गुरुवार, 24 मार्च 2011

पिता नहीं पतियायेंगे

पिता नहीं पतियायेंगे
दादा पीठ पर खडांव तोड़ देंगे, शायद
दादा को हक है
जिसे पिता ने निभाया है
गोकि मिर्जे वाले दादा पुस्तैनी पंच थे, गांव के
विनोबा से होती थी उनकी चिट्ठी-पतरी
इसलिए पिता
अंग्रेजों के विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़कर
ठेठ मैथिली में जीये
जंगल में रहे, जनतंत्र के लिए जीये

पिता, कैसे पतियायेंगे
कि मैं 2011 के सड़ांध में हूं
और 1947 में जो एक नदी फूटी थी दिल्ली से
वह आज बिल्ली से जा मिली है

मुश्किल है
पिता को समझाना
सत्रह साल 'शहर' में रहकर
ईमानदार को नमस्कार करना
गुणी-गरीब को भी आदर देना
और भ्रष्ट को दुत्कार कर भगा देना
(जो पिता के लिए बहुत आसान था)
पिता, हमें माफ करना

1 टिप्पणी:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वाकई हम नहीं कर सकते।भृष्ट को जानते हुये भी िकवह भृष्ट है मगर सम्माननीय ,प्रतिष्ठित है,बजनदार है तो उसका स्वागत करना पडता है समय ही एसा है । पुराने लोग खुददार होते थे भृष्ट को डांट दिया सोचते भी नहीं थे कि यह हमारा कुछ विगाड देगा भैया आज कल तो लोग कहने और लिखने में भी मनोबल के धनी नहीं रहे

वो लिखो बस जो भी अमीरेशहर कहे-
जो कहते हैं दर्द के मारे, मत लिखो
11 कर सडांध और 47 की नदी वाली बात अच्छी लगी ।