सरकार ने तो बहुत पहले सरेंडर कर दिया। उनका संदेश साफ था- कि यह प्रलय है और हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। कोशी पीड़ित भी सरकार की मंशा जान चुके हैं। लेकिन उन्होंने समर्पण नहीं किया है। उनमें अब भी जिजीविषा जिंदा है। यह बांस पुल उसी का उदाहरण है। कोशी की नयी धारा को पार करने के लिए बिहार के सुपौल जिले के ग्रामीणों ने आपसी मदद से इस बांस के पुल का निर्माण किया है। इस पुल से प्रतिदिन सैकड़ों ग्रामीण आवाजाही कर रहे हैं और जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।बुधवार, 28 जनवरी 2009
जिजीविषा जिन्दावाद
दहाये हुए देस का दर्द-33
सरकार ने तो बहुत पहले सरेंडर कर दिया। उनका संदेश साफ था- कि यह प्रलय है और हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। कोशी पीड़ित भी सरकार की मंशा जान चुके हैं। लेकिन उन्होंने समर्पण नहीं किया है। उनमें अब भी जिजीविषा जिंदा है। यह बांस पुल उसी का उदाहरण है। कोशी की नयी धारा को पार करने के लिए बिहार के सुपौल जिले के ग्रामीणों ने आपसी मदद से इस बांस के पुल का निर्माण किया है। इस पुल से प्रतिदिन सैकड़ों ग्रामीण आवाजाही कर रहे हैं और जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
सरकार ने तो बहुत पहले सरेंडर कर दिया। उनका संदेश साफ था- कि यह प्रलय है और हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। कोशी पीड़ित भी सरकार की मंशा जान चुके हैं। लेकिन उन्होंने समर्पण नहीं किया है। उनमें अब भी जिजीविषा जिंदा है। यह बांस पुल उसी का उदाहरण है। कोशी की नयी धारा को पार करने के लिए बिहार के सुपौल जिले के ग्रामीणों ने आपसी मदद से इस बांस के पुल का निर्माण किया है। इस पुल से प्रतिदिन सैकड़ों ग्रामीण आवाजाही कर रहे हैं और जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
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1 टिप्पणी:
ऐसे लोगों को हमारा सलाम।
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