दहाये हुए देस का दर्द-21
कु-स-ह-आ ! जी हां, कुसहा !!! आज से ९५ दिन पहले यहीं पर घायल हुई थी कोशीऔर तटबंध को तोड़कर कहर बरपा गयी थी ।आज किसी गहरे जख्म की तरह लगता है यह कटान। एक ऐसा जख्म जिससे अब लहुओं का फव्वारा तो निकल रहा, लेकिन मवादें लगातार रिस रहे हैं। इस कटान ने नेपाल के सुनसरी जिले के एक दर्जन गांवों को आज भी सड़क-मार्ग से वंचित कर रखा है। लोग नावों के सहारे कटान पार करते हैं और कटान के आर-पार बसे गांव जाते -आते हैं। लेकिन कटान को पार करते समय उनकी जुबान पर एक सवाल रहता है कि कब तक बांधा जायेगा इस कटान को ? अपने गणित और भौतिकी में मस्त इंजीनियर उनके सवालों का सही जवाब नहीं देते। कोई कहता है फरवरी 2009 तक तो कोई कहता है मार्च 2009 तक। लेकिन अपना मन तो कुछ और ही कहता है। अपना मन तो कहता है- यह घाव चाहे भर जाये, लेकिन वे घावें कभी नहीं भरेंगे। वे घावें कैसे भर सकते हैं ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें