अपने वजूद की पतंग में
अक्सर भरोसे की डोरी बांधता हूं
और
उस मैदान का आंसू पोंछता हूं
जिसका धावक दौड़ हार गया है
भरोसा जरूरी है
आदमी के लिए
मैं भटकी नदी को समुद्र का पता बताता हूं
बछड़ा जरूर कूदेगा
मैं उख़ड़े खूंटे गाड़ रहा हूं
अक्सर भरोसे की डोरी बांधता हूं
और
उस मैदान का आंसू पोंछता हूं
जिसका धावक दौड़ हार गया है
भरोसा जरूरी है
आदमी के लिए
मैं भटकी नदी को समुद्र का पता बताता हूं
बछड़ा जरूर कूदेगा
मैं उख़ड़े खूंटे गाड़ रहा हूं
5 टिप्पणियां:
भरोसा ज़रूरी है और भरोसा दिलाने वाले भी !
आमीन
bharosa jb had se jayada ho jata hai ,to nadiya b apna kinara badal leti hai....samundar bhi awak sa reh jata hai,nadiyo ke bichhrne se bechain sa hojata ,,,,
http://priyankabarsaiya.blogspot.in/
बढ़िया कविता है. हौसला बढ़ानेवाला.बधाई.
गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन के सम्बन्ध में उमा जी से बात हुई? इसके गठन के लिए ४ नवंबर को अपराहन ३ बजे से आइएसएम, धनबाद में बैठक रखी गयी है. आपकी शिरकत होनी चाहिए.
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