एक पीढ़ी तैयार होगी
लूटे हुए पैसों के पालने में झूलती हुई
घोटाले के उड़नखटोले में उड़ती हुई
बेईमानी की छत के नीचे सोती हुई
हर फिक्र को हवा में उ़डाती हुई
पीढ़ी जवान होगी
शायद अनजान ही रहेगी इतिहास से
उसी समय एक दूसरी पीढ़ी भी रहेगी
लूटे हुए खेतों में रोती हुई
छीने हुए घरों को तलाशती हुई
उड़ते उड़नखटोले को निहारती हुई
पेट की भूख को दिमाग में महसूसती हुई
यह पीढ़ी भी जवान जरूर होगी
और इतिहास का निशान इसके ललाट पर होगा
जो कहते हैं कहें
मैं कैसे कह दूं, साथी
सब कुछ अच्छा होगा