बर्फ
सब
पिघल गयी
सांस भी
अब
सब
पिघल गयी
सांस भी
अब
दवा हुई
देह ही है देश में
लोग बस नारा है
भरोसा था जिस शोर पर
चौक पर
शराब हुई
शर्म
से बहुत आस थी
सुबह-सुबह
खतम हुई
कवि !
तुम कब आओगे
देह ही है देश में
लोग बस नारा है
भरोसा था जिस शोर पर
चौक पर
शराब हुई
शर्म
से बहुत आस थी
सुबह-सुबह
खतम हुई
कवि !
तुम कब आओगे
7 टिप्पणियां:
वाह भाई! आप तो पूरे कवि बन गए. अच्छी रचना है. इसी तरह लिखते रहिये.
hahaha... dhanyawad bhaiya. waise main kavi kaa aahwan hee kar raha hun,kavita likhna mere bute se bahar kee baat hai. mujhe to aisa hee lagta hai.
सच्चे मन से पुकारा तो आ ही गया..लिखा ही गया..कविता..'कवि तुम कब आओगे'।
Pandey jee. aapkee Tipanee ne mujhe bahut prabhawit kiya. it's a million dollar comment . Thanks.
reg
Ranjit
सब कुछ बीत जाने के बाद कवि आता है ... गहरी बातें कह जाते हैं आप ...
digamvar jee aap marm tak pahuch gaye. main dhanya ho gaya. "Kavi" meree nazron Rachiyata hee nahin antim waqta bhee hain.sach kee umeed ab Kavi aur Kavita se hee to rah gayee hai.
कवि कहीं से आता नहीं स्वत :जन्म लेता है
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