सोमवार, 23 अगस्त 2010

बिना विचारे बिन पछताये

कोफ्त होती है, झल्लाहट और आक्रोश से मन भर जाता है, जब अपनी बिरादरी के लोगों को बार-बार बचकाना गलती करते देखता हूं। इसलिए नहीं कि ये गलती करते हैं, क्योंकि गलती किसी से हो सकती है। दुख तो इस बात का है कि आज पत्रकारों ने लापरवाही को अपना शगल बना लिया है। विषय को बिना जाने ही पन्ने रंग देते हैं, प्रक्रिया को समझे बगैर निष्कर्ष निकाल देते हैं। कोई अपराधियों को "अपराधकर्मी' लिखते हैं, कोई केंद्रीय रेल मंत्री लिख देते हैं। "सुप्रीमो' जैसे शब्द तो खैर अब मान्यता हासिल कर चुका है, लेकिन "बवाल काटना' का इस्तेमाल भी खूब हो रहा है। यहां तक कि कोई-कोई पत्रकार राज्यपाल-राष्ट्रपति से लोकसभा-विधानसभा में विधेयक तक पारित करवा देते हैं। संसदीय समिति की सिफारिश को कानून बता देते हैं । जांच आयोग की सिफारिश के आधार पर किसी को ऐसे दोषी ठहरा देते हैं, मानो आयोग कोई न्यायालय हो। सेना की गतिविधियों को भी प्रशासनिक कार्रवाई बताने से इन्हें गुरेज नहीं। चुनाव के समय कई संवाददाता सेना और अर्द्धसैनिक बलों को भी प्राथमिकी लेते बता देते हैं, जिन्हें नहीं मालूम होता कि जिला प्रशासन और सेना में क्या अंतर है।
अभी पीटीआइ के एक संवाददाता ने लिख दिया कि "नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाने के कारण उत्तर प्रदेश में बाढ़'। साधारण-सी बात है कि नदी का पानी वही छोड़ सकता है, जिसके पास पानी स्टोर करने का मैकेनिज्म हो। नेपाल से निकलने वाली नदियों पर कहीं भी नेपाली बांध या बाराज नहीं है। जो इक्के-दुक्के बाराज हैं, उन पर भारत की सरकारों (राज्य सरकार) का पूर्ण नियंत्रण है, तो फिर नेपाल कैसे पानी छोड़ सकता है ? पता नहीं क्यों पत्रकार इस बात को समझने की कोशिश नहीं करते। जब कभी बिहार और उत्तर प्रदेश की नदियों में पानी बढ़ता है, संवाददाता लिखना शुरू कर देते हैं कि ऐसा नेपाल द्वारा भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने के कारण हुआ। स्थानीय स्ट्रिंगर या संवादसूत्र द्वारा ऐसी गलती हो, तो बात समझी जा सकती है क्योंकि वे तकनीकी रूप से न तो प्रशिक्षित हैं और न ही उन्हें विषय को समझने का अवसर मिलता है। लेकिन पीटीआइ के संवाददाता अगर इस तरह की गलती करे तो उसे लापरवाही ही कही जायेगी। यही कारण है कि नेपाल के एक जल विशेषज्ञ रतन भंडारी ने इसे पीतपत्रकारिता कह दिया है। समाज के आंख-कान माने जाने वाले पत्रकारों का इस कदर अंधा और बहरा व्यवहार, पता नहीं मीडिया की छवि को किस रसातल पर ले जाकर छोड़ेगा।
रतन भंडारी का मेल


PTI's yellow journalism!!! Koshi, Gandak and Sarda (Banbasa), Tanakpur dams and barrages built by Govt of India just near Nepal-India border. All these controversial dams and barrages are based on equal treaties and fully control by Indian government!!! Govt of India taking all advantage from these projects. Indian Govt. has built other controversial dam called Girijapuri barrage which is located 20 KM downstream of the Nepal-India border!! So how can Nepal release water from these dam ????? nonsense news !!!!!


2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रंजीत जी ... ये पत्रकार तो आजकल पुलिस से भी ज़्यादा ताक़त रखते हैं ... ये तो आका हैं आजकल ... जो भी कहें वही सत्य है .... किसी को भी अपराधी तो ये मिनटों में बनवा देते हैं आजकल ...

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति!