हर किसी को मालूम है कि बिहार औद्योगिक रूप से पिछड़ा प्रदेश है। इस बात से भी किसी को एतराज नहीं हो सकता कि बिहार को आर्थिक रूप से अव्वल बनाने के लिए उद्यम-उद्योग की व्यापक आवश्यकता है। लेकिन यह बात भी सच है कि भूख कितनी ही जोर की क्यों न लग जाये, खाना दोनों हाथ से नहीं खाया जा सकता। लेकिन बिहार सरकार "उद्योग' की तीव्र भूख को शांत करने के लिए हाथ क्या, पैरों से भी खाने के लिए तैयार है। मुजफ्फरपुर के विवादित एस्बेस्टस सीमेंट फैक्ट्री के मामले में उसने अभी तक जो स्टैंड लिया है, उससे तो यही साबित होता है। सरकार हर हाल में इस परियोजना को पूरी करना चाहती है, जबकि स्थानीय जनता इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। स्थानीय जनता कह रही है कि "आपने हमसे जमीन ली थी कृषि उद्योग के नाम पर और लगा रहे हैं जानलेवा एस्बेस्टस-आधारित सीमेंट फैक्ट्री। हमें उद्योग चाहिए, बीमारी की परियोजना नहीं चाहिए।' यही बात विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण विशेषज्ञ बैरी कैसलमैन ने भी कहा है। मेधा पाटेकर, सुनीता नारायण, गोपाल कृष्ण, सच्चिदानंद सिन्हा जैसे देश-विदेश के नामी पर्यावरण विशेषज्ञ भी कह चुके हैं। लेकिन सरकार कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं है।
दरअसल, मुजफ्फरपुर स्थित मरवां प्रखंड के विशुनपुर-चयनपुर गांवों में चल रहे सरकार बनाम आम आदमी के इस टकराव को समझने के पहले हमें कुछ और बातों को समझना पड़ेगा। आखिर क्या कारण है कि प्रो-पीपुल होने का दावा करने वाली नीतीश सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर आमिल पी हुई है। क्या कारण है कि सुशासन और न्याय का दम भरने वाली एक सरकार एक कंपनी की मास-धोखाधड़ी को नेरअंदाज कर रही है। सरकार कंपनी से यह बात क्यों नहीं पूछ रही कि आपने जनता को अंधेरे में रखकर जमीन अधिग्रहीत की है, आपका चरित्र संदिग्ध है।
सवाल उठता है कि क्या यह सच में यह औद्योगिक भूख ही है कि सरकार एक अदद फैक्ट्री के लिए कंपनी की तमाम अपराध को माफ करने के लिए तैयार है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। अब तक यह बात साफ हो चुकी है कि चयनपुर-विशुनपुर की प्रोजेक्ट में राज्य के एक आला नेता की व्यक्तिगत दिलचस्पी है। उसने कंपनी से वादा कर रखा है कि चाहे कुछ भी हो जाये, आपकी सीमेंट फैक्ट्री जरूर खुलेगी। वैसे अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि यह गठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी है या कुछ और कि वे भी अब तक इस मुद्दे पर जनता का साथ छोड़ने के लिए तैयार है। लोग पूछ रहे हैं कि बच्चों की टेक्सट बुक में लिखी बात (कि एस्बेस्टस के कण जानलेवा होते हैं) क्या गलत है? मुख्यमंत्री जवाब दें। लेकिन मुख्यमंत्री खामोश हैं। ठीक रूपम पाठक कांड की ही तरह। मतलब साफ है। अगर प्रचंड बहुमत वाले सरकार के मुखिया
लोगों के सहज सवाल का जवाब नहीं दे सकते, तो कैसे मान लिया जाये कि उनकी मंशा साफ है।
बहरहाल, मुजफ्फरपुर के शांति-प्रिय किसान आंदोलित हैं। सरकार ने 50 एकड़ की विवादित जमीन पर धारा 144 लगा दी है, जिसका अर्थ यह हुआ कि वहां पर फिलहाल कोई गतिविधियां नहीं चलायी जा सकतीं। लेकिन सरकार ने अभी तक विवादित बिंदुओं के समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि इसे लेकर कई बार फैक्ट्री का विरोध कर रहे "खेत बचाओ जीवन बचाओ संघर्ष कमेटी'' संगठन के साथ बातचीत का स्वांग जरूर रचा गया है। लेकिन तमाम अवसरों पर सरकार की करनी और कथनी में कोई सामंजस्य नहीं था। प्रकरण में सरकार और स्थानीय प्रशासन का रूख अब तक एंटी-पीपुल्स ही रहा है, जिसके कारण अब लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है। पिछले दिनों जिला प्रशासन के खिलाफ हजारों लोगों की गोलबंदी इसका सबूत है। संक्षेप में कहें तो एग्रेसिव पूंजीवाद बनाम रूरल इंडिया की टकराहट अब अपने दूसरे दौर में पहुंच गया है। पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में इसका हस्र दुनिया देख चुकी है। अब इसके कदम बिहार की धरती पर पड़ रहे हैं। इतिहास गवाह है कि बिहार की आंदोलन-गर्भा धरती इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। बिहार के लोग अगर अड़ गये, तो परिणाम भीषण होंगे। उम्मीद है आक्रामक पूंजी के नेतृत्वकर्ता इस बात और इसमें निहित खतरे को समझेंगे। क्या बिहार सरकार लगभग पूरी दुनिया में प्रतिबंधित हो चुके कारसीजेनिक (कैंसर पैदा करने वाला) एस्बेस्टस के पक्ष में रहेगी या फिर अपनी जनता की सेहत का ख्याल करेगी ?
