दहाये हुए देस का दर्द-81
बिहार के कानून मंत्री नरेंद्र नारायण यादव जमीनी नेता हैं। वे ग्रास रूट की राजनीति से बिहार विधानसभा और कैबिनेट तक पहुंचे हैं। पिछले दिनों अपनी पत्रिका "द पब्लिक एजेंडा'' के लिए उनसे इंटरव्यू करने का मौका मिला। नरसंहारों की सुनवाई में हो रही देरी और बथानी टोला मामले में आये फैसले पर उनसे लंबी बातचीत हुई। यह इंटरव्यू "द पब्लिक एजेंडा'' के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। लेकिन इसी मुलाकात के दौरान मैंने उनसे कोशी के मुद्दे पर भी बातचीत की। उनसे कई जमीनी सवाल पूछे। कोशी मुद्दे पर उनके विचारों और जवाबों को यहां आपके सामने रख रहा हूं। - रंजीत
सवाल-
पिछले कुछ सालों से मैं कोशी अंचल की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर लगातार
अनुसंधान कर रहा हूं। मैं तथ्यों के साथ कह सकता हूं कि जिस तरह केंद्र
सरकार ने बिहार की उपेक्षा की, ठीक वही व्यवहार बिहार की विभिन्न सरकारों
ने कोशी के साथ किया, जबकि इस इलाके से कई बड़े राजनेता उभरे। राजेंद्र
मिश्र, ललित नारायण मिश्र, जगन्नाथ मिश्र, अनूप लाल यादव, विनायक प्रसाद
यादव, भूपेंद्र मंडल, तारिक अनवर, बीएन मंडल, रमेश झा, लहटन चौधरी, शंकर
टेकरीवाल, शरद यादव, विजेंद्र यादव जैसे बड़े नेताओं के रहते कोशी की ऐसी
उपेक्षा क्यों हुई ?
नरेंद्र ना यादव - नहीं, मुझे नहीं लगता कि कोशी के साथ उपेक्षा हुई है। मेरी सरकार ने कोशी के विकास के लिए हर संभव प्रयास किया है। कुसहा त्रासदी के बाद युद्ध स्तर पर राहत और पुनर्वास के कार्यक्रम चलाये गये। हम लोग आगे भी प्रयासरत हैं। हमने कोशी के लिए केंद्र सरकार से मदद मांगी थी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद हमारी सरकार ने विश्व बैंक की मदद से इलाके के लिए कई योजना बनायी है। यह कई करोड़ रुपये का पैकेज है। इसके तहत इलाके में लगभग 125 पुल-पुलिये बनाये जायेंगे। कुछ के टेंडर भी हो चुके हैं। गांवों की सड़कें पक्की की जायेंगी। बाढ़ के समय राहत के लिए हर पंचायत में ऊंचा टीला बनाया जायेगा। तटबंधों को मजबूत किया जायेगा। अगले वर्षों में लगभग 400 करोड़ रुपये कोशी इलाके में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर खर्च किये जायेंगे।
सवाल- लंबे समय से कोशी की जीवन-रेखा डुमरी पुल क्षतिग्रस्त है, लेकिन अब तक सरकार इसकी मरम्मत नहीं करा सकी। क्या अगर यही समस्या अन्य हिस्से में होती, तो आपकी सरकार का रवैया ऐसा होता ?
नरेंद्र ना यादव- सन् 2014 तक वहां तीन पुल होंगे। एक पुल बीहपुर और नौगछिया के बीच होगा। डुमरी पुल के बगल में ही बनाये गये आइरन ब्रीज को भी ऐसा मजबूत बना दिया जायेगा कि लंबे समय तक उससे हल्की गाड़ियां पास करेंगी। डुमरी पुल की मरम्मत के लिए भी सरकार ने विशेषज्ञों से राय ली है। विशेषज्ञों ने कहा है कि इसके डिजाइन में हल्का परिवर्तन लाकर ठीक किया जा सकता है। कुछ उसी तरह जैसे हावड़ा ब्रीज है। दो साल के बाद आप देखेंगे कि डुमरी के सामांतर तीन पुल होंगे।
सवाल- ऐसा हो जाये, तो क्या कहना ! क्या ऐसा हो पायेगा ? हमने तो कुसहा हादसा के समय भी ऐसी बातें सुनी थीं, लेकिन हुआ क्या ? जिनके घर दहाये, खेत बंजर हुये, परिजन मरे, उन्हें तो कुछ खास नहीं मिला। लेकिन अधिकारियों, नेताओं,दलालों की चांदी हो गयी। मुआवजा राशि में जमकर लूट-पाट हुआ। छातापुर में एक बीडीओ धराये भी। लेकिन अंततः समय के साथ सब कुछ शांत हो गया। लोगों के दिन नहीं फिरे। वे आज भी पंजाब-दिल्ली के भरोसे ही हैं।
नरेंद्र ना यादव- इन सब सवालों के जवाब हैं। कार्रवाई हुई है। हम आपको बाद में इसका विस्तृत ब्यौरा उपलब्ध करा देंगे।
सवाल- आप गांव से आते हैं। खेत-खेतिहरों की तकलीफ समझते हैं। आप लोग कोशी के लिए कुछ करते क्यों नहीं ?
