बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

घिनौनी हरकत पर उतरे नेपाली माओवादी

भारत का अंधविरोध नेपाली माओवादियों का जन्मजात शगल है। यह उनकी तंगदिल सोच और प्रदूषित रणनीति का हिस्सा है। इसलिए नेपाल के माओवादी नेता रह-रहकर भारत के खिलाफ विषवमन करते रहते हैं। वे कभी भारत को विस्तारवादी की संज्ञा देते हैं, तो कभी नेपाल की राजनीतिक-सामाजिक अस्थिरता के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। हालांकि उनकी हरकतों के कारण नेपाली जनमानस में भारत के प्रति शंकालु दृष्टि जरूर उत्पन्न हुई है, लेकिन सौभाग्यवश अभी भी नेपाल की आम जनता भारत को अपना दुश्मन नहीं मानती। हालांकि नफरत का जहर फैलाने के लिए माओवादी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है। चाहे वह भारत-नेपाल की मैत्री संधि हो या फिर कोसी परियोजना संधि, माओवादी हमेशा इन संधियों का मुखालफत करते हैं और नेपाली लोगों के मन में भारत के खिलाफ जहर भरते रहते हैं। वैसे माओवादियों के तमाम दुष्प्रचार के बावजूद आज भी बड़ी संख्या में नेपाली लोग भारत को अपना शुभचिंतक मानते हैं। ये बात माओवादियों को हजम नहीं हो रही । यही कारण है कि अब नेपाली माओवादी बौखला गये हैं और घिनौनी हरकतों पर उतर आये हैं। भारत और नेपाल के बीच वैमनस्यता फैलाने में लगे नेपाली माओवादी ने पिछले दिनों जो घिनौनी करतूत की, उसकी अपेक्षा किसी को नहीं थी। इस कारण बिहार के अररिया और किशनगंज जिले के सीमाई इलाके के सरहदी वाशिंदे सकते में हैं। पिछले दिनों नेपाली माओवादियों ने भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित गांवों में भारत के राष्ट्रीय ध्वज का जमकर अपमान किया। उन्होंने तिरंगे के जूते बनाकर सीमाई चेक पोस्टों पर लटका दिया। कुछ जगहों पर उन्होंने अश्लील और अपमानजक पोस्टर चिपकाये, जिनमें राष्ट्रध्वज का अपमान किया गया है। पोस्टरों में भारत के राष्ट्रीय ध्वज और अशोक स्तंभ के साथ भद्दे मजाक किये गये हैं। कहीं अशोक स्तंभ में जूते टांग दिए गये तो कहीं ध्वज को कुचलते दिखाया गया।
हालांकि भारत सरकार हमेशा नेपाली माओवादियों की घृणित चाल को नजरअंदाज करती रही है। लेकिन माओवादियों की इन घृणित हरकतों ने सीमाई भारतीय वाशिंदों के सब्र को तोड़ दिया। हजारों लोग नेपाली माओवादियों के विरोध में सड़क पर उतर आये। सीमावर्ती क्षेत्रों में लगातार तीन दिनों तक नेपाली माओवादियों के खिलाफ प्रदर्शन होते रहे। आक्रोशित लोगों ने जगह- जगह सीमा पर बैरियर और अवरोध लगाकर आवागमन को अवरुद्ध कर दिया माओवादियों के विरोध में नारे लगाये। कई जगहों पर माओवादी नेता प्रचंड का पुतला भी फूंका गया। जोगबनी (अररिया) में तो लोग उग्र हो गये और नेपाली प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग तक करने लगे।
हालांकि प्रशासन की मध्यस्ता के बाद लोगों का आक्रोश कम जरूर हुआ है, लेकिन सरहदी वाशिंदे के मन में नेपाली माओवादियों के खिलाफ स्थायी घृणा फैल गयी है। इसके कारण नेपाल के सरहदी वाशिंदों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि सीमाई क्षेत्र के हजारों नेपाली का गुजारा भारत से ही होता है। वे भारत में मजदूरी और अन्य रोजगार करने आते हैं। लेकिन तनाव के चलते पिछले कुछ दिनों से वे अपने घरों से नहीं निकल रहे हैं। इसके अलावा सीमाई इलाके के लोग अपने रिश्तेदारों को लेकर भी चिंतित हैं। उल्लेखनीय है कि सरहदी इलाकों के लोगों के बीच सदियों से बेटी-रोटी का संबंध है।
इस बीच भारत के दौरे पर आयी नेपाल की रक्षा मंत्री विद्या भंडारी ने आश्वासन दिया कि उनकी सरकार ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। लेकिन नेपाल के राजनीतिक हालात को देखकर लगता नहीं है कि नेपाल की सरकार माओवादियों की नापाक हरकतों पर अंकुश लगाने में सक्षम हैं। अगर ऐसा होता, तो राजधानी काठमांडू में भारत के खिलाफ आपत्तिजनक नारे नहीं लगाये जाते। चीन की नीतियों को जिस प्रकार वर्तमान नेपाल सरकार अमलीजामा पहना रही है, उससे लगता है कि वे भी पर्दा के पीछे से भारत विरोध की रणनीति को समर्थन दे रही है। हाल के दिनों में सीमावर्ती नेपाल में कई चीनी स्टडी सेंटरों खोले गये हैं। हालांकि कहने के लिए तो ये अध्ययन केंद्र हैं, लेकिन वास्तव में ये केंद्र भारत के खिलाफ चीन की जासूसी सेंटर का काम कर रहा है। जाहिर है, नेपाल सरकार भी इस बात से अनभिज्ञ नहीं है। इसके अलावा हाल के दिनों में चीन ने नेपाल के साथ कई रणनीतिक समझौते भी किए है। इनमें चीन-नेपाल के बीच सीधा सड़क मार्ग खोलना और नेपाली सैनिकों को चीन से प्रशिक्षण दिलवाना शामिल है। यह अलग बात है कि सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस और एमाले खुले तौर पर इस बात को स्वीकार नहीं करती।
दरअसल, नेपाली माओवादी पार्टी सत्ता से दूर होने के बाद पूरी तरह से विचलित हो गयी है। चूंकि नेपाल के मधेशियों को विश्वास में लिए बगैर कोई भी नेपाली पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती, इसलिए माओवादी चाहते हैं कि वह भारत विरोध के नाम पर गैर मधेशियों को गोलबंद कर, बहुमत का वोट-बैंक जुटा लें। इसके अलावा चीन से सैन्य व आर्थिक मदद पाने के लिए वे भारत का विरोध करते हैं। हालांकि अभी तक इसका परिणाम माओवादियों के खिलाफ ही गया है। भारत विरोधी प्रदर्शनों के कारण मधेशी इलाके में माओवादी पार्टियों का रहा-सहा जनाधार भी कमजोर पड़ते जा रहा है। कुछ महीने पहले ही उनके एक धाकड़ मधेशी नेता मात्रिका प्रसाद यादव ने पार्टी छोड़कर नयी पार्टी बना ली। कई अन्य माओवादी नेता मधेशी जनाधिकार फोरम में चले गये हैं। लेकिन इन सबके बावजूद नेपाली माओवादी सबक नहीं ले रहे हैं।

