सच है कि आज समाज के जीवन-दर्शन, जीवन-मूल्य, जीवन-मकसदों में क्रांतिकारी परिवर्तन आ चुका है। समाज स्वकेंद्रित और क्षणजीवि हो चला है। किसी को किसी बात से तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता है , जब तक वह बात उसके हित-अहित से सीधे तौर पर जुड़ न जाती हो। ऐसा तभी हो सकता है, जब इंसान भविष्य के बारे में, चल रहे क्रिया-कलाप, संस्कृति-प्रवृत्ति के दूरगामी प्रभाव के बारे में विचार करना (सपना देखना) छोड़ दे। इसलिए आज जो कोई भी अन्याय, असमानता, स्वकेंद्रित जीवन शैली आदि सामाजिक विघटन के बारे में सोच रहे हैं, इन दुष्प्रवितियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, वे वंदनीय हैं। क्षणजीवि सभ्यता भले इस सच्चाई से मुंह मोड़ ले, लेकिन आगामी पीढ़ियां इसका हिसाब-किताब जरूर लगायेगी।
बहरहाल, नये वर्ष के उपलक्ष्य में यहां ऐसे ही एक सख्श की कलाकृति लगा रहा हूं, जो सपने देखता है और समकालीन समस्याओं और दुष्प्रवृत्तियों के खिलाफ आवाज उठाने में भी विश्वास रखता है। इनका नाम है- पिनाकी राय। पिनाकी ने इस बार नव वर्ष-2010 के उपलक्ष्य में देश में कम होते वोटिंग परसेंट को अपने कार्ड में उकेरा है। पिनाकी पिछले 15 वर्षों से लगातार राष्ट्रीय एकता के लिए ग्रीटिंग कार्ड बना रहे हैं। आप भी इस पर गौर फरमाएं।
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा आलेख।
अच्छा लिखा है रंजीत जी ..................आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारक बाद ...........
एक टिप्पणी भेजें