गुरुवार, 19 अगस्त 2010

स्वार्थ

गाय को नहीं करनी राजनीति
गाय को जरूरत नहीं
नौकरी-ठेकेदारी-प्रमोशन की
चमचा-लठैत या दलालों की
न ही गाय को बनना है
किसी अखबार का संपादक
या
किसी समारोह का चीफ गेस्ट
गाय
मेरा यारा-दिलदारा भी नहीं
बंधु-बांधव, सखा-सहेली भी नहीं
पर गाय, जो सचमुच 'गउ' है
जवाने में किसी से कम नहीं
गाय भी
हाथ में हरी घास देख, मुस्कुराती है
गरदन हिलाकर पास बुलाती है
पूंछ हिलाकर प्रेम जताती है
लेकिन
खाली हाथ जाने पर
पहचानने से इनकार कर देती है

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... गाय भी तो समझदार प्राणी है ... चाहे गउ' ही क्यों न हो ...

मनोज कुमार ने कहा…

बेहद प्रभावशाली!