मंगलवार, 25 सितंबर 2012

भरोसा

  
   अपने वजूद की  पतंग में
   अक्सर भरोसे की डोरी बांधता हूं
   और
   उस मैदान का आंसू पोंछता हूं
   जिसका धावक दौड़ हार गया है
   भरोसा जरूरी है
   आदमी के लिए
   मैं भटकी नदी को समुद्र का पता बताता हूं
   बछड़ा जरूर कूदेगा  
   मैं उख़ड़े खूंटे गाड़ रहा हूं

5 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

भरोसा ज़रूरी है और भरोसा दिलाने वाले भी !

राजन अग्रवाल ने कहा…

आमीन

priyanka barsaiya ने कहा…

bharosa jb had se jayada ho jata hai ,to nadiya b apna kinara badal leti hai....samundar bhi awak sa reh jata hai,nadiyo ke bichhrne se bechain sa hojata ,,,,

priyanka barsaiya ने कहा…

http://priyankabarsaiya.blogspot.in/

devendra gautam ने कहा…

बढ़िया कविता है. हौसला बढ़ानेवाला.बधाई.

गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन के सम्बन्ध में उमा जी से बात हुई? इसके गठन के लिए ४ नवंबर को अपराहन ३ बजे से आइएसएम, धनबाद में बैठक रखी गयी है. आपकी शिरकत होनी चाहिए.