कहते हैं कि दादा भाई नैरोजी के ड्रेन ऑफ वेल्थ सिद्धांत के प्रकाशन से पहले तक भारत के लोगों को नहीं मालूम था कि वे गुलाम हैं, जिसके कारण सालों-साल तक अंग्रेज भारत को अपना उपनिवेश बनाये रखने में कामयाब हुये। लेकिन आज का भारत उतना बदनसीब नहीं है। देश जागरूक हो गया है। आज लोगों को बाजार की गुलामी के बारे में पता है। हर जानकार और चिंतनशील लोग बाजार की गुलामी को समझ रहे हैं, लेकिन फिर भी विद्रोह की आवाज कहीं से नहीं उठ रही। तो कैसे मान लिया जाये कि हम जाग्रत समाज के नागरिक हैं।
बाजार की गुलामी किसी भी लिहाज से ब्रिटीश गुलामी से कम नहीं है। ढ़ाई सौ वर्षों में जितने धन अंग्रेज यहां से विदेश ले गये होंगे, उससे कई गुना ज्यादा धन आज देश से बाहर जा रहा है। स्विस बैंक की राशि, अंग्रेजों द्वारा बटोरी गयी राशि से कम नहीं होगी ! बाजार ने वेल्थ ड्रेन के नये द्वार खोल दिये हैं, भूंमंडलीकरण ने इसे वैधता का लबादा पहना दिया है। भारत में कुछ लोगों का जीवन-स्तर बढ़ रहा है, जिसके बहाने बाजार को न्यायसंगत ठहराया जा रहा है। याद रहे अंग्रेजी गुलामी के दौर में भी देश के कुछ लोगों के जीवन-स्तर लगातार उठते गये थे। बाजार टिकाउ और समरस विकास कभी नहीं कर सकता। यह इसके मौलिक कांसेप्ट में ही नहीं है। कोसी अंचल की एक कहावत है- अंधरा कें जागने कून , अंधरा कें सुतने कून।
बाजार की गुलामी किसी भी लिहाज से ब्रिटीश गुलामी से कम नहीं है। ढ़ाई सौ वर्षों में जितने धन अंग्रेज यहां से विदेश ले गये होंगे, उससे कई गुना ज्यादा धन आज देश से बाहर जा रहा है। स्विस बैंक की राशि, अंग्रेजों द्वारा बटोरी गयी राशि से कम नहीं होगी ! बाजार ने वेल्थ ड्रेन के नये द्वार खोल दिये हैं, भूंमंडलीकरण ने इसे वैधता का लबादा पहना दिया है। भारत में कुछ लोगों का जीवन-स्तर बढ़ रहा है, जिसके बहाने बाजार को न्यायसंगत ठहराया जा रहा है। याद रहे अंग्रेजी गुलामी के दौर में भी देश के कुछ लोगों के जीवन-स्तर लगातार उठते गये थे। बाजार टिकाउ और समरस विकास कभी नहीं कर सकता। यह इसके मौलिक कांसेप्ट में ही नहीं है। कोसी अंचल की एक कहावत है- अंधरा कें जागने कून , अंधरा कें सुतने कून।
1 टिप्पणी:
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
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