सोमवार, 31 जनवरी 2011

ओह, आखिरी उघन भी टूट गया

दहाये हुए देस का दर्द -70
एक के बाद एक दो मातृशोक ! पहले लतिका और अब शशिकांता। दोनों चली गयीं। अगर रेणु का रचना-संसार अच्छिंजल (कुएं का पवित्र जल) है, तो लतिका हमारे लिए एक उघन (कुआं से पानी निकालने वाली रस्सी, जिसे कोशी अंचल में उघन कहा जाता है) थी। लेकिन वे पिछले दिनों हमसे सदा के लिए जुदा हो गयीं। लतिका जी के जाने से एक विरॉट शून्य पैदा हो गया और मेरे जैसे लोगों की बहुत-सारी जिज्ञाशाएं भी सदा के लिए दफ्न हो गयीं। लतिका जी, रेणु के लेखन की गवाह ही नहीं, बल्कि रचना-प्रक्रिया की हिस्सा भी थी। रेणु जी की लेखन-प्रेरणा के मर्म तक जाने के लिए लतिका जी सबसे बड़ा उघन थी। यह हमारी नाबालकी है कि हम कभी-कभी माटी की देह पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर लेते हैं। देह को जाना ही है, चाहे वह रेणु की हो या फिर लतिका की । लो दोनों चली गयीं।
पर यह क्या ? शशिकांता जी भी नहीं रहीं!
अभी लतिकाशोक से कोशी के लोग उबरे भी नहीं थे कि उन्हें दोहरा आघात लगा है। खबर मिली है कि परसों कोशी के दूसरे सबसे बड़े कलमकार राजकमल चौधरी की धर्मपत्नी शशिकांता जी का भी देहावसान हो गया । शनिवार की सुबह गाजियाबाद में शशिकांता जी ने हम सबको अलविदा कह दिया।
लतिका जी और शशिकांता जी की मौत अस्वाभाविक नहीं है। दोनों भरा-पूरा परिवार छोड़ गयी है। लतिका ने 86 वर्ष तक देह का धर्म निभाया, जबकि शशिकांता जी 80 की हो चली थी। बावजूद इसके मन इन खबरों को स्वीकार करना नहीं चाहता। मन कहता है, अभी वे नहीं मर सकतीं। उन्हें अभी हमारे बहुत-सारे सवालों का जवाब देना है। आखिर लतिका ही तो बतायेगी कि रेणु जी को "डॉक्टर प्रशांत' कहां मिले थे। उन्होंने परती की परिकथा में "जीतेंद्र' को कैसे खोजा था। उन्हें बताना था, कई सारी आदिम रात्रि की महक। और "मछली मरी हुई' के बारे में शशिकांता से बेहतर कौन बता सकता था, हमें ? कोई नहीं ? अब इन सवालों के जवाब कभी नहीं मिलेंगे। इन जवाबों तक पहुंचने का आखिरी रास्ता शून्य में गुम हो गया है। संतोष यह कि इन दोनों माताओं ने अपने-अपने पति के साथ मिलकर कोशी की पीड़ा को हरने में हमेशा उनका साथ दिया। लतिका नहीं होती, तो "तीसरी कसम' भी न होती और शशिकांता के बिना "राज का कमल' कभी नहीं खिलता। कोशी की इन महान मांओं को शत-शत प्रणाम। नश्वरते कौन ?

रविवार, 30 जनवरी 2011

गवाह

हां !
मैं गवाह हूं
मेरे ही युग में
भ्रष्टाचार भारत से बड़ा हो गया है

हां !!
मैं गवाह हूं
मेरे सामने ही हुआ है
आदमी का आत्म-पलायन
और
मुद्दों का मास मास माइग्रेशन

हां !!!
मैं इस बात का भी गवाह हूं
कि मैंने अभी-अभी एक झूठी गवाही दी है

हां !!!!
मै इस बात का भी गवाह हूं
कि मैं आदमी नहीं
आदमी और अंधकार के बीच का कुछ हूं

बुधवार, 19 जनवरी 2011

शेष बस अवशेष


कक्ष के अंदर
कुछ पक्ष में थे, कुछ विपक्ष में
शेष, बस अवशेष की तरह थे

कक्ष के बाहर
न पक्ष था, न विपक्ष
चोट और कचोट के घाव ही थे
नमक और तेल भी दवा के भाव थे
पक्ष मार रहा था
विपक्ष मरवा रहा था
हत्या
आत्महत्या कहलाने लगा था
उनको नंगई की आदत पड़ गयी थी
और जवाना भी बेशर्म हो चला था

इधर
गांव -जयवार में
शहर-बाजार में
समाज में, मिजाज में
देश और भीड़ का फर्क मिट रहा था
संविधान के सारे मुहावरे
लगभग चीख रहे थे
उधर
भीड़ से भगाया हुआ एक कवि
हाशिये पर हांफ रहा था
लगभग भांट की तरह
शायद बांच रहा था
" गर महंगाई से मारेंगे
तो बक्शीश क्या दोगे जी ?''

