बुधवार, 29 सितंबर 2010

फणीश्वरनाथ रेणु के पुत्र हुए भाजपा उम्मीदवार

बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक बड़ी तीर मारी है। उसने कोशी अंचल की फारबिसगंज विधानसभा सीट से कालजयी कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के बड़े बेटे पदमपराग राय बेणु को अपना उम्मीदवार बनाया है। सवाल उठ सकता है कि इसमें बड़ी बात क्या है ? लेकिन यह बड़ी बात है। यह कई कारणों से बहुत बड़ी बात है। पहला कारण तो यह कि रेणु जीवनपर्यंत समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे। रेणु ने अपने जीवन काल में कभी भी कांग्रेस और भाजपा (तब जनसंघ) का समर्थन नहीं किया। वे इन दोनों पार्टी के कट्टर आलोचक रहे। यही कारण है कि रेणु के पुत्र का भाजपा में जाना, आश्चर्य में डालता है। उल्लेखनीय है कि रेणु खुद सक्रिय राजनीति में भाग लेने के समर्थक थे और उनका मानना था कि सियासत में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुए बगैर समाज को बदला नहीं जा सकता। उन्होंने फारबिसगंज के बगल में स्थित बथनाहा विधानसभा सीट पर सोश्लिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे जीत हासिल नहीं कर सके। कई लोगों को यह बात अजीब लग रही है, लेकिन पदमपराग की नजर में भाजपा सबसे बेहतर पार्टी है। उनका कहना है कि देश की वर्तमान चुनौतियों से निपटने मेंभाजपा से बेहतर पार्टी आज कोई नहींहै
दूसरी ओर फारबिसगंज के स्थानीय लोग भाजपा के इस फैसले से हैरत में है। पढ़े-लिखे समझदार लोगों को भी विश्वास नहीं हो रहा है कि आज के दौर में कोई पार्टी जातीय समीकरण को नजरअंदाज कर उम्मीदवार का चयन कर सकती है। गौरतलब है कि फारबिसगंज के जातीय समीकरण में पदमपराग कहीं फिट नहीं बैठते। लेकिन भाजपा ने यहां अपने सीटिंग विधायक लक्ष्मीनारायण मेहता और उनकी जाति को दरकिनार करके बेणु को टिकट दिया है। जबकि पूर्व भाजपायी विधायक मायानंद ठाकुर ने लोजपा का दामन थाम लिया है। फिर भी भाजपा को उम्मीद है कि बेणु को अपने पिता की प्रतिष्ठा और लोकप्रियता का भरपूर फायदा मिलेगा। मैंने जब इस मुद्दे पर फारबिसगंज के अपने कुछ मित्रों से बात की, तो उनका कहना था कि बेणु को पढ़े-लिखे लोग रेणु के पुत्र के रूप में जानते हैं और मानते हैं कि उसकी जीत रेणु जी को सम्मानित करने जैसी होगी। इसलिए पढ़े-लिखे लोग तमाम लाइन्स को छोड़कर उन्हें मत देंगे। लेकिन यह फॉर्मूला अल्पसंख्यक मतदाताओं पर लागू नहीं होगा क्योंकि इस इलाके में धार्मिक ध्रुवीकरण साल-दर-साल बढ़ता ही गया है। बांग्लादेश से होने वाले घुसपैठ के कारण इलाके की जनसांख्यिकी तेजी से बदल रही है, जो कई तरह के विवादों को जन्म दे रही है और इलाके के पारंपरिकसांप्रदायिक सौहार्द्र को सांप्रदायिक धु्रवीकरण में बदल रही है।
जो भी हो, अपने गांव औराही हिंगना के मुखिया पदमपराग के लिए विधानसभा चुनाव लड़ना आसान नहीं है। वे धनबल और जातिबल दोनों में कमजोर हैं। लेकिन इसमें कोई दोमत नहीं कि बेणु की उम्मीदवारी को लोग रेणु के सम्मान से जोड़कर देख रहे हैं और उस इलाके में भाजपा के इस कदम की खूब प्रशंसा हो रही है।

3 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

"भाजपा ने यहां अपने सीटिंग विधायक लक्ष्मी नारायण मेहता और उनकी जाति को दरकिनार करके बेणु को टिकट दिया है।"
चलिए, कहीं से सही, एक अच्छी शुरुआत तो हुई!!

उमा ने कहा…

उमा
भाई रंजीत, इसमें अचरज की कोई बात नहीं। आखिर पद्मपराग रेणु की विरासत से कोई वैसा सरोकार तो नहीं रखा था। क्योंकि एकबारगी ऐसा पतन नहीं होता। यह ठीक है कि विचारों के पतन का मारक दौर चल रहा है। इसे उस तरह नहीं देखा जा सकता है। हां, एक बात जरूर है, जिन्हें रेणु की चिंता थी, उन्होंने पद्मपराग को क्यों नहीं देखा-भाला, संभाला। आखिर यारबाश रेणु एकबारगी इतने एकाकी कर दिए गए क्या ? सवाल यह है कि यदि वे राजनीति में जाने के इच्छुक ही थे और जाते भी तो राजद-लोजपा में जाने का सवाल ही नहीं था, तो जदयू में भी जाते तो रहना तो था ही भाजपा की सोहबत में। और नीतीश रेणु की हैसियत से वाकिफ होते तो निश्चय ही वे भुनाते।

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

@ उमा भैया
मैंने इस घटना को एक सामाजिक घटना मानकर खबर बनाने की कोशिश की है। पहले वाक्य पर ध्यान दें। यह क्यों और कैसे हुआ, इस बात के मर्म में उतरने और उसे टटोलने के लिए जिम्मेदार-चिंतन की आवश्यकता है। फिलहाल यह जिम्मेदारी आप जैसे मर्मज्ञों पर छोड़ रहा हूं। हां, यह काम इस छोटी-सी टिप्पणी से पूरा नहीं होगा। इस बात की जड़ में जाने की आवश्यकता है कि क्या हम ऐसे दौर में पहुंच गये हैं जहां हर कोई हर चीज को कैस करा लेने के लिए आतुर क्यों है ? नीतीश और भाजपा से पहले बेणुओं को भी समझना हमारा दायित्व बनता है।
सधन्यवाद
आपका-रंजीत