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दरअसल समस्या की मूल में कौन है इसको देखन चाहिए ......... भारत सरकार के पास कोई दूरगामी नीति नही है .... न सिर्फ़ नेपाल के पालकी किसी भी मुद्दे पर भारत सरकार २०-५० य १०० साल तक की दूरगामी नीति और उसके अनुसार चलने वाली सोच नही है ........... बहुत बड़ा दुर्भाग्य है ..........

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर मुद्दे पर चिंतनशील रचना
बहुत बहुत आभार

बेनामी ने कहा…

For CPNM, anti-india protest is only the part of their politics. Any may be thats why the general people are not joining them now.

They are pre-mature in politics.

But still, its the Truth that, India is interfering on our internal matter and land.

And one more information, in Nepal there is a lot of Pakistan friendship society, Russian cultural central, China study center, Nepal-European friendship groups, International study center for United States, UK chamber as well as Nepal India Friendship society.

We think everybody is free to create or disseminate any legal groups or organization. We are pretty much liberal ans we love this.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

Dear Milan brother
Being a sovereign country Nepal has every right to make friend and open any kind of socio-economic-academic institution/centre etc with any nation in their territory. one can not oppose this. But same is not true with Nepal based Chinese Centre. can U say me that why Chinese centres are opening along Indo-nepal border. Why they R not choosing Kathmandu,Nepalganj,Humla Bheletand in liew of Kakarbhita,Lahan,Beergang,Brtnagar?
if you still believe that it's ok then I have nothing to say.
Thanks
Ranjit

बेनामी ने कहा…

The most probably reason of this why is from Kakadbhitta to Kanchanpur and from Summit of Mount Everest to birth place of Gautam Buddha Lumbini everything everywhere belongs to Nepal. I don’t know why Indian people think as if northern side of Nepal-India border is also their sole property.

If objective and procedure of any institution is legal according to prevailing law of Nepal, everybody is welcomed to open any kind of organization anywhere in Kathmandu, Biratnagar, Humla, Birganj, Jajarkot or Nepalgunj and anywhere in Himalaya, Hills and Terai…. It does not matter.

But the shown and hidden objective of such organization must not aim to create hatred among society and they must not aim against any neighbor and friend nations.

We never want any Chinese intelligence bureau or Indian RAW or Pakistani ISI making fight and conspiracy in our land. We are neutral.

We are neither too close nor too far to India, China, Pakistan, US or any other nation. Likewise we have relationship with India we have same kind of relationship with china from century.

And one more thing,
It may not be part of our concern, but if I have to explain I don’t think china need the way of Nepal to access India. Indo-china border is much longer then Indo-Nepal border. They have easy access to India every time from everywhere. And they have proved it on 62.

The most important thing is the willingness to work together and belief in each other. I don’t know why Indian policy maker and media always try to create hatred and unbelief to their neighbor.
India’s bitter relationship with its entire neighbor from china, Pakistan to Nepal, Sri Lanka, Bangladesh is not only the co-incidence. The so called world largest democracy needs the larger heart in same ratio.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

@milan
Every lieterate people of this world know about the brotherhood and peace-loving Charactor of India. you and me have no right to discuss about the heart and charactor of India. As far as indian Border-issue is concerned it exist so far only because India believe in co-existance. if India had followed the path of "62"; at least 3 of it's neighbours have had out of station.
I am noticing that you are deliberately escaping from fact and and taking everything blindly. it's always need objectivity to understand Inter-state issue.
I had only discussed about NCPM ill-activity and you are seeming to justify this. any way it is your problem.