गुरुवार, 10 सितंबर 2009

पूर्णिमा और अमावाश्या का फर्क

दादियां मिथकों में जीती थीं
इसलिए जब -तब बांचती रहती थीं
कि अमावाश्या के दिन जन्मे बच्चे
बड़े होकर चोर हो जाते हैं
यह बात
दादी की दादी की दादियों ने भी बांची थीं
इसलिए, गांव की प्रसवासन्न मांएं
उन दिनों अमावाश्या से डरती थीं
लेकिन
अचानक युग ने जैसे पलटी मार ली
अमावाश्या और पूर्णिमा का फर्क
जैसे सदा के लिए खत्म हो गया
जैसे खत्म हो गये गांधी, विनोबा और हरिशचंद्र
जैसे खत्म हो गये ईमान और सिद्धांत
और इस तरह
बच्चे जन्म लेने से पहले ही चोर हो गये
++
अब कोई मां
नहीं डरती अमावश्या से
उन्हें मालूम है अपने बच्चों का भविष्य
वे तोड़ चुकीं हैं, दादियों की बेड़ियां
शुक्र है खुदा का
कि आज दादियां जिंदा नहीं हैं
 
 
 

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