दहाये हुए देस का दर्द-71
इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आइपीसीसी ने पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में बहुत बड़ी बात कही थी। उसने कहा था कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का पहाड़ सबसे ज्यादा उनके ऊपर टूटेगा, जिनका पर्यावरण को बिगाड़ने में सबसे कम योगदान है। वैसे आइपीसीसी का यह सचोद्घाटन रइसों को रास नहीं आयी थी। इसके बाद अमीरों ने वही किया जैसा वे ऐसे मामलों में हमेशा से करते आ रहे हैं। इससे पहले कि गरीबों के हक में कहा गया यह दूरगामी सच आम लोगों तक तक पहुंच पाता, अमीरों ने घिनौनी चाल चल दी। उन्होंने आइपीसीसी की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया। अमीर देशों के अगुवा और विश्व के स्वयं-भू नेता अमेरिका और उसके पिछलग्गुओं ने आइपीसीसी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। उनका षड्यंत्र रंग लाया जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के बहुसंख्यक गरीबों के भविष्य को बचाने का एक प्रयास, सतह पर आने से पहले ही ओझल हो गया। लेकिन हाल के कुछ प्राकृतिक आपदाओं ने आइपीसीसी की रिपोर्ट पर अपनी मुहर जरूर लगा दी है।
कल पूर्वोत्तर बिहार के कोशी अंचल में बिन मौसम भारी ओलावृष्टि हुई। जी नहीं, इसे गोलावृष्टि कहना मुनासिब होगा, क्योंकि ओलों के वजन पांच से दस किलो तक थे। सूचना है कि आसमान से गोले की शक्ल में बरसे ओले ने एक दर्जन लोगों को मौके पर ही खेत कर दिया और करीब चार दर्जन लोगों को मरनासन्न अवस्था में पहुंचा दिया। सैकड़ों घर टूटे और भारी संख्या में मवेशियों के मरने और बड़ी मात्रा में रबी फसलों की तबाही की भी सूचना है। टीन की छत(कोशी इलाके में टीन की छत वाले घर काफी प्रचलित हैं) चलनी में बदल गये। उनमें बड़े-बड़े छेद हो गये। फूस से बने गरीबों के घर तो इन गोलों को दस मिनट भी बर्दाश्त नहीं कर सके।
इन दिनों गेहूं और अन्य शीतकालीन फसलों की सिंचाई-निराई चल रही है, सो किसान अपने-अपने खेतों में थे। शाम का समय था। पहले आसमान का रंग बदला। फिर पश्चिम की ओर से आये बादलों ने इलाके को घेर लिया और मूसलाधार बारिश होने लगी। यहां तक सब कुछ ठीक था, किसानों ने सोचा कि चलो पटवन के डीजल-पेट्रोल से कुछ राहत मिली। वे आसमान के खौफनाक इरादों से पूरी तरह अनभिज्ञ थे। उन्हें कहां मालूम था कि चंद ही मिनटों के बाद आसमान, बर्फ बरसाने वाले तोप में बदल जायेगा। बर्फों के गोले बरसने लगे, जो भाग सके वे बच गये। बांकी या तो अस्पताल या अश्मशान घाट पहुंच गये। किशनगंज में दो बच्चों समेत सुपौल और पूर्णिया में एक-एक महिला और मधेपुरा और अररिया में चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। घायलों के बारे में ठोस सूचना प्रशासन के पास नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि हर गांव को डॉक्टरी मदद की जरूरत है। लगभग हर गांव में दस-बीस लोग घायल हैं।
