शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

बीत गयी मार्च, नहीं बंधा कुसहा

क्षतिग्रस्त कुसहा तटबंध (१८ सितम्वर की तस्वीर )

दहाये हुए देस का दर्द-42
शायद आपको याद होगा कि तीन महीने पहले बिहार और केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि कोशी नदी के क्षतिग्रस्त कुसहा तटबंध को बांध दिया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अभी तक कुसहा तटबंध के क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत पूरी नहीं हुई है। दो महीने पहले सरकार ने जिस तटबंध के काम को पूरा करने का दावा किया था, वह कॉफर तटबंध था। कॉफर तटबंध का निर्माण नदी को अपनी पुरानी धारा में लाने के लिए किया गया था। कुसहा तटबंध की मरम्मत इसके बाद ही शुरू हो सका। कॉफर तटबंध तो एक तात्तकालिक और कच्चा अवरोध है, जो मुख्य तटबंध के काम को शुरू करने के लिए बनाया गया है। लेकिन सरकार ने इसके पूरे होते ही डंके की चोट पर घोषणा कर दी कि कुसहा के तटबंध को बांध दिया गया है। पता नहीं ऐसी बात क्यों की गयी, मैं आज तक नहीं समझ सका हूं।
दरअसल, कुसहा में आज भी मुख्य तटबंध के निर्माण का कार्य काफी सुस्त गति से चल रहा है। कई बार इसकी समय-सीमा बढ़ायी जा चुकी है। बार- बार समय-सीमा बढ़ाये जाने के बाद अंततः सरकार ने कहा था कि मार्च-2009 तक इसे पूरा कर लिया जायेगा। लेकिन अब अप्रैल माह बीतने वाला है, परन्तु जल्द कार्य पूरे होने के कोई संकेत दूर-दूर दिखाई नहीं दे रहे। नेपाल के सुनसरी जिले (जहां कुसहा पड़ता है) के जिलाधिकारी हरिकृष्ण उपाध्याय ने मुझे बताया कि जिस रफ्तार से काम चल रहा है, उसमें तटबंध की मरम्मत निकट भविष्य में पूरी होते नहीं दिखती। यह पूछने पर कि सुस्ती की वजह क्या है, उपाध्याय ने कहा कि इसकी सही जानकारी उन्हें भी नहीं है। वैसे अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों अगस्त की प्रलयंकारी बाढ़ से प्रभावित नेपाली नागरिक सुनसरी जिले में लगातार आंदोलन कर रहे हैं, जिसके कारण तटबंध मरम्मत के काम प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा समय-समय पर नेपाल के उग्रवादी संगठन भी तरह-तरह की मांगों को लेकर कार्य में बाधा उत्पन्न करते रहते हैं।
यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि बरसात से पहले हर हाल में तटबंध को पूरा करना अनिवार्य है। बरसात शुरू होने के बाद किसी भी परिस्थिति में तटबंध के कटे हुए हिस्से को दुरूस्त नहीं किया जा सकता। अगर बरसात से पहले इसे ठीक नहीं किया गया, तो अभी तक के सारे प्रयास और संसाधन तो पानी में जायेंगे ही साथ ही साथ एक बार फिर पूरा कोशी क्षेत्र प्रलय के आगोश में चला जायेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारें इस बात को समझेंगी ।

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सरकार को गंभीरता से इसपर ध्‍यान देना चाहिए।

Satyendra PS ने कहा…

यह वाकई गंभीर मसला है। नीतीश सरकार ने कई बार इसके ढिंढोरे पीटे हैं कि तटबंध को फिर से पुख्ता कर दिया गया है और मीडिया में यह बात दब गई, आपकी खबर से तो यही लगता है। शर्मनाक है यह सब कुछ। तटबंध टूटने पर मैं भी वहां गया था, लेकिन उसके बाद जाकर देखने का मौका ही नहीं मिला। केवल लोगों से बातचीत के आधार पर ही जानकारी मिली। संभवतया मुझे बताने वाले लोग भी सहरसा या सुपौल से आगे नहीं बढ़े, और कुसहा तटबंध वाकई बहुत दूर है। उस दौरान तो रास्ते भी बहुत खराब थे, जब बाढ़ आई थी अब पता नहीं क्या हाल होगा। सुपौल पहुंचने में ही मेरी गाड़ी का पहिया तीन बार पंचर हुआ था और मुझे याद है कि ड्राइबर बहुत चिढ़ गया था। कोई टैक्सी वाला वहां जाने को तैयार नहीं होता था। स्थानीय लोग भी सही जानकारी नहीं दे रहे हैं, ऐसा लगता है।

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

सत्येंद्र जी आपका धन्यवाद। दरअसल आप भी मेरे जैसे ही हैरत में है। एक कहावत सुने हैं न कि , आज के नेता वहां भी पुल बनाने का दावा करते हैं जहां पानी का एक बूंद भी जमा नहीं होता। कुसहा प्रकरण में भी सरकारों के ऐसे ही रुख हैं। सच तो यह है कि आज भी बिहार और देश के शीर्ष नेता कोशी को समझने में असफल हैं, उन्हें भ्रष्ट अधिकारी जो पढ़ा देते हैं, वे उसी को अंतिम सच मानकर अपनी जुबान का दरवाजा खोल देते हैं।
रही बात कोशी और कुसहा की जानकारी की तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि " दो पाटन के बीच' कोशी के निमित ही है। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं कोशी और ग्रामीणों के दर्द को दुनिया के समक्ष लाने की कोशिश कर रहा हूं। आप नवीनतम जानकारी के लिए मुझसे निसंकोच संपर्क कर सकते हैं। मैं मूल रूप से कोशी क्षेत्र का ही हूं, इसलिए भोक्ता की भूमिका में हूं।