मंगलवार, 14 जून 2011

ऐब के लिए भी हुनर चाहिए


दहाये हुए देस का दर्द- 75
गालिब के एक शेर का मिसरा है- ऐब के लिए भी गालिब, हुनर चाहिए। यूं तो अपने देश के नेता गुमराह करने, बरगलाने आदि के फन में माहिर होते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस "कला' में बिहार के नेता सब पर भारी पड़ेंगे। "जंगल राज' के नायक लालू प्रसाद यादव हों या "सुशासन राज' के खिताबधारी नीतीश कुमार, जनता को बरगलाने में कौन किससे कम है, यह तय करना मुश्किल है। लालू सामाजिक न्याय का सोमरस पिलाकर जनता को ठगते रहे और पिछले कुछ साल से नीतीश कुमार "विकसित बिहार', "सुशासन राज'आदि का अफीम सूंघाकर सत्ता की मलाई मार रहे हैं।
कोशी में कुसहा जल-प्रलय के समय नीतीश ने कहा था,"कोशी अंचल को पहले से ज्यादा विकसित बनायेंगे। कुसहा कटाव के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को बक्शा नहीं जायेगा। उन्हें सजा मिलेगी ताकि भविष्य में कोई अभियंता, अधिकारी, ठेकेदार कोई लापरवाही न कर सके। अब सालों भर तटबंधों की निगरानी की जायेगी ताकि बरसात के समय आपातकालीन परिस्थितियां उत्पन्न ही न हो।'í बात माकूल थी, इसलिए बाढ़ में डूबते-उमगते लोगों को भी कुछ भरोसा जागा। अब इस हादसे के तीन साल पूरे होने वाले हैं। लेकिन इन तीन साल का उपसंहार यह है कि नीतीश का एक-एक शब्द झूठा साबित हो चुका है। पुनर्वास का काम अभी तक अधुरा है। कुसहा हादसे के दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों की शिनाख्त तक नहीं हो सकी, सजा तो दूर की बात है।
बहरहाल, बरसात के आगमन के साथ ही कोशी ने "डोल-डालीचा'' कोशी इलाके का एक खेल जिसमें पेड़ पर चढ़ने और उस पर से कूदने की प्रतियोगिता होती है) का खेल शुरू कर दिया है। नदी के साथ अधिकारी- अभियंता-राजनेता; सबके-सब उफान मारने लगे हैं। नदी तटबंध को धमका रही है, तो नेता बड़े अधिकारी को और बड़े अधिकारी छोटे अधिकारी को हड़का रहे हैं- "संभल जाओ नहीं तो भुगतोगे !''  कल की ही बात है। जल संसाधन विभाग के अभियंता प्रमुख ने बीरपुर के मुख्य अभियंता को कहा, कागजबाजी नहीं कीजिये, आदेश का पालन कीजिये। अगर आप नहीं सुधरेंगे तो आपके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। लेकिन ये बीरपुर वाले इंजीनियर साहेब भी कम "जरदगव'' नहीं हैं। कुसहा कांड में केंद्रीय भूमिका निभाने के बावजूद उनका एक रोआं तक कोई नहीं उखाड़ पाया था। उनका कहना है कि तटबंध की सुरक्षा सामग्री के लिए जो टेंडर हुआ है, वह त्रुटिपूर्ण है। हमने जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है, तो पता चला कि सब "कमीशन'' का खेला है। ऊपर वाले अधिकारी नीचे वाले को बाइपास करके सामग्री खरीदना चाह रहे हैं, लेकिन नीचे वाले को यह कतई मंजूर नहीं। भले ही इस बीच कोशी कई कुसहा की पृष्ठभूमि ही न क्यों तैयार कर दे, लेकिन वे ऐसे टेंडरों को कभी पूरे नहीं होने देंगे जो उनसे उनकी बैली आमदनी का हक मार ले।
इसलिए एक बार फिर मुझे "सुशासन बाबू'' के वादे याद आ रहे हैं। उन्होंने बाढ़ के नाम पर लूट मचाने की संस्कृति को खत्म करने के लिए ही कुसहा हादसा के बाद पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त जज न्यायमूर्ति राजेश बालिया के नेतृत्व में कोसी जांच आयोग (कोशी इनक्वायरी कमीशन) का गठन किया था। तब मेरे जैसे लोगों ने राहत की सांस ली थी। हमें उम्मीद थी कि दोषियों को सजा मिलेगी। लाखों लोगों को जल-कीड़ा बनने के लिए मजबूर कर देने वाले "जरदगवों'' को सजा मिलेगी। लेकिन हम इंतजार करके थक गये, आयोग की जांच पूरी नहीं हुई। सरकार के अधिकतर मंत्री को तो अब याद भी नहीं है कि ऐसा कोई आयोग अस्तित्व में है। याद दिलाने पर वे इस सवाल को ऐसे लेते हैं मानो हमने उनसे सहरसा-फारबिसगंज लोकल ट्रेन की समय-सारणी पूछ ली हो।
लेकिन व्यतिरेक देखिये, इलाके में जबर्दस्त प्रचार हो रहा है। लोकल मीडिया में हर दिन खबरें आती हैं कि सरकार तटबंध की सुरक्षा के लिए पूरी तरह मुस्तैद है। सचिवालय से लेकर जिला मुख्यालय तक मोर्चा संभाल लिया है। कोशी में किसी तरह की अनहोनी नहीं होने दी जायेगी। इसलिए, जनता निश्चंत है। गुमराह होना उनकी नियति है। यह सिलसिला हमेशा जारी रहता है। तटबंध टूटने से पहले भी और टूटने के बाद भी जनता सच नहीं जान पाती।  

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