दूरसंचार क्रांति के अद्भूत यंत्र यानी मोबाइल फोन ने भौगोलिक दूरियां खत्म कर दी है। निश्चित रूप से इससे मानव-विकास की प्रक्रिया को रफ्तार मिली है और दूरी के कारण कमजोर पड़ते सामाजिक-रिश्ते को नया जान मिला है। चंद शब्दों में इसके फायदे नहीं गिनाये जा सकते। लेकिन अगर आम आदमी में जागरूकता न हो तो यह यंत्र कहर का सबब भी बन सकता है। इसका एक उदाहरण कल झारखंड और बिहार में देखने को मिला । कल तकरीबन 24 घंटे तक झारखंड और बिहार के लाखों लोग भयानक दहशत में रहे। एक शक ने अफवाह का रूप धारण कर लिया और देखते ही देखते दोनों सूबे में कोहराम मच गया। अफवाह यह उ़ड़ी कि मेहंदी लगाने से लड़कियों की मौत हो रही है। हालांकि सच्चाई यह थी कुछ जगह मेहंदी लगाने के बाद लड़कियों को एलर्जी की समस्या हुई थी। लेकिन बात का बतंगड़ बनाकर इसे जानलेवा करार दिया गया। सुनी सुनाई बातों पर लोग यकीन करने लगे और अपने सगे-संबंधियों को तुरंत फोन पर इसकी सूचना देने लगे। जुबान-दर-जुबान अफवाह में मिर्च-मसाले लगते गये और रात तक दोनों सूबे के कई शहरों में कोहराम मच गया। घबड़ाकर बदहवास हुये लोगों से अस्पताल भरने लगे। बड़ी संख्या में औरतें-लड़कियां डर के मारे बदहवास होने लगी। इस तरह एक काल्पनिक रोग के भय के चलते वास्तव में बीमार होने लगे। बदहवासी अपने-आप एक गंभीर बीमारी है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक दुनिया में जितने लोग सांप के विष से नहीं मरते उससे कहीं ज्यादा सर्प दंश के भय से उपजे बदहवासी के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं।
कहा जाता है कि कल सुबह रांची के निकट ओरमांझी कस्बे के चकला गांव से यह अफवाह उड़ी कि मेंहदी लगाने से 11 बच्चियों की मौत हो गयी है। संबंधित क्षेत्रों की कुछ मस्जिदों से भी एेलान किया गया कि बच्चियां मेंहदी न लगाये, जिसने लगाया हो वह तत्काल धो ले। इसके बाद अस्पतालों में बच्चियां और महिलाएं तबीयत खराब होने की शिकायत लेकर पहुंचने लगीं। इनमें कुछ हाथ में जलन,कुछ बदन में दर्द तो कुछ ने कंपकंपी की शिकयत की।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह अफवाह ठीक ईद के चांद देखने के बाद फैली। जिसके कारण हजारों लोग पर्व का आनन्द भी नहीं उठा सके। कहां तो उत्सव का दिन था और लोग सुबह से पर्व मनाने की तैयारी कर रहे थे और कहां अफवाह के कारण सारे उत्साह भय और तखलीफ तब्दील हो गये। गौरतलब है कि बिहार और झारखंड में ईद के चांद दिखने के बाद औरतें मेहंदी लगाती हैं। चूंकि कई जगह मस्जिद से लाउडस्पीकरों के जरिये मेंहंदी लगाने से मना किया गया, इसलिए लोग ज्यादा भयभीत हो गये। अफवाहों से निपटने के लिए प्रशासन की ओर से जो प्रयास होना चाहिए वह नहीं हो सका। यह चिंता की बात है। लेकिन उससे भी ज्यादा चिंताजनक है- आम आदमी की अज्ञानता और भेड़िया-धंसान वाली मानसिकता। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि लोग बगैर अपनी आंखों से देखे और बुद्धि से परखे ही मोबाइल का बटन दबाना चालू कर देते हैं। पता नहीं इसमें उन्हें क्या मजा आता है, लेकिन मैंने देखा है कि ऐसी अफवाह फैलाने में कुछ लोगों को मजा आता है। वे कभी मोबाइल में विस्फोट की अफवाह फैलाते हैं तो कभी गणेश जी को दूध पिलाने लगते हैं। यह संचार के इस क्रांतिकारी यंत्र के दुरूपयोग का जीता-जागता नमूना है। सच तो यह कि हर प्रौद्योगिकी अपने साथ-साथ दुरूपयोग की संभावना भी लेकर आती है। यह तो उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसका कितना सदपयोग करते हैं और कितना दुरूपयोग।
