बुधवार, 1 सितंबर 2010

रिश्ते की तासीर और आदमी

आत्मा के अंतस में होने लगती है गुदगदी
खिल उठते हैं, मन के फूल
वजूद बेखुद हो जाता है
और जैसे गर्म तवे पर उड़ जाती है पानी की बूंद
उसी तरह छन-छनाकर घुल जाता है हर एक इगो
तो जन्म लेता है कोई रिश्ता

जिसने अपने कलेजे में जना हो कोई रिश्ता
जिसने भोगा हो रिश्ते की प्रसव-पीड़ा
वे जानते हैं रिश्ते को
और उसकी तासीर को

हाय !
अब रिश्ते भी बनाये जाते हैं
जैसे बनाये जाते हैं पुल
नदी पार करने को
लगायी जाती हैं सीढ़ियां
चोटी तक जाने के लिए
कंधा दुखने लगता है
और आदमी
अपने रोये में डूब जाता है
+
एक आदमी, जो रिश्ते की मौत पर रो सकता है
वह नहीं ढो सकता, रिश्ते का बोझ
आदमी, जो रिश्ते पर मर सकता है
रिश्ते को, ढो नहीं सकता