गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

इस बसंत के बाद

चार कट्ठे का वह पीला खेत
सरसों के कुछेक पौधे
अब तक संभाल रखे हैं
बचे-खुचे बसंत को

इस बसंत में
शायद आधे हो गये हैं चाक
आधा कुम्हार
कोने में सिमट चुका है बीधहों में फैला खमहार
मेमनों की बेधड़क हलाली के बाद
शराफत लगभग समाप्त हो चली है

अकेला कवि
आधा कुम्हार
चार कट्टे का खेत
छोटे-छोटे मेमने
आखिर कब तक बचा पायेंगे
समूचे गांव का पूरा बसंत

1 टिप्पणी:

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|