रविवार, 14 मार्च 2010

शोर मचाओ, शोर मचाओ

शोर मचाओ, शोर मचाओ

जोर-जोर से सब चिल्लाओ

गला फाड़ो, माइक उठाओ

लेख-आलेख- कविता लिखो

बहस-मुबाहिसे जारी रखो

बहनें खुश हैं !

माएं खुश हैं !

दादी-नानी-मौसी खुश हैं !

नर्सरी की नैंसी खुश है !

काठ की कठपुतली खुश है !

कूड़ा चुनती कुसिया खुश हैं !

दिल्ली से हम देख रहे हैं

अस्मत खोयी बेवा खुश है

"दुमकावाली'' मुर्दा खुश है

लकड़ी चुनती बुढ़िया खुश हैं !

भूखनगर की भूतिया खुश हैं !

तैंतीस प्रतिशत

जिंदावाद

तैंतीस प्रतिशत

मुर्दावाद

प्रतिशत में प्रतिशत

जिंदावाद

भूख लगी है ?

शोर मचाओ ...

बिन दाना के मां मरी है ??

मुखर्ता है शोक मनाना

शोर मचाओ, शोर मचाओ ...

शंख बाजे

काल भागे

घंट बाजे

पिशाच भागे

शोर बाजे

भूख भागे

शोर बाजे

महगी भागे

इसलिए

शोर मचाओ, शोर मचाओ

जोर-जोर से शोर मचाओ

 

 

5 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

acchi post
shor to machana hi padega

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

acchi post
shor to machana hi padega

Unknown ने कहा…

bahut achha hain, sabhi taraf sirf sor hi sor hain, har chij ke sor

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत अछा प्रयास है रंजीत जी ... आरक्षण नही बल्कि समस्या का मूल सुधारना चाहिए ...
लाजवाब लिखा है ...