पिता नहीं पतियायेंगे
दादा पीठ पर खडांव तोड़ देंगे, शायद
दादा को हक है
जिसे पिता ने निभाया है
गोकि मिर्जे वाले दादा पुस्तैनी पंच थे, गांव के
विनोबा से होती थी उनकी चिट्ठी-पतरी
इसलिए पिता
अंग्रेजों के विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़कर
ठेठ मैथिली में जीये
जंगल में रहे, जनतंत्र के लिए जीये
पिता, कैसे पतियायेंगे
कि मैं 2011 के सड़ांध में हूं
और 1947 में जो एक नदी फूटी थी दिल्ली से
वह आज बिल्ली से जा मिली है
मुश्किल है
पिता को समझाना
सत्रह साल 'शहर' में रहकर
ईमानदार को नमस्कार करना
गुणी-गरीब को भी आदर देना
और भ्रष्ट को दुत्कार कर भगा देना
(जो पिता के लिए बहुत आसान था)
पिता, हमें माफ करना
दादा पीठ पर खडांव तोड़ देंगे, शायद
दादा को हक है
जिसे पिता ने निभाया है
गोकि मिर्जे वाले दादा पुस्तैनी पंच थे, गांव के
विनोबा से होती थी उनकी चिट्ठी-पतरी
इसलिए पिता
अंग्रेजों के विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़कर
ठेठ मैथिली में जीये
जंगल में रहे, जनतंत्र के लिए जीये
पिता, कैसे पतियायेंगे
कि मैं 2011 के सड़ांध में हूं
और 1947 में जो एक नदी फूटी थी दिल्ली से
वह आज बिल्ली से जा मिली है
मुश्किल है
पिता को समझाना
सत्रह साल 'शहर' में रहकर
ईमानदार को नमस्कार करना
गुणी-गरीब को भी आदर देना
और भ्रष्ट को दुत्कार कर भगा देना
(जो पिता के लिए बहुत आसान था)
पिता, हमें माफ करना