बिहार गरीब है, लेकिन बिहार विधानसभा में अब गरीबों के लिए जगह कम होती जा रही है। यह गरीब नेताओं के लिए नो एंट्री प्लेस बनती जा रही है। ठीक लोकसभा की तरह। अब देश की सर्वोच्च पंचायत- लोकसभा भारत की नहीं, बल्कि इंडिया का प्रतिनिध सदन बनकर रह गयी है। हाल में पंद्रहवें बिहार विधानसभा के लिए कुल 243 विधायक निर्वाचित हुये हैं और इनमें 47 विधायक करोड़पति हैं। गौरतलब है कि चौदहवीं विधानसभा में करोड़पति विधायकों की संख्या महज आठ थी। यह आंकड़ा विधायकों के शपथ पत्र पर आधारित है, इसलिए इसे अंतिम सच नहीं माना जा सकता। हकीकत में करोड़पति विधायकों की संख्या सवा सौ से ज्यादा होगी, क्योंकि यह बात अब किसी से छिपी हुई नहीं है कि शपथ पत्र में प्रत्याशी अपनी संपत्ति का सही ब्यौरा नहीं देते।
नवनिर्वाचित विधायकों का प्रोफाइल देखने पर और कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। देश भर में ऐसा प्रचार हो रहा है कि इस बार बिहार विधानसभा में दागी विधायकों का सफाया हो गया है, लेकिन शपथ पत्र के अनुसार, कुल 243 विधायकों में 141 आपराधिक मामलों के आरोपी हैं और उन पर विभिन्न न्यायालयों में मुकदमा लंबित है। दिलचस्प बात यह कि पिछली विधानसभा में सिर्फ 117 विधायकों के विरुद्ध ही आपराधिक मामले चल रहे थे। हां, नयी बात यह जरूर हुई है कि सत्ताधारी दल के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले दागी प्रत्याशी तो इस बार विधानसभा पहुंच गये हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों के दागी उम्मीदवार इसमें असफल रहे।
इन तथ्यों से स्पष्ट है कि हालिया बिहार चुनाव में कोई सफाई-क्रांति नहीं हुई है, जैसा कि कहा जा रहा । हां, इतना जरूर हुआ है कि इस गरीब प्रदेश की विधानसभा अचानक अमीर जरूर हो गयी है। यह चुनाव में धन बल के बढ़ते प्रभुत्व का क्रांतिकारी उदाहरण है। संकेत साफ है कि देश का लोकतंत्र बहुत तेजी से पूंजीतंत्र में बदलता जा रहा है। अगर यह सिलसिला यों ही चलता रहा, तो आने वाले समय में चुनाव अमीरों का खेल बनकर रह जायेगा। उसमें आम नागरिक की भूमिका मतदान तक सीमित हो जायेगी। जिनके पास पैसा नहीं होगा, वे तमाम योग्यताओं-सरोकारों आदि के बावजूद जनप्रतिनिधि नहीं बन सकेंगे।
नवनिर्वाचित विधायकों का प्रोफाइल देखने पर और कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। देश भर में ऐसा प्रचार हो रहा है कि इस बार बिहार विधानसभा में दागी विधायकों का सफाया हो गया है, लेकिन शपथ पत्र के अनुसार, कुल 243 विधायकों में 141 आपराधिक मामलों के आरोपी हैं और उन पर विभिन्न न्यायालयों में मुकदमा लंबित है। दिलचस्प बात यह कि पिछली विधानसभा में सिर्फ 117 विधायकों के विरुद्ध ही आपराधिक मामले चल रहे थे। हां, नयी बात यह जरूर हुई है कि सत्ताधारी दल के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले दागी प्रत्याशी तो इस बार विधानसभा पहुंच गये हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों के दागी उम्मीदवार इसमें असफल रहे।
इन तथ्यों से स्पष्ट है कि हालिया बिहार चुनाव में कोई सफाई-क्रांति नहीं हुई है, जैसा कि कहा जा रहा । हां, इतना जरूर हुआ है कि इस गरीब प्रदेश की विधानसभा अचानक अमीर जरूर हो गयी है। यह चुनाव में धन बल के बढ़ते प्रभुत्व का क्रांतिकारी उदाहरण है। संकेत साफ है कि देश का लोकतंत्र बहुत तेजी से पूंजीतंत्र में बदलता जा रहा है। अगर यह सिलसिला यों ही चलता रहा, तो आने वाले समय में चुनाव अमीरों का खेल बनकर रह जायेगा। उसमें आम नागरिक की भूमिका मतदान तक सीमित हो जायेगी। जिनके पास पैसा नहीं होगा, वे तमाम योग्यताओं-सरोकारों आदि के बावजूद जनप्रतिनिधि नहीं बन सकेंगे।