सोमवार, 10 जनवरी 2011

मेरी बेटी ने एक राक्षस का वध किया है- कुमुद

सीबीआइ रूपम पाठक के आरोपों की जांच नहीं करेगी। राज्य सरकार ने सीबीआइ से कहा है कि वह केसरी हत्याकांड की जांच करें। इसका क्या अर्थ हुआ? क्या बिना जांच के ही मान लिया गया है कि रूपम पाठक के आरोप गलत थे। तो फिर केसरी हत्याकांड की जांच की क्या आवश्यकता? रूपम ने तो दर्जनों लोगों के सामने विधायक की हत्या की थी और वह खुद अपना गुनाह कबूल भी रही है। इस मामले में जो बात लोग जानना चाहते हैं, वह है रूपम के आरोप की असलियत कि आखिर क्या मजबूरी थी कि एक शिक्षिका को हत्यारन बनना पड़ा। लेकिन सरकार इस सवाल पर मिट्टी डालना चाहती है। यानी प्रपंच का प्रहसन अभी जारी है। शायद यही बात रूपम की मां कुमुद मिश्र भी कहना चाहती है। एक बेटी की पीड़ा को उसकी मां से ज्यादा कोई दूसरा महसूस नहीं कर सकता है ? कुमुद मिश्रा कुछ सवाल कर रही है, सरकार से भी और समाज से भी ? लेकिन शायद हमारे पास उनके सवालों के जवाब नहीं हैं या फिर समाज गूंगा-अंधा हो गया है। कुमुद मिश्र की जुबानी ही सुनिये एक मां का दर्द। -रंजीत

'' देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध किया तो वे पूज्य हैं। हम उन्हें देवी कहते हैं। मेरी बेटी ने भी मर्यादा की रक्षा के लिए एक राक्षस का वध किया है, फिर उसे जेल में क्यों रखा गया है ? रूपम ताकतवर लोगों के शोषण की शिकार हर महिला के लिए आदर्श है। हमारी बेटी को इस हालात में पहुंचाने वाला विपिन खुलेआम घूम रहा है। यदि विपिन मिल जाये तो मैं उसका खून पी जाऊंगी। जिस समय रूपम ने यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था, मैं भी उसके साथ थी। जिस व्यक्ति ने रूपम का एफआइआर लिखा था, वही उसकी कॉपी लेकर उसकी आंखों के सामने विधायक के पास गया था। उसी समय उसने कहा था कि पूरा सिस्टम बिका हुआ है, कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा। कुमुद आगे कहती है मैं अपनी बेटी को लेने आइ हूं और मुझे उम्मीद है कि पूर्णिया के लोग हमारा साथ जरूर देंगे। रूपम को जब तक पटना इलाज के लिए नहीं भेजा जाता, तब-तक मैं यहां से नहीं हिलूंगी। ''

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

IOC Set Up 44,000-Ton LPG Plant at Muzaffarpur

Researched by Industrial Info Resources (Delhi, India)--Indian Oil Corporation Limited (BSE:530965) (IOC) (New Delhi) plans to expand its liquefied petroleum gas (LPG) bottling capacity under its trade name Indane. The company is setting up a plant in Muzaffarpur and another in Baroda.
The demand for packed LPG in Bihar is being met by two Indane LPG bottling plants in Patna and Barauni, which have a combined capacity of 132,000 tons per year. The company fulfills the state's total LPG requirement of 196,000 tons per year, meeting the shortfall of 64,000 tons per year from neighboring states.
The proposed bottling plant in Muzaffarpur will ensure uninterrupted LPG supplies to North Bihar, as this area is vulnerable to supply disruptions due to periodic floods and road blocks. The plant will benefit the people in Bihar and Jharkhand, and signals more growth for these states and IOC.
"The Indane bottling plant at Muzaffarpur will be built at an estimated cost of $8.2 million and will be commissioned on March 21, 2011," said G.C. Daga, the director of marketing for IOC. "Built over 13.3 acres of land, the plant has a capacity of 44,000 tons per year and will be equipped with modern bays, mounded storage, cylinder-shed facilities for installing electronic carousels, and other allied facilities.'' Daga added that Indian Oil Corporation Limited is seeking alliances to enhance non-fuel business at its retail points by converting them into one-stop convenience points. There is an ensuing plan to introduce items of daily needs for the customers through Indane networks for distributors and petrol/diesel stations.
IOCL supplies nearly half of India's petroleum consumption, delivering petroleum products to millions of people every day through the countrywide network of about 35,600 sales points (55% of the industry). The company has 140 bulk storage terminals and depots, 99 aviation fuel stations and 89 Indane LPG bottling plants. The corporation's LPG bottling capacity now stands at 4.07 million tons per year. It delivers Indane cooking gas to the doorsteps of 56 million households. In 2009-10, IOC sold 69 million tons of petroleum products, registering 4.1% growth over previous year.
IOC is India's largest company by sales, with a turnover of $60.2 billion and a profit of $2.27 billion.
Industrial Info Resources (IIR) is the leading provider of global market intelligence specializing in the industrial process, heavy manufacturing and energy markets. IIR's quality-assurance philosophy, the Living Forward Reporting Principle™, provides up-to-the-minute intelligence on what's happening now, while constantly keeping track of future opportunities.

