गुरुवार, 2 जून 2011

शुरू हो गयी कोशी की तलवारबाजी

       प्रकाशपुर में पूर्वी तटबंध को निगलने की कोशिश में कोशी

दहाये हुए देस का दर्द- 74 
लाख जतन कर लें, धरती को आसमान और गगन को धरा कर लें या फिर पैसे को पानी और पानी को पैसा बना दें; अब कोशी को  ज्यादा  समय  तक  नियंत्रण में रखना लगभग नामुमकिन है। अभी मानसून आया भी नहीं और कोशी ने तांडव नृत्य शुरू कर दिया है। सूचना है कि नेपाल में प्रकाशपुर (यह सप्तकोशी टापू के पास है, जहां से नदी पहाड़ से मैदान में दाखिल होती है) के पास कोशी ने स्परों को काटना चालू कर दिया है। पूर्वी तटबंध के डाउन स्ट्रीम में 25.57 से 26.40 आरडी के बीच नदी पिछले चार-पांच दिनों से भारी कटाव कर रही है। विरॉटनगर नेपाल से मिली सूचना के मुताबिक, प्रकाशपुर में नदी की धारा और पूर्वी तटबंध के बीच महज 25 मीटर की दूरी रह गयी है। स्पर को बचाने के लिए चार दिन पहले कुछ जाली-क्रेट आदि लगाये गये थे, जिन्हें नदी ने बहा-दहा दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि स्पर और तटबंध को बचाने के प्रयास लगातार विफल हो रहे हैं। यही हाल भीमनगर बराज के बाद अपस्ट्रीम में भी दिख रहा है, जहां नदी लगातार पूर्वी तटबंध की ओर खिसकती चली जा रही है। आश्चर्य की बात यह कि ऐसी स्थिति जून के पहले सप्ताह में है, जब नदी में पानी की मात्रा सामान्य से भी कम है। "कुसहा हादसा' से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि नदी ने मानसून से पहले ही तांडब शुरू कर दी हो। डरावना सवाल यह है कि जुलाई और अगस्त में जब नदी सबाब पर होगी, तो क्या होगा ? इस बात की कल्पना करके ही कलेजा मुंह में आ जाता है।

दरअसल, 2008 के कुसहा कटान के बाद कोशी का रूख पूरी तरह बदल गया है और तब से नदी संकेत दे रही है कि वह अब पूरब की ओर बहना चाहती है। कुसहा में तटबंध को मरम्मत करने के दौरान पायलट चैनल बनाकर इसे पूर्वी और पश्चिमी तटबंधों के मध्य में लाने की कोशिश की गयी थी, लेकिन एक ही साल में यह चैनल गाद से भरकर निष्क्रिय हो गया। वैकल्पिक पायलट चैनल का काम अभी तक पूरा नहीं हो सका है। अगर मानसून से पहले इसका निर्माण नहीं हुआ तो इस बार कोशी को रोकना लगभग नामुमकिन होगा।
पिछले दो साल में इस बात के तमाम संकेत मिले हैं कि भीमनगर बराज के उत्तर और पश्चिम की ओर डाउनस्ट्रीम में नदी का तल काफी ऊंचा हो गया है। इसके परिणामस्वरूप अब नदी की धारा प्रकाशपुर से ही पूरब की ओर बढ़ने की कोशिश कर रही है। गौरतलब है कि कुसहा का कटाव भी ऐसी ही परिस्थिति में हुआ था। इसके बावजूद सरकारें समझने के लिए तैयार नहीं हैं। सरकारें नदी को जबर्दस्ती तटबंधों के अंदर बहाना चाहती हैं। अचरज की बात यह है कि इसमें तीन सरकारें, मसलन बिहार सरकार, केंद्र सरकार और नेपाल सरकार शामिल है और तीनों की मति मारी चली गयी है। तो दुखड़ा किसे सुनाया जाये ? इसे सुनेगा कौन और समझेगा कौन ? अगर वे सुनते तो नदी में गाद की मात्रा इतनी असह्य स्थिति में नहीं पहुंच गयी होती। नहीं मालूम कि सरकारें क्या सोचती हैं, लेकिन इतना तय है कि आगामी चार महीने कोशी के पचास लाख लोगों के लिए कयामत के महीने होंगे, क्योंकि कोशी ने तलवार भांजना शुरू कर दिया है।

2 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

कोशी को बिहार का शोक कहा जाता ही है।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बाढ की सम्भावनायें सामने है
और नदियों के किनारे घर बने है
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था
डूबना जिसको हो अपने शौक से डूवे