जी हां, यह जलवायु परिवर्तन का ही दुष्परिणाम है। लेकिन इसमें कोशी इलाके के लोगों का कोई योगदान नहीं। कार्बनडाइआक्साइड उत्सर्जन के मामले में यह इलाका दुनिया में सबसे न्यूनतम पायदान पर है। लेकिन जब पर्यावरण बिगड़ेगा, तो भौगोलिक सीमाओं का ख्याल नहीं करेगा। आइपीसीसी ने भी अपनी रिपोर्ट में यही बात कही थी। उसने कहा था कि पर्यावरण के मामले में करेगा कोई और भरेगा कोई और। आइपीसीसी ने कहा था कि अमीर मुल्क और अमीर लोग पैसे और संसाधन के बल पर पर्यावरण असंतुलन से होने वाले आपदाओं से बहुत हद तक बच जायेंगे, लेकिन गरीब मरने के लिए बाध्य होगा। कल की ओलावारी इसी का एक छोटा उदाहरण है।
कल पूर्वोत्तर बिहार के कोशी अंचल में बिन मौसम भारी ओलावृष्टि हुई। जी नहीं, इसे गोलावृष्टि कहना मुनासिब होगा, क्योंकि ओलों के वजन पांच से दस किलो तक थे। सूचना है कि आसमान से गोले की शक्ल में बरसे ओले ने एक दर्जन लोगों को मौके पर ही खेत कर दिया और करीब चार दर्जन लोगों को मरनासन्न अवस्था में पहुंचा दिया। सैकड़ों घर टूटे और भारी संख्या में मवेशियों के मरने और बड़ी मात्रा में रबी फसलों की तबाही की भी सूचना है। टीन की छत(कोशी इलाके में टीन की छत वाले घर काफी प्रचलित हैं) चलनी में बदल गये। उनमें बड़े-बड़े छेद हो गये। फूस से बने गरीबों के घर तो इन गोलों को दस मिनट भी बर्दाश्त नहीं कर सके।
इन दिनों गेहूं और अन्य शीतकालीन फसलों की सिंचाई-निराई चल रही है, सो किसान अपने-अपने खेतों में थे। शाम का समय था। पहले आसमान का रंग बदला। फिर पश्चिम की ओर से आये बादलों ने इलाके को घेर लिया और मूसलाधार बारिश होने लगी। यहां तक सब कुछ ठीक था, किसानों ने सोचा कि चलो पटवन के डीजल-पेट्रोल से कुछ राहत मिली। वे आसमान के खौफनाक इरादों से पूरी तरह अनभिज्ञ थे। उन्हें कहां मालूम था कि चंद ही मिनटों के बाद आसमान, बर्फ बरसाने वाले तोप में बदल जायेगा। बर्फों के गोले बरसने लगे, जो भाग सके वे बच गये। बांकी या तो अस्पताल या अश्मशान घाट पहुंच गये। किशनगंज में दो बच्चों समेत सुपौल और पूर्णिया में एक-एक महिला और मधेपुरा और अररिया में चार लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। घायलों के बारे में ठोस सूचना प्रशासन के पास नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि हर गांव को डॉक्टरी मदद की जरूरत है। लगभग हर गांव में दस-बीस लोग घायल हैं।
जी हां, यह जलवायु परिवर्तन का ही दुष्परिणाम है। लेकिन इसमें कोशी इलाके के लोगों का कोई योगदान नहीं। कार्बनडाइआक्साइड उत्सर्जन के मामले में यह इलाका दुनिया में सबसे न्यूनतम पायदान पर है। लेकिन जब पर्यावरण बिगड़ेगा, तो भौगोलिक सीमाओं का ख्याल नहीं करेगा। आइपीसीसी ने भी अपनी रिपोर्ट में यही बात कही थी। उसने कहा था कि पर्यावरण के मामले में करेगा कोई और भरेगा कोई और। आइपीसीसी ने कहा था कि अमीर मुल्क और अमीर लोग पैसे और संसाधन के बल पर पर्यावरण असंतुलन से होने वाले आपदाओं से बहुत हद तक बच जायेंगे, लेकिन गरीब मरने के लिए बाध्य होगा। कल की ओलावारी इसी का एक छोटा उदाहरण है।
1 टिप्पणी:
Sach kaha Ranjit ji ... aksar bade log gareebon ko thagte aaye hain ... apne swaarth ke liye .... aur in baaton ka khamiyaaza hamesha se gareeb ko bhugatna padha hai ...
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