शनिवार, 23 मार्च 2013

नियति नहीं यह अवसाद है


 
अवाम होने के मजाक में
मुंह मूंदकर रोते जाना
आंख खोलकर सोये रहना
हमारी नियति नहीं, अवसाद है
बगुल-ध्यान में है "मसीहा''
बायें हाथ में जाल, दायें में हथियार है
हमेशा आस्तीन में छिपा था जवाब
आज भी दर-दर भटक रहा मूल सवाल है

सोमवार, 11 मार्च 2013

दूसरी पीढ़ी भी जवान होगी


एक पीढ़ी तैयार होगी
लूटे हुए पैसों के पालने में झूलती हुई
घोटाले के उड़नखटोले में उड़ती हुई
बेईमानी की छत के नीचे  सोती हुई
हर फिक्र को हवा में उ़डाती हुई 

पीढ़ी जवान होगी
शायद अनजान ही रहेगी इतिहास से
 

उसी समय एक दूसरी पीढ़ी भी रहेगी
लूटे हुए खेतों में रोती हुई
छीने हुए घरों को तलाशती हुई
उड़ते उड़नखटोले को निहारती हुई
पेट की भूख को दिमाग में महसूसती हुई
यह पीढ़ी भी जवान जरूर होगी
और इतिहास का निशान इसके ललाट पर होगा

जो कहते हैं कहें
मैं कैसे कह दूं, साथी
सब कुछ अच्छा होगा