सवाल उठता है कि क्या यह सच में यह औद्योगिक भूख ही है कि सरकार एक अदद फैक्ट्री के लिए कंपनी की तमाम अपराध को माफ करने के लिए तैयार है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। अब तक यह बात साफ हो चुकी है कि चयनपुर-विशुनपुर की प्रोजेक्ट में राज्य के एक आला नेता की व्यक्तिगत दिलचस्पी है। उसने कंपनी से वादा कर रखा है कि चाहे कुछ भी हो जाये, आपकी सीमेंट फैक्ट्री जरूर खुलेगी। वैसे अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि यह गठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार की राजनीतिक मजबूरी है या कुछ और कि वे भी अब तक इस मुद्दे पर जनता का साथ छोड़ने के लिए तैयार है। लोग पूछ रहे हैं कि बच्चों की टेक्सट बुक में लिखी बात (कि एस्बेस्टस के कण जानलेवा होते हैं) क्या गलत है? मुख्यमंत्री जवाब दें। लेकिन मुख्यमंत्री खामोश हैं। ठीक रूपम पाठक कांड की ही तरह। मतलब साफ है। अगर प्रचंड बहुमत वाले सरकार के मुखिया
लोगों के सहज सवाल का जवाब नहीं दे सकते, तो कैसे मान लिया जाये कि उनकी मंशा साफ है।
बहरहाल, मुजफ्फरपुर के शांति-प्रिय किसान आंदोलित हैं। सरकार ने 50 एकड़ की विवादित जमीन पर धारा 144 लगा दी है, जिसका अर्थ यह हुआ कि वहां पर फिलहाल कोई गतिविधियां नहीं चलायी जा सकतीं। लेकिन सरकार ने अभी तक विवादित बिंदुओं के समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि इसे लेकर कई बार फैक्ट्री का विरोध कर रहे "खेत बचाओ जीवन बचाओ संघर्ष कमेटी'' संगठन के साथ बातचीत का स्वांग जरूर रचा गया है। लेकिन तमाम अवसरों पर सरकार की करनी और कथनी में कोई सामंजस्य नहीं था। प्रकरण में सरकार और स्थानीय प्रशासन का रूख अब तक एंटी-पीपुल्स ही रहा है, जिसके कारण अब लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है। पिछले दिनों जिला प्रशासन के खिलाफ हजारों लोगों की गोलबंदी इसका सबूत है। संक्षेप में कहें तो एग्रेसिव पूंजीवाद बनाम रूरल इंडिया की टकराहट अब अपने दूसरे दौर में पहुंच गया है। पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में इसका हस्र दुनिया देख चुकी है। अब इसके कदम बिहार की धरती पर पड़ रहे हैं। इतिहास गवाह है कि बिहार की आंदोलन-गर्भा धरती इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। बिहार के लोग अगर अड़ गये, तो परिणाम भीषण होंगे। उम्मीद है आक्रामक पूंजी के नेतृत्वकर्ता इस बात और इसमें निहित खतरे को समझेंगे। क्या बिहार सरकार लगभग पूरी दुनिया में प्रतिबंधित हो चुके कारसीजेनिक (कैंसर पैदा करने वाला) एस्बेस्टस के पक्ष में रहेगी या फिर अपनी जनता की सेहत का ख्याल करेगी ?
3 टिप्पणियां:
यह तो ग़लत है। लोगों की बातें सुननी चाहिए सरकार को।
This is really very good information on asbestos.Please provide some guideline on removing asbestos safely.You can take a look at http://www.asbestosfloortiles.net .Here asbestos related information from google books are scanned and printed.Thanks a lot for valuable information.
@loverboy. thanks for ur kind suggestion.
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