उस साल बहुत बारिश हुई थी।
नदी-खेत एकारनल हो गये थे। कोशी के कछार में बनैया सूअरों का प्रकोप कुछ
ज्यादा ही हो गया था। रात में सूअर के झूंड आते और मकई की फसल उजाड़ देते ।
किसानों को मचान बनाकर रात भर पहरा देना पड़ता था। उस किसान के घर में दो ही
समांग थे- बाप और बेटा। शाम से रात 12 बजे तक बेटा खेत पर पहरा देता और
उसके बाद अगली सुबह तक बाप। सदा की तरह रात के 12 बजे किसान बेटे का खाना
लेकर खेत पहुंचा। उसने पूछा- "कोई सूअर तो नहीं आया था, बेटा ? '' बेटे ने
कहा,"बाबू जी, जब तक मैं जगा रहा , चार-पांच आये थे। मैंने सबको दूर खदेड़
दिया। लेकिन सोने के बाद एक भी नहीं आया।'' किसान ने माथा पिट लिया।
गुरुवार, 14 जून 2012
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2 टिप्पणियां:
Ha ha ... Sahi matha peseta hai ...
:):) सब परेशानी जागते हुये ही है
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