वह पानी का जीव कभी नहीं था
पर पानी के पास ही रहता आया, सदियों से
पानी के बिल्कुल पास, मगर लहरों से बहुत दूर
हालांकि युगों के साथ उसके रंग बदलते रहे
लेकिन उसके मुंह का गंध कभी नहीं बदला
रत्ती भर भोथरा नहीं हुआ उसकी चोंच का नोक
तमाम नारे
और तमाम अकाल के बाद भी
वह बगुला ही रहा
पर पानी के पास ही रहता आया, सदियों से
पानी के बिल्कुल पास, मगर लहरों से बहुत दूर
हालांकि युगों के साथ उसके रंग बदलते रहे
लेकिन उसके मुंह का गंध कभी नहीं बदला
रत्ती भर भोथरा नहीं हुआ उसकी चोंच का नोक
तमाम नारे
और तमाम अकाल के बाद भी
वह बगुला ही रहा
2 टिप्पणियां:
बगुला भगत - सटीक और सार्थक
बहुत कुछ कह जाती है रचना ...
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