शनिवार, 16 जुलाई 2011

इस ओम में बहुत प्रकाश है

                             ग्रामीण प्रतिभा 
          आइआइटी प्रतियोगियों के साथ कक्षा में ओम प्रकाश

आइंस्टीन ने सापेक्षवाद का सिद्धांत बहुत बाद में प्रतिपादित किया, बिहारी गणितज्ञ नागार्जुन ने इसका उल्लेख  लगभग 22 सौ साल पहले किया था। यह बात और है कि आज दुनिया आइंस्टीन को सापेक्षवाद सिद्धांत का प्रतिपादक मानती हैं। वैसे बिहारी मिट्टी के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की उपलब्धि पर किसी को संदेह नहीं। आर्यभट्ट ने बिना किसी उन्नत उपकरण के पृथ्वी का व्यास पता कर लिया था। वह भी बिल्कुल सटीक। दरअसल, बिहार की जमीन गणित की विशिष्ट प्रतिभा के लिए हमेशा उर्वरा रही है। आज भी बिहार के गांव में पढ़ाई का दूसरा नाम है- गणित की दक्षता। गणित में बढ़िया छात्र को पूरा गांव नाम से जानता है। यह सिलसिला प्राचीन काल से लेकर अब तक अनवरत जारी है।
इसका हालिया उदाहरण है औरंगाबाद जिले का 11 वर्षीय छात्र ओम प्रकाश। ओमप्रकाश अभी पांचवीं कक्षा का छात्र है और देश की सबसे बड़ी दिमागी प्रतियोगिता- आइआइटी के स्तर के सवालों को बखूबी हल कर ले रहा है। विलक्षण प्रतिभा के स्वामी ओम प्रकाश इन दिनों पटना के कुम्हरार में रह कर आइआइटी की तैयारी कर रहा है। शिक्षक उसकी प्रतिभा के कायल हैं। स्थानीय बाजार समिति स्थित परमार क्लासेज के टारगेट बैच के इस छात्र को अपनी उम्र से कहीं अधिक उम्र के बच्चों के साथ पढ़ाई करता देख प्रेक्षक को हैरानी होती है। लेकिन जब ओम ब्लैकबोर्ड पर पूरे आत्मविश्वास के साथ गणित-भौतिक विज्ञान के कठिन सवालों को सुलझाने लगता है, तो लोगों को विश्वास हो जाता है कि यह छात्र भूलवश कक्षा में नहीं आया है।
सबसे बड़ी बात यह कि ओम प्रकाश किसी कान्वेंट स्कूल से नहीं आता है। उसने गांव के सरकारी स्कूल से ककहरा सीखा। साधारण कृषक परिवार का यह लड़का असाधारण प्रतिभा के कारण तुरंत ही चर्चा में आ गया।  औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड के चिल्हकी गांव के निवासी ओमप्रकाश के पिता जगदीश पाल भेड़ पालते हैं। मां भेड़ के बाल से धागे तैयार करती हैं। वह अपने चचेरे भाई अजीत और रंजीत के साथ आइआइटी एट्रेंस की तैयारी करने पटना आया है। 

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

फूस के घर : बनने और बहने की अकथ कहानी

दहाये हुए देस का दर्द- 77 
पानी में फंसा सुपौल जिला का परहावा गांवः  कोशी तटबंधों के बीच फूस के ही घर होते हैं। हर साल बनते हैं, हर साल बहते हैं। पानी के प्रवेश के साथ लोगों ने गांव खाली कर दिया है। घरें तन्हा खड़ें हैं। बरसात के बाद लोग लौंटेंगे।  तब तक छतें नदी में विलीन हो जायेंगी। कुछ खूंटे खड़े रहेंगे। लौटे हुए लोग इन खूंटों से लिपटकर पहले रोयेंगे फिर गुफ्तगू करेंगे। धीरे-धीरे उन खूंटों पर फिर से नयी छत बिछ जायेगी। हां,यह बाततटबंधों के बीच ही रहेगी। पचास साल से यही होता रहा है।