रविवार, 2 अक्तूबर 2011

विकास की वेदीः खेती की कुर्बानी

 कृषि प्रधान भारत में  खेत, खेती और खेतिहर अब सबसे उपेक्षित उपक्रम बन गया है। संक्षेप में कहें तो हमारी खेती संकटों के मकड़जाल में फंस चुकी है। सरकार की प्राथमिकताओं से तो खेत, खेतिहर अब गायब हो ही चुके हैं, लेकिन चौथे खंबे का भी इस ओर ध्यान नहीं है। यह बात अलग है कि खाद्यान्न असुरक्षा से बड़ी असुरक्षा कुछ नहीं हो सकती। राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका द पब्लि एजेंडा ने अपने नवीनतम अंक में खेत,खेती और खेतिहरों के वर्तमान और भविष्य पर आवरण कथा की है। ऊपर की तस्वीर पर क्लिक कर  मुख्य रिपोर्ट पढ़ी जा सकती है।- रंजीत

1 टिप्पणी:

रविकर ने कहा…

खेत, खेती और खेतिहर अब सबसे उपेक्षित उपक्रम बन गया है ||

बधाई ||
बढ़िया प्रस्तुति ||