गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

माटी के पूत

है कोसी का कछार। रेणु साहित्य के अलावा अन्यत्र इस इलाका के आर्थिक पिछड़ेपन और दुरुह भूगोल की चर्चा बहुत कम हुई है। इस इलाके के दुरुह भूगोल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेज शासन के दौरान यहां काम करने वाले अधिकारी को अंडमान की तरह अलग से विशेष भत्ता दिया जाता था। लेकिन दशकों से अंधेरे में जी रहे इस इलाके में एक एनआरआई युवक अमित कुमार दास ने जो दीया जलाया है,वह मिसाल है। मैंने अमित के पराक्रम पर "द पब्लिक एजेंडा" में एक रिपोर्ट लिखी है। आप भी पढ़िये और गुनगुनाइये- जहां चाह, वहां राह...


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद्