सोमवार, 25 अगस्त 2008

सरकारों कुछ करो !!!

दहाये हुए देस का दर्द (भाग-2)
रंजीत
नेपाल में कुसहा के पास पूर्वी कोशी तटबंध के टूटने से बिहार के कोशी और पूर्णिया प्रमंडल के जिले- सहरसा, सुपौल, अररिया, मधेपुरा , पूर्णिया में अभूतपूर्व बाढ़ आ गयी है । इस बाढ़ का चरित्र और इससे हो रही तबाही उत्तर बिहार में हर बर्ष आने वाली नियमित बाढ़ के चरित्र और तबाही से पूरी तरह अलग है , जबकि राज्य और केंद्र सरकार इसे नियमित बाढ़ की माइंड सेट में देख रही है। तटबंधों के अंदर कैद पानी समुद्री तूफान की तरह नेपाल के दो जिलों के लगभग 100 गांवों के अलावा कोशी और पूर्णिया प्रमंडल के सैकड़ों गांवाें में घूस रहा है, जहां तटबंध निर्माण के बाद पिछले 50 वर्षोसे बाढ़ नहीं आ रही थी। पानी की तेज प्रवाह के कारण लगातार टूटे हुए तटबंध की चौड़ाई बढ़ रही है और कोशी नदी का 95 प्रतिशत पानी टूटे तटबंधों से बहने लगा है। इस कारण सैकड़ों गांवों में अथाह जल प्रवेश कर रहा है और लगातार प्रभावित क्षेत्रों का क्षेत्रफल बढ़ रहा है। इसे प्राकृतिक आपदा से ज्यादा मानव निर्मित आपदा कहना ज्यादा तर्कसंगत होगा। क्योंिक कोशी नदी के विशेष जल चरित्र (हाइड्रोलॉजी) और विशेष भूगोल को जानने के बावजूद सरकार ने लापरवाही बरती। उल्लेखनीय है कि कोशी नदी में बड़े पैमाने पर सिल्टिंग होती है। इस कारण इसकी धाराएं खिसकती रहती हैं। चूकि कोशी बाराज के पास पानी को रोका जाता है इसलिए बाराज से उत्तर में नदी के बेड लगातार सिल्टिंग के कारण उठते रहते हैं। प्रावधानों के अनुसार बेड की टोपोग्राफी को संतुलित रखने के लिए हर वर्ष अतिरिक्त सिल्टिंग को हटाया जाना चाहिए। लेकिन विगत 20 वर्षों से इस कार्य में भारी लापरवाही बरती गयी। कोशी प्रोजेक्ट लगभग एक दशक से डिफंग है । इसके परिणामस्वरूप तटबंधों के रखरखाव में भारी उदासीनता बरती गयी।
अब जब नदी ने बाराज से उत्तर ही तटबंध को तोड़ दियाा है तो नदी की दक्षिण की ओर निकासी लगभग स्थिर हो गयी है। इसका मतलब यह हुआ कि कोशी और पुर्णिया प्रमंडल में रातों-रात एक नई नदी पैदा हो गयी। अगर किसी सूखे क्षेत्र में अचानक कोई नदी उतर आये तो जो स्थिति हो सकती है कुछ वैसी ही कुछ स्थिति इन दिनों इन क्षेत्रों की है। दूसरी ओर हादसा के एक सप्ताह बाद तक टूटे तटबंध की मरम्मत में भारी लापरवाही बरती गयी। बात को टालने के लिए नेपाल सरकार पर असहयोग का आरोप लगा दिया गया। जबिक वही समय था जब टूटे तटबंध की मरम्मत की जा सकती थी। अब स्थिति इतनी विकराल हो गयी है कि केंद्रीय हस्तक्षेप और विश्व की उन्नत से उन्नत तकनीक का सहारा लिए बगैर नवंबर से पहले टूटे तटबंध को दुरूस्त करना और नदी को अपने पुराने कोर्स में लाना असंभव है। बिहार सरकार स्थिति के विकरालता को अविलंब केंद्र सरकार के पास रखे और अपनी पूरी शक्ति लगाकर तटबंध को मरम्मत करें। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय मदद से भी परहेज नहीं किया जाना चाहिए। नीतीश जी, आप खुद अभियंता हैं, आप स्थिति को समझने की कोशिश कीजिए अन्यथा इतिहास आप लोगों को कभी माफ नहीं करेगा। यह राजनीति नहीं पुरुषार्थ की परीक्षा का समय है।
अगर ऐसा नहीं हुआ तो आगे क्या होगा, इसकी कल्पना से ही किसी जानकार के रोंगटे कांप जा रहे हैं। क्योंकि रिकार्ड के अनुसार कोशी नदी में सितंबर में सबसे ज्यादा पानी निष्कासित होता है। कभी-कभी यह 10 लाख क्यूसेक तक पहुंच जाता है। अभी नदी में महज 1 लाख क्यूसेक पानी ही डिस्चार्ज हो रहा हैऔर इतने पानी ही सैकड़ों गांवों को लील चुका है अगर 10 लाख क्यूसेक पानी टूटे तटबंधों से बहने लगेगा तो इन चारों जिलों के कई गांव और शहर बाद में ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे।

(भाग २ में हम किन्हीं कारणवश कोशी का वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं , लेकिन यह हम जल्द आपके पास लेकर आयेंगे )

कोई टिप्पणी नहीं: