" सोहन जादव के ममहर (मां का गांव) भी ओही पार में था। बचहन (बचपन) में सोहना एक बेर गिया था अपन ममहर, जब ओकर नानी का नह-केस (श्राद्ध कर्म) था। लोग कहते हैं जिस साल सोहना की नानी मरी थी वोही साल कोशिकी मैया खिसक गयी थी। सब रास्ता-बाट बंद हो गिया और फेर केयो नै जान सका कि सोहना के मामा लोग कहां पड़ा गिये। हमर कका (पिता जी) कहते थे कि जब कोशिकी नहीं आयी थी, तो ई गांव के चैर आना (25 प्रतिशत) कथा-कुटमैत उधरे था, दैरभंगा (दरभंगा)जिला में। बान्ह टाढ़ होने के बाद तो पछवरिया मुलुक (पश्चिमी इलाका) से हम लोगों के आना जाना समझिये साफे बंद था। नेपाल होके आवत-जावत तो मातवरे लोग कर सकते हैं। आब पुल बइन जायेगा, तो फेर सें टुटलका नता-रिश्ता पुनैक जायेगा।''
लगभग 70-72 साल के वृद्ध दुखमोचन मंडल जब यह सब कह रहे थे, तो उनके चेहरे पर बच्चों जैसा उत्साह था और आंख में अजीब तरह की चमक थी। ऐसी चमक अब आम किसानों की आंखों से गायब हो गयी है। पहले दुखमोचन को विश्वास नहीं होता है, लेकिन अब उसे यकीन हो चला है कि कोसी पर महासेतु बनाया जा सकता है। हाल तक उसकी धारणा थी कि कोशी के दोनों किनारे को जोड़ा नहीं जा सकता।
सुपौल जिले के सरायगढ़ स्टेशन से उतरने के बाद पश्चिम की ओर अगर निगाह डालें तो शायद आपको भी विश्वास होने लगेगा कि यहां कोई ऐतिहासिक निर्माण कार्य चल रहा है। कोशी के पूर्वी बांध पर पहुंचने के बाद महासेतु के महापाये साफ-साफ दिखने लगते हैं। अधिकारियों का कहना है कि जनवरी तक इससे आवाजाही शुरू हो जायेगी। इसके साथ ही केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पश्चिम-पूर्वी कोरिडोर सड़क योजना का मिसिंग लिंक भी रीस्टोर हो जायेगा। द्वारका से गुवाहटी, दिल्ली से सिलीगुड़ी तक सीधी बस या ट्रेन सेवा हो सकेगी, बिना किसी घुमाव या मेकशिफ्ट के। सुपौल, अररिया, मधेपुरा, पूर्णिया, दरभंगा, मधुबनी में ऐसी बातें खूब सुनने को मिल रही हैं। नेता-अधिकारी से लेकर हलवाहे-चरवाहे तक इन दिनों महासेतु का ही गुण गा रहा है। मन कहता है कि मैं भी उनकी हां-में-हां मिला दूं, लेकिन दिमाग रोक लेता है। कोशी के सीने पर अंगद के पांव की तरह जमाये गये लोहे-कांक्रिट के विशालकाय पाये भी मुझे भरोसा नहीं दिलाते। अभियंताओं का दावा है कि यह पुल कोशी के 15 लाख क्यूसेक पानी को बर्दाश्त कर सकता है। चूंकि पिछले 20-30 सालों में कोशी में इतना पानी कभी नहीं आया, इसलिए मान लेता हूं कि इस पुल को पानी से कोई समस्या नहीं होगी। कोशी लाख यत्न कर ले, पुल उसका दामन नहीं छोड़ेगा और टिके रहेगा। लेकिन जब मेरे जेहन में सवाल उठता है कि अगर कोशी ने ही पुल को छोड़ दिया, तो ? इस सवाल का जवाब अभियंताओं के पास नहीं है। हालांकि वे सुस्त स्वर में कहते हैं कि ऐसा नहीं होगा। लेकिन जिसने कुसहा के कटाव को देखा है, जिसने कोशी की तलहटी को मापा है, वे कहते हैं- "कोशी तो अब धारा बदल के रहेगी।'' वैसे हालत में पुल तो खड़े रहेंगे, लेकिन उसकी प्रासंगिकता नहीं बचेगी।मैंने पता लगाने की कोशिश की क्या कोशी महासेतु की पीपीआर या डीपीआर को तैयार करते समय महान अभियंताओं ने इस पहलू पर विचार किया था। जवाब नहीं मिला। दरअसल, पुल की डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने के दौरान इस पहलू को साफ तौर पर नजरअंदाज कर दिया गया कि नदी धारा बदल सकती है। गौरतलब है कि जब कोशी महापरियोजना को स्वीकृति मिली थी, तब किसी इंजीनियर या सलाहकार ने सरकार के सामने यह सवाल नहीं उठाया। अब जबकि पुल पर 400 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, तो भला कौन ऐसा अटपटा सवाल पूछेगा। वह भी तब जब इलाके का बच्चा भी पुल गान में मस्त है। पुल के साथ पूर्णिया से दरभंगा तक चार लेन सड़क और रेलवे ट्रैक के निर्माण में जो राशि खर्च हुई है या होने वाली है उन्हें अगर जोड़ लें तो बजट हजार करोड़ तक पहुंच जायेगा।