वैसे आजकल सौंदर्य प्रसाधन में मिलावट की बात आम हो गयी है। अब वे दिन लद गये जब लोग अपने बाड़ी से मेंहंदी के पात चुनकर लाते थे और घर में इसे तैयार करते थे। अब मेहंदी भी पाउच में आने लगी है जो हर्बल न होकर केमिकल है। साबित तथ्य है कि केमिकल पदार्थों के मिश्रण के अनुपात में थोड़ी गड़बड़ी होने से दवा जहर बन जाती है। लेकिन जिस देश में दवा में मिलावट रोक पाने में सरकार असक्षम हो वहां मेहंदी की मिलावट को कौन रोकेगा ? अब देखने की बात है कि इसे लेकर कोई कार्रवाई होती है या फिर ' दिन गये बात गयी' की तर्ज पर ही इस मामले को भी निपटा दिया जाता है।
कहा जाता है कि कल सुबह रांची के निकट ओरमांझी कस्बे के चकला गांव से यह अफवाह उड़ी कि मेंहदी लगाने से 11 बच्चियों की मौत हो गयी है। संबंधित क्षेत्रों की कुछ मस्जिदों से भी एेलान किया गया कि बच्चियां मेंहदी न लगाये, जिसने लगाया हो वह तत्काल धो ले। इसके बाद अस्पतालों में बच्चियां और महिलाएं तबीयत खराब होने की शिकायत लेकर पहुंचने लगीं। इनमें कुछ हाथ में जलन,कुछ बदन में दर्द तो कुछ ने कंपकंपी की शिकयत की।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह अफवाह ठीक ईद के चांद देखने के बाद फैली। जिसके कारण हजारों लोग पर्व का आनन्द भी नहीं उठा सके। कहां तो उत्सव का दिन था और लोग सुबह से पर्व मनाने की तैयारी कर रहे थे और कहां अफवाह के कारण सारे उत्साह भय और तखलीफ तब्दील हो गये। गौरतलब है कि बिहार और झारखंड में ईद के चांद दिखने के बाद औरतें मेहंदी लगाती हैं। चूंकि कई जगह मस्जिद से लाउडस्पीकरों के जरिये मेंहंदी लगाने से मना किया गया, इसलिए लोग ज्यादा भयभीत हो गये। अफवाहों से निपटने के लिए प्रशासन की ओर से जो प्रयास होना चाहिए वह नहीं हो सका। यह चिंता की बात है। लेकिन उससे भी ज्यादा चिंताजनक है- आम आदमी की अज्ञानता और भेड़िया-धंसान वाली मानसिकता। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि लोग बगैर अपनी आंखों से देखे और बुद्धि से परखे ही मोबाइल का बटन दबाना चालू कर देते हैं। पता नहीं इसमें उन्हें क्या मजा आता है, लेकिन मैंने देखा है कि ऐसी अफवाह फैलाने में कुछ लोगों को मजा आता है। वे कभी मोबाइल में विस्फोट की अफवाह फैलाते हैं तो कभी गणेश जी को दूध पिलाने लगते हैं। यह संचार के इस क्रांतिकारी यंत्र के दुरूपयोग का जीता-जागता नमूना है। सच तो यह कि हर प्रौद्योगिकी अपने साथ-साथ दुरूपयोग की संभावना भी लेकर आती है। यह तो उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वह उसका कितना सदपयोग करते हैं और कितना दुरूपयोग।
वैसे आजकल सौंदर्य प्रसाधन में मिलावट की बात आम हो गयी है। अब वे दिन लद गये जब लोग अपने बाड़ी से मेंहंदी के पात चुनकर लाते थे और घर में इसे तैयार करते थे। अब मेहंदी भी पाउच में आने लगी है जो हर्बल न होकर केमिकल है। साबित तथ्य है कि केमिकल पदार्थों के मिश्रण के अनुपात में थोड़ी गड़बड़ी होने से दवा जहर बन जाती है। लेकिन जिस देश में दवा में मिलावट रोक पाने में सरकार असक्षम हो वहां मेहंदी की मिलावट को कौन रोकेगा ? अब देखने की बात है कि इसे लेकर कोई कार्रवाई होती है या फिर ' दिन गये बात गयी' की तर्ज पर ही इस मामले को भी निपटा दिया जाता है।
3 टिप्पणियां:
ज्ञान के प्रसार के पहले वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रसार होगा .. तो इस तरह की परिस्थिति को झेलने को मजबूर होंगे ही हम ..और एक सटीक बात कही है आपने
जिस देश में दवा में मिलावट रोक पाने में सरकार असक्षम हो वहां मेहंदी की मिलावट को कौन रोकेगा ? ..
ऐसी स्थिति में भाग्य भरोसे ही जीने को मजबूर होंगे ही लोग !!
य़दि लोग जागरूक हों तो ऐसी अफवाहों को कहर ढाने से रोका जा सकता है । वरना भेडचाल में तो कुछ भी होता है । कहते हैं न सबसे बडा डर, डर स्वयं ही है ।
जब मोबाइल नहीं था, तब भी अफ़वाहें फैलती थीं. कभी गणेश जी दूध पीने लगते थे तो कभी धरती पलटने लगती थी. असल बात यह है कि हम मनुष्यों के अपने कान में फिल्टर की कमी के कारण यह सब होता है.
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