नरेंद्र ना यादव- (लंबी खामोशी। सवाल का जवाब नहीं मिला)
सवाल- ऐसा कोई सेक्टर बतायें जहां कोशी अंचल को प्राथमिकता में रखा गया हो। यहां सबसे बाद में विश्वविद्यालय खुले। सबसे बाद में मेडिकल कॉलेज खुला, वह भी निजी। इंजीनियरिंग कॉलेज तक आज तक खुल ही नहीं सका। देश में अब कहीं भी छोटी रेल-लाइन नहीं है, लेकिन कोशी में अब तक मौजूद है। हर इलाके में रेलवे का विद्युतीकरण हो गया है, लेकिन कोशी में अभी तक नहीं हुआ है ? उद्योग-धंधा लगाने की तो चर्चा करना ही बेकार है।
नरेंद्र ना यादव- इन सब सवालों पर बात करने के लिए हमें आराम से बैठना होगा। इस पर बहस होनी चाहिए।
सवाल- क्या ऐसा इलिए तो नहीं हुआ क्योंकि यहां के लोग साधारणतया अमन पसंद और मासूम हैं ?
नरेंद्र ना यादव- (जवाब में चुप्पी)
नरेंद्र ना यादव - नहीं, मुझे नहीं लगता कि कोशी के साथ उपेक्षा हुई है। मेरी सरकार ने कोशी के विकास के लिए हर संभव प्रयास किया है। कुसहा त्रासदी के बाद युद्ध स्तर पर राहत और पुनर्वास के कार्यक्रम चलाये गये। हम लोग आगे भी प्रयासरत हैं। हमने कोशी के लिए केंद्र सरकार से मदद मांगी थी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद हमारी सरकार ने विश्व बैंक की मदद से इलाके के लिए कई योजना बनायी है। यह कई करोड़ रुपये का पैकेज है। इसके तहत इलाके में लगभग 125 पुल-पुलिये बनाये जायेंगे। कुछ के टेंडर भी हो चुके हैं। गांवों की सड़कें पक्की की जायेंगी। बाढ़ के समय राहत के लिए हर पंचायत में ऊंचा टीला बनाया जायेगा। तटबंधों को मजबूत किया जायेगा। अगले वर्षों में लगभग 400 करोड़ रुपये कोशी इलाके में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर खर्च किये जायेंगे।
सवाल- लंबे समय से कोशी की जीवन-रेखा डुमरी पुल क्षतिग्रस्त है, लेकिन अब तक सरकार इसकी मरम्मत नहीं करा सकी। क्या अगर यही समस्या अन्य हिस्से में होती, तो आपकी सरकार का रवैया ऐसा होता ?
नरेंद्र ना यादव- सन् 2014 तक वहां तीन पुल होंगे। एक पुल बीहपुर और नौगछिया के बीच होगा। डुमरी पुल के बगल में ही बनाये गये आइरन ब्रीज को भी ऐसा मजबूत बना दिया जायेगा कि लंबे समय तक उससे हल्की गाड़ियां पास करेंगी। डुमरी पुल की मरम्मत के लिए भी सरकार ने विशेषज्ञों से राय ली है। विशेषज्ञों ने कहा है कि इसके डिजाइन में हल्का परिवर्तन लाकर ठीक किया जा सकता है। कुछ उसी तरह जैसे हावड़ा ब्रीज है। दो साल के बाद आप देखेंगे कि डुमरी के सामांतर तीन पुल होंगे।
सवाल- ऐसा हो जाये, तो क्या कहना ! क्या ऐसा हो पायेगा ? हमने तो कुसहा हादसा के समय भी ऐसी बातें सुनी थीं, लेकिन हुआ क्या ? जिनके घर दहाये, खेत बंजर हुये, परिजन मरे, उन्हें तो कुछ खास नहीं मिला। लेकिन अधिकारियों, नेताओं,दलालों की चांदी हो गयी। मुआवजा राशि में जमकर लूट-पाट हुआ। छातापुर में एक बीडीओ धराये भी। लेकिन अंततः समय के साथ सब कुछ शांत हो गया। लोगों के दिन नहीं फिरे। वे आज भी पंजाब-दिल्ली के भरोसे ही हैं।
नरेंद्र ना यादव- इन सब सवालों के जवाब हैं। कार्रवाई हुई है। हम आपको बाद में इसका विस्तृत ब्यौरा उपलब्ध करा देंगे।
सवाल- आप गांव से आते हैं। खेत-खेतिहरों की तकलीफ समझते हैं। आप लोग कोशी के लिए कुछ करते क्यों नहीं ?
नरेंद्र ना यादव- (लंबी खामोशी। सवाल का जवाब नहीं मिला)
सवाल- ऐसा कोई सेक्टर बतायें जहां कोशी अंचल को प्राथमिकता में रखा गया हो। यहां सबसे बाद में विश्वविद्यालय खुले। सबसे बाद में मेडिकल कॉलेज खुला, वह भी निजी। इंजीनियरिंग कॉलेज तक आज तक खुल ही नहीं सका। देश में अब कहीं भी छोटी रेल-लाइन नहीं है, लेकिन कोशी में अब तक मौजूद है। हर इलाके में रेलवे का विद्युतीकरण हो गया है, लेकिन कोशी में अभी तक नहीं हुआ है ? उद्योग-धंधा लगाने की तो चर्चा करना ही बेकार है।
नरेंद्र ना यादव- इन सब सवालों पर बात करने के लिए हमें आराम से बैठना होगा। इस पर बहस होनी चाहिए।
सवाल- क्या ऐसा इलिए तो नहीं हुआ क्योंकि यहां के लोग साधारणतया अमन पसंद और मासूम हैं ?
नरेंद्र ना यादव- (जवाब में चुप्पी)
1 टिप्पणी:
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
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