गांव में था
गाड़ी छूट जाती थी
गाड़ी में हूं
गांव छूट गया है
पर सांसें अब तक फुल रही हैं
गांव हो या गुड़गांव
'छूटहों' के लिए
दोनों समानार्थक होते हैं
निरर्थकता का एहसास !
जैसे पटरी जमीन पर नहीं
देह पर बिछी हो
हजारों सफर के बाद
जिन्हें पड़े रहना है
नहीं !
यह बिछुड़न नहीं
विरह के गीत भी नहीं
छूटना
लुप्त होना है
फोन मां को लगाओ
बात मैने से होगी
बेटा परदेश में
बाड़ी के आम कौए खा रहे
कोंटी की लीची, 'खरुवान'
छूटना !!
अंततः दुखना है
कहा था, पेड़ों ने
जिन्हें शाखाविहीन कर दिया था
ज्येष्ठ की आंधी
लाल-लाल लस्से निकल आये थे
पेड़ की देह पर
लस्से का सच कौन बताये
इस तूफानी समय में
सब कुछ लस्सा है
जो छूट गये हैं, जड़ से
लस्से उनकी देह में भी हैं
पेड़ों की तरह बेजुबान
और अव्यक्त
(शब्दार्थ- छूटहा- जो पीछे छूट गये हो। खरुवान- आवारा बच्चों की टोली )
गाड़ी छूट जाती थी
गाड़ी में हूं
गांव छूट गया है
पर सांसें अब तक फुल रही हैं
गांव हो या गुड़गांव
'छूटहों' के लिए
दोनों समानार्थक होते हैं
निरर्थकता का एहसास !
जैसे पटरी जमीन पर नहीं
देह पर बिछी हो
हजारों सफर के बाद
जिन्हें पड़े रहना है
नहीं !
यह बिछुड़न नहीं
विरह के गीत भी नहीं
छूटना
लुप्त होना है
फोन मां को लगाओ
बात मैने से होगी
बेटा परदेश में
बाड़ी के आम कौए खा रहे
कोंटी की लीची, 'खरुवान'
छूटना !!
अंततः दुखना है
कहा था, पेड़ों ने
जिन्हें शाखाविहीन कर दिया था
ज्येष्ठ की आंधी
लाल-लाल लस्से निकल आये थे
पेड़ की देह पर
लस्से का सच कौन बताये
इस तूफानी समय में
सब कुछ लस्सा है
जो छूट गये हैं, जड़ से
लस्से उनकी देह में भी हैं
पेड़ों की तरह बेजुबान
और अव्यक्त
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