीन अनुभव

पुराने सामंतों ने अपने संतानों को सिखाया था
मारने और मारकर कोलर बचा लेने के गुर
कि शिकारी को
शिकार के साथ-साथ
हथियार-चयन की भी पूरी तमीज हो
कि सांड़ को आगे
और औरत को कमर के नीचे मारना चाहिए
बहुत बाद में कुछ शातिर किसानों ने अपने संतानों को बताया
कि "पड़रू'' की मौत के बाद
भैंस की उदासी को नहीं, उसके स्तन को देखना चाहिए
कि स्तन को सूखने से बचाने के लिए
सुबह-शाम भैंस को "चोंगरना'' चाहिए

ये दोनों मानव के अद्भुत अनुभव थे
जिन्हें कालांतर में सत्ता के शिकारियों ने अपने लिए आरक्षित करवा लिया
जब-जब लोग स्थिर होने लगते
साथ-साथ खाने-पीने, उठने-बैठने लगते
अपने बारे में सोचने लगते
वे समाज की कमर के नीचे वार कर देते
और ऐन चुनाव के मौके पर उसे "चोंगरने' लगते
कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर
क्योंकि प्राचीन अनुभवों ने उन्हें सिखाया था
कि "जाति और धर्म''
समाज के गुप्तांगों की तरह हैं
जिन्हें किसी न्यायालय में उघारा नहीं जा सकता
क्योंकि "जाति'', न्याय से ज्यादा जरूरी चीज है !
बिल्कुल औरतों की इज्जत की तरह !

(शब्दार्थः पड़रू- भैंस का नवजात बच्चा। चोंगरना- भैंस की योनि में हाथ डालकर दूध दूहने की एक देसी विधि)

3 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ब की रचना .. समाज की वर्तमान अतिति पर कमाल का व्यंग .. गहरा क्षोभ है आपके मान में समाज के प्रति .... उत्तम रचना......

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