शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

दहाये हुए देस का दर्द (भाग-1)

रंजीत
लगभग साठ वर्षों के बाद एक बार फिर सुपौल, अररिया, मधेपुरा , पुर्णिया और किशनगंज जिले के लोग कोशी मैया का कहर झेल रहे हैं। कोशी के कहर की जो कहानियां नवतुरिया लोग दादा-दादी और नाना-नानी की जुबानी सुनते थे उसे बिहार और नेपाल सरकार ने अपने संयुक्त लापरवाही से 17 अगस्त, 2008 को प्रत्यक्ष जमीन पर मंचित करके दिखा दिया। उसके बाद क्या होना था? कोशी तो तांडवी के नाम से प्रसिद्ध है ही; 60 वर्षों के बाद जब उसे एक बार फिर अपने पुराने अखाड़े मिले तो वह जमकर, कहर बरपाकर एवं बिजली गिराकर नाची। .. . लो और करो मुझे तटबंधों में कैद ! डायन कोशी की पदवी तो तुमलोगों ने मुझे एक सदी पूर्व ही दे दी थी अब देखो मेरा चुड़ैल रूप ! मेरे राह में जो आओगे, सबको दहा-बहा लूंगी। क्या सड़क , क्या नहर, क्या शहर, क्या गांव ; सब मेरे उफान में भसिया जाओगे। मैं बौराकर घुमूंगी और बौआती-ढहनाती हुई कितने को अपने साथ ले जाऊंगीइसका ठीक-ठीक मुझे भी कोई आइडिया नहीं । एक तो मुझे कैद करते हो दूजा डायन की उपाधि देते हो तीजा मेरे नाम पर करोड़ों रुपये का आवंटन कराकर मौज करते हो। मैं तो सिर्फ बदनाम हूं, तुम तो भ्रष्ट और धोखेबाज भी हो। मुझे कैद तो कर दिया, लेकिन अपने जंग खाये सीखचों की ओर कभी झांका तक नहीं। पिछले २० वर्षों में तुमलोगों ने एक कुदाली मिट्टी भी अपने तथाकथित ताकतवर तटबंधों पर डाली क्या ? कभी गौर से देखा कि जिस तटबंध के बल पर तुम मुझे कैद करने का गुमान पाल रहे हो वह मेड़ में तब्दील हो चुका है। मैंने तो कई बार कहा कि देखो अब मुझे और मत ललचाओ, तुम्हारे इस मेड़ सरीखे, जर्जर और जंग खाये तटबंधों को मैं कभी भी लांघ जाऊंगी। अगर मुझे नियंतित्र रखना है तो इन सीखचों को दुरूस्त कर लो, लेकिन तुम तो मेरी ताकत आकने पर आमदा थे। तो लो अब देखो मेरी ताकत और झेलो मेरा तांडव। ताक धिनादिन ता.. . गिरगिरररर, गरगररररर, ताक धिनादिन ता.. . भरररर, भर्रर्रररररर-भराकअअअ, भड़ाककक... गिरगिरगिर ...
हुआ भी यही। 16 अगस्त को जो बच्चे मैदान में बैट-बॉल खेल रहे थे वे 17 अगस्त की सुबह अपने मां-बाप के साथ भसियाये भैंस की तरह सुरक्षित स्थल तलाश रहे थे। सुरक्षित बचे लोग कोशकी देवी की किंवदंती सुनने-सुनाने लगे। दर्जनों बच्चे दूध के अभाव में स्थायी रूप से मूंह बा गये। बलुआ बाजार में 15 लोग एक साथ दहा गये और नरपतगंज के चैनपुर इलाके में 150 लोग एक ऊंचे स्थल पर पानी की मार खाकर सुस्ता रहे थे। लेकिन दबाड़ते-दहाड़ते वहां भी पहुंच गयी कोशिकी मैया और डेढ़ो सौ लोग पलक झपकते गायब ! ताक धिनादिन ता ... गिरगिररर, गरगरररर...
नेपाल के कुसहा में तटबंध तोड़कर निकली कोशी, तो पूरब की ओर नेपाले-नेपाल 40 किलोमीटर तक सरपट दौड़ती चली गयी। तब अचानक उसने फैसला किया कि अब और पूरब की ओर नहीं जाना, अब नेपाल में नहीं बहना ! फिर क्या था, मुड़ गयी दक्षिण की ओर । उसके बाद अररिया जिला के फारबिसगंज से लेकर सुपौल के राघोपुर तक के इलाके उसकी खूर-पेट में आ गये। अररिया जिले के घूरना,मुक्तापुर, भदेसर, बसमतिया, बलुआ, विशनपुर, वतनाहा इलाके को उसने एक ही रात में रौंद कर रख दिया। उसके बाद निशाने पर आये सुपौल और पुरनिया जिला के सैकड़ों गांव। प्रतापगंज, छातापुर प्रखंड में डूबा पानी फैल गया। बचके कहां जाओगे बच्चू ? गिरिधरपट्टी, ललितग्राम, मधुबनी, अरराहा, निर्मली, गोविंदपुर, श्रीपुर, बरमोतरा, जयनगरा, सूर्यापुर, तिलाथी , चुनी जैसे गांव के हजारों स्त्री-पुरुषों को उसने अपना जल- जलवा दिखाया। साठ बर्ष बाद नैहर लौटी हूं, तामझाम, धूम-धड़ाका तो होगा ही... गिरगिररर, ताक धिनादिन ता.. . तीसरे दिन उसके निशाने पर था- जिला मधेपुरा। मधेपुरा को पारकर ही वह शांत होती। इसलिए इस जिले के कुमारखंड, त्रिवेणीगंज, मूर्लीगंज, जदिया और उदाकिशुनगंज इलाके को नदी ने पूरी तरह से जलप्लावित कर लिया।
शुरू में एक-दो दिनों तक तो नेता-हाकिम राहत उपाय के बड़े-बड़े दावे करते रहे। उ अंग्रेजी नाम वाले विभाग के मंत्री को बहुत कुछ निर्देश भी दिया गया , आखिर उसी के चाचा (स्व. ललित नारायण मिश्र) ने तो कोशी को कैद करवाया था ... शायद इसलिए... लेकिन तीन दिनों के बाद उनके सारे दावे, बोलम-बच्नम , हवा-हवाई हो गये। सूबे के वजीरेआलम ने हेलीकॉप्टर उड़ा लिए, कहीं-कहीं एक दो जगह पैकट गिरा दिया गया और उसके बाद कवायद खत्म। घंटी बजावो और आरती ले लो । मानो वे मन ही मन कह रहे हों- कौन जाये उ डनियाही कोशिकी के फेर में पड़ने। सा... बात-बात पर मारने-डूबाने, बहाने और काट खाने की बात करने लगती है। जेकर करम ठीक होगा उ तो बचिए जायेगा। वैसे भी कौशिकी देवी के हाथों मरेगा तो सीधे बैकुंठ पहुंचेगा। वैसे भी मरम्मत के नाम पर हमलोगों को साइट विजिट करना ही है। अब तो टेंडर पास होने के बाद ही जायेंगे। तभिये कोशी के दर्शनो कर लेंगे और ? हें-हें-हे...! ऐसे भी कोशिकी उतनी निर्दयी नहीं है , जब भी उपद्रव करती है तो हमलोगों को बहुत कुछ देकर जाती है। दुहाई मैया कोशिकी.. .
(भाग- 2 में कोशी और उस क्षेत्र के भूगोल के बारे में पढ़े, जिसके द्वारा हम इस नदी की विचित्रता के वैज्ञानिक कारण जानने का प्रयास करेंगे )

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