बिहार जल संपदा से परिपूर्ण राज्य है किंतु फिर भी यहां जल उपलब्धता कम रहती है। भौगोलिक परिस्थितियों एवं अन्य कारणों से जल के विभिन्न उपयोगों जैसे सिंचाई, पीने और घरेलू उपयोग, औद्योगिक, तापीय और जल विद्युत आदि के लिये बढ़ती हुई मांगों को पूरा करने के लिये जल का समुचित प्रबंधन आवश्यक हो गया है। भौगोलिक स्थिति और वर्षा के असमान वितरण के कारण बिहार का उत्तरी भाग बाढ़ की चपेट में रहता है तो दक्षिणी भाग सूखे की मार झेलता है। राज्य में कुल जल उपलब्धता तो अधिक है लेकिन उपयोग योग्य जल कम है।राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 94।163 लाख हेक्टेयर है जिसमें से 56.68 लाख हेक्टेयर पर ही खेती होती है 9.44 लाख हेक्टेयर अन्य परती जमीन है जिसे प्रोत्साहन देकर कृषि योग्य बनाया जा सकता है। राज्य की वर्तमान आबादी 8.288 करोड़ है जबकि 2025 तक 13.13 करोड़ तक अनुमानित है। वर्तमान में सिंचाई एवं अन्य कृषि निवेशों से 1.675 टन प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता का स्तर प्राप्त हुआ है जो अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 3.5 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता का लक्ष्य प्राप्त करना होगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार लाना आवश्यक हो गया है।इन परिस्थितियों में राज्य जल नीति को नए सिरे से सूत्रीकृत करने की आवश्यकता महसूस की गई और मुख्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये राज्य जल नीति 2009 प्रतिपादित की जा रही है।राज्य जल नीति, 2009 का जलसंसाधन विभाग, बिहार द्वारा प्रारूप तैयार किया गया है। इस मसौदे को http://wrd.bih.nic.in और www.prdbihar.org पर देखा जा सकता है।राज्य जल नीति के इस प्रारूप पर आम जनता की राय, सुझाव और मंतव्य आमंत्रित हैं।
यदि आप कोई सुझाव या राय देना चाहते हैं तो इंडिया वाटर पोर्टल या water।community@gmail.com पर एक माह के भीतर भेज सकते हैं । आप अपने सुझाव सीधे wrd-bih@bih.nic.in पर भी भेज सकते हैं। आप अपने सुझाव यहां कमेंट के रूप में भी डाल सकते हैं जिन्हें हम नीति निर्माताओं तक पहुंचाएंगे ।
यदि इस संदर्भ में कोई विशेष जानकारी चाहिए तो आप मगध जल जमात के संयोजक श्री रविन्द्र पाठक जी से बात कर सकते हैं। उनका मो- 09431476562 है।
(इंडिया वाटर पोर्टल से साभार )
2 टिप्पणियां:
यह सिर्फ़ संसाधनों का समुचित प्रबंधन न होने का नतीज़ा है.
नदियों को आपस में जोड़ने की केंद्र सरकार की योजना नई सरकार के साथ खत्म हो गई लगती है..
सर्वप्रथम तो सामूहिक हित के विषयों पर सभी राजनीतिक दलों को अपना दृष्टिकोण एक बनाना होगा कि कोई भी सरकार आये योजना चलती रहे..योजना के सफल या असफल होने का श्रेय किसी भी पार्टी को न मिले...तत्पश्चात ही कोई नई योजना बनाई जाय जिसके पूरा होने में तनिक भी संदेह न रहे.
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