सामने तालाब पर
भोरे-भोर आया था वह
झलफल होने तक इंतजार करता रहा
न जाने किसका
न जाने क्यों
शाम को जब वह उड़ गया अकेला
मन मेरा फिर बैठ गया
भोरे-भोर आया था वह
झलफल होने तक इंतजार करता रहा
न जाने किसका
न जाने क्यों
शाम को जब वह उड़ गया अकेला
मन मेरा फिर बैठ गया
मैं जानता हूं
वह कल फिर उतरेगा
और कल भी शाम आयेगी
उड़ेगा हंस
तन्हा मैं हो जाऊंगा
वह कल फिर उतरेगा
और कल भी शाम आयेगी
उड़ेगा हंस
तन्हा मैं हो जाऊंगा
6 टिप्पणियां:
भोरे-भोर, झलफल
सुंदर प्रयोग इन शब्दों का
जिस मनःस्थिति की चर्चा आप कर रहे थे उसके लिए इस शब्द का बहुत सही प्रयोग है।
विचार
बहुत खूबसूरत रचना ...मन का हँस ...शब्दों का चातुर्य दिखता है
बहुत सुन्दर रचना !
ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?
aap sabhi Kavya-premiyon ko bahut-bahut dhanyawad.
@Sangita G- Charcha Manch me "Man Ka Hans" ko Shamil Karne K liye Bahut-bahut Abhar.
बहुत खूबसूरत रचना
खूबसूरत सुन्दर रचना
http://shayaridays.blogspot.com
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