मुझे याद है कि पिछले साल जब मैं बदलते नेपाल के राजनीतिक-सामाजिक हालात पर रिपोर्टिंग करने के क्रम में नेपाल के लोगों से चीन के बारे में पूछता था, तो उनमें से अधिकतर भड़क उठते थे। कुछ लोग तो यह आरोप भी लगाते थे कि यह भारतीय लोगों की औपनिवेशिक मानसिकता है कि वह नेपाल-चीन के सामान्य रिश्ते को भी शक के नजरिये से देखते हैं। हालांकि, मुझे पक्की जानकारी थी कि नेपाल पिछले पांच-दस वर्षों से चीन के इशारे पर नाच रहा है। अमेरिका में रहने वाले एक नेपाली महोदय ने तो मेरी भर्त्सना तक की। वैसे मैं नेपाल-चीन के संदिग्ध गठजोड़ पर सवाल उठाता रहा ।
माओवादी नेताओं के भारत विरोध अभियान के बाद, तो शक यकीन में बदलता प्रतीत हो रहा था। कई अवसरों पर माओवादी नेताओं ने अपनी हरकतों से इस बात के संकेत दिये थे कि वे चीन के इशारे पर भारत के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। वे योजनाबद्ध ढंग से भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने में निरंतर सक्रिय हैं। लेकिन नेपाल के पत्रकार और बुद्धिजीवी कभी भी इस आरोप को सच मानने के लिए तैयार नहीं हुये। इस विषय पर लिखने के कारण नेपाल के कुछ बुद्धिजीवियों ने मेरी जबर्दस्त आलोचना भी की थी। लेकिन अब विकीलिक्स ने सारे रहस्यों पर से पर्दा उठा दिया है। उसने नेपाल-चीन के नापाक गठजोड़ का भंडा फोड़ दिया है।
विकीलिक्स ने एक दस्तावेज जारी किया है, जिसके अनुसार नेपाल में चीन के विरोध में होने वाले तिब्बतियों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए चीन वहां की सरकार पर धन की बारिश करता है। तिब्बती प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए नेपाल सरकार पर दबाव बनाने के साथ चीन ने वहां की पुलिस को पैसे बांटकर कई तिब्बतियों को गिरफ्तार भी करवाया है। विकीलीक्स की ओर से जारी किए गए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के गोपनीय संदेशों में यह बात सामने आयी है कि चीन की सरकार नेपाल के पुलिस अधिकारियों को नकद ईनाम देती है जो चीन छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे तिब्बतियों को गिरफ्तार कर उन्हें चीन के हवाले कर देते हैं। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से 22 फरवरी 2010 को अमेरिकी प्रशासन को भेजे गये इस गोपनीय संदेश में अज्ञात सूत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि चीन के दबाव में नेपाल निर्वासित शरणार्थियों पर नियंत्रण कस रहा है। दिल्ली डायरी नाम से भेजे गये इस संदेश को गोपनीय संदेश की सूची में रखा गया है।
संदेश में नेपाल के एक अखबार के हवाले से कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में प्रवेश करने वाले तिब्बतियों की संख्या में कमी आयी है। बीजिंग ने काठमांडू से नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए कहा है जिससे तिब्बतियों के लिए नेपाल में घुसना मुश्किल हो । इसमें कहा गया है कि मार्च 2008 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले तिब्बतियों की संख्या कम हुई है।
गौरतलब है कि नेपाल में करीब 20,000 तिब्बती शरणार्थी हैं और ल्हासा में 2008 में हुई हिंसा के बाद काठमांडू में चीन विरोधी प्रदर्शन होते रहते हैं। पश्चिमी देशों की ओर से नेपाल पर दबाव है, फिर भी नेपाल मानता है कि तिब्बत चीन का अभिन्न हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि इस खुलासे के बाद भारत विरोधी नेपाली बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया क्या होगी, लेकिन अब भारत को जरूर चौकन्ना हो जाना चाहिए, क्योंकि नेपाल में चीन का बढ़ता हस्तक्षेप भारत के लिए बहुत बुरा संकेत है।