सोमवार, 6 सितंबर 2010

तो कांग्रेस का क्या होगा

झारखंड में एक और राजनीतिक नाटक की पटकथा लिखी जा रही है। सत्ता खोकर, सत्ता के लिए बेकरार झामुमो और भाजपा में गलबहिया हो रही है, जिसके हमजोली सुदेश महतो भी बन गये हैं। ये तीनों मिलकर बहुमत का आंकड़ा बनाने में लगे हुए हैं। वैसे फार्मूला तो पुराना है, लेकिन इसे फिर से बनाया गया है। जो लोग कहते हैं कि काठ की हांडी दोबारा नहीं चढ़ती, उन्हें मुहावरा बदल देना चाहिए। ये तीनों दल एक बार फिर काठ की हांडी में सत्ता की रसोई बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो गये हैं। अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ (जिसकी गुंजाइश झारखंड में हमेशा रहती है), तो आने वाले दिनों में देश भर की जनता झारखंड में एक और राजनीतिक प्रहसन देखेगी। यह 2005 के ऐतिहासिक प्रहसन से भी ज्यादा नाटकीय हो सकता है। इसकी संभावना इसलिए भी प्रबल है कि कांग्रेस किसी भी सूरत में राज्य में नयी सरकार बनते देखना नहीं चाहतीऔर न ही खुद सरकार बनाना चाहती है। ऐसी स्थिति में पूरी संभावना है कि राज्यपाल भाजपा-झामुमो-आजसू के दावे को नहीं मानेंगे। वे बहुमत के दावे पर तरह-तरह के सवालिया निशान लगायेंगे। चूंकि आज के दौर में राज्यपालों का स्वविवेक तो कुछ होता नहीं, इसलिए पूरी संभावना है कि झारखंड के राज्यपाल वही करेंगे जो उन्हें "दिल्ली' से कहा जायेगा।
प्राप्त सूचना के मुताबिक, कांग्रेस ने झारखंड की आगामी राजनीति का एक कैलेंडर तैयार कर लिया है। इस कैलेंडर में कहीं भी नयी सरकार के गठन का जिक्र नहीं है। कांग्रेस राष्ट्रपति शासन में कुछ लोकलुभावन काम कर सीधे चुनाव में जाना चाहती है। इसके लिए उसने बकायदा एक रोड मैप तक बना लिया है। अगर नयी सरकार बन गयी, तो कांग्रेस के सपने का क्या होगा ? उसके रोड मैप का क्या होगा ?
इसलिए लगता नहीं कि राज्यपाल किसी गैरकांग्रेसी गठजोड़ को सरकार बनाने की अनुमति देंगे। ऐसे में मामला राष्ट्रपति और न्यायपालिका तक पहुंच सकता है। जमकर जुत्तम-पैजार हो सकता है। सारे संकेत यही बताते हैं। अब आगे-आगे देखिये होता है क्या ?

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज तो सुनने में आ यहा है ... राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश करी गयी है ....
लगता है कुछ बदलाव आ रहा है ...