शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

इस तरह भी बन जाता है एक देश

इधर
इनके सिर पे टूटा है आसमान
और पेट पर बंधे हैं पत्थर
जैसे ये आदमी नहीं
आदम जात का आखिरी मुहावरा हो
उधर
वे बनाते हैं तीन को तीस
और डेढ़ बीत के पेट में रखते हैं पूरे कायनात
जैसे वह आदमी नहीं
बरमूडा का अखाड़ा हो
और
इस तरह बन जाता है एक देश
जैसे वह देश नहीं
देश का कबाड़ा हो

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