बुधवार, 5 जनवरी 2011

मोदी नहीं समझ सकते रूपम को

पूर्णिया के विधायक राजकिशोर केसरी मामले पर बिहार में राजनीति शुरू हो गयी है। बिहार भाजपा के क्षत्रप सुशील मोदी तो अपने विधायक के बचाव में खुलकर सामने आ गये हैं। मोदी ने आरोपी महिला रूपम पाठक को हत्यारिन, ब्लैकमेलर तक करार दिया है। संक्षेप में कहें, तो मोदी ने इस प्रकरण की सभी गुत्थी खोल दी है। हास्यास्पद बात यह कि वर्षों से विधायक केसरी और रूपम पाठक को जानने वाले स्थानीय लोग भी अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये हैं। इसमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनका रूपम पाठक और विधायक से आग-पानी का रिश्ता रहा है। लेकिन कोशी और कोशी की संस्कृति के बारे में "एबीसी' भी नहीं जानने वाले मोदी ने बहुत आसानी से नतीजा निकाल दिया है। यह तो वही बात हो गयी कि "ग्वाला के ठट्‌ठा और पड़ोसी के गर्भिन' वाली बात हो गयी।
शायद मोदी को नहीं मालूम कि इस तरह के वाकये को समझने के लिए राजनीतिक दिमाग नहीं, बल्कि आम आदमी के दिल की जरूरत होती है। प्रथम द्रष्टया यह व्यवस्था से निराश होकर इमोशन में उठाया गया मामला लगता है, जिसे राजनीतिक नजरिये से कभी नहीं समझा जा सकता। इसे मोदी जैसे सत्तानसीं शायद कभी नहीं समझ सकेंगे।
क्या यह बात गले के नीचे उतर सकती है कि आज के दौर में सत्ताधारी पार्टी के किसी विधायक को कोई अदना महिला ब्लैकमेल कर सकती है। वह भी तीन-चार साल तक। ब्लैकमेलर की हत्या की बात तो सबने सुनी होगी, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि ब्लैमेलर ने किसी की हत्या की हो। लेकिन मोदी उसे बेधड़क ब्लैकमेलर हत्यारन कह रहे हैं। मोदी का कुतर्क देखिये, वे कहते हैं कि महिला स्वभाव से लड़ाकिन है, क्योंकि उसने अपने श्वसुर पर भी मुकदमा किया था। इसका क्या अर्थ हुआ ? क्या अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोग पागल होते हैं ? इसका यह अर्थ भी तो हो सकता है कि रूपम पाठक में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत थी।
हालांकि मैं रूपम पाठक को क्लीन चीट नहीं दे रहा और न ही मैं उसके अपराध की तारीफ कर रहा हूं। यह अन्वेषण का विषय है। भले ही पुलिस कभी भी सच को सामने नहीं ला पाये, लेकिन यकीन मानिये पूर्णिया के स्थानीय लोगों से सच्चाई बहुत दिनों तक छिपी नहीं रहेगी। कोशी के स्थायी बाशिंदे होने के नाते मैं एक बात तो पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं। वह यह कि कोशी की महिला स्वभाव से स्वाभिमानी और विद्रोही होती है। कोशी की महिला हर जुल्म को सह सकती है, लेकिन बलात्कार और यौन शोषण या चरित्र हनन को कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। ऐसी परिस्थिति में वह भूल जाती है कि सामने कौन है। चारित्रिक हनन की स्थिति में वह साक्षात काली का रूप धारण कर लेती है। तब वह परवाह नहीं करती कि जिसके खिलाफ वह आवाज उठा रही है वह कितना ताकतवर है।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि 10-12 वर्ष पहले भी कोशी में इस तरह का एक हादसा हुआ था। लेकिन तब विधायक बच गया था। बलात्कार के प्रयास कर रहे छातापुर के तत्कालीन विधायक योगेंद्र सरदार को भुक्तभोगी महिला ने बुरी तरह घायल कर दिया था। आज वह महिला पुलिस में कांस्टेबल है। मोदी जैसे लोगों को इस पुलिस कांस्टेबल से जरूर मिलना चाहिए। रूपम पाठक में प्रथम द्रष्टया मुझे कोशी की चरित्र-संवेदी विद्रोही महिला की ही छवि दिखाई दे रही है। मोदी जैसे लोग शायद इस बात को कभी नहीं समझेंगे। और जो समझने वाले लोग हैं, उन्हें किसी की दलील की जरूरत नहीं। वे सब कुछ समझ रहे हैं, क्योंकि पब्लिक सब जानती है।