सड़कों पर चलने के लिए
शायरन और लालबत्तियां अनिवार्य हो जायेंगी
और टेलीविजन के सीरियल
घर में रहने की शर्त बन जायेंगे
तो वह देहाती आदमी
खिड़की के रास्ते लौट जायेगा अपना गांव
जहां के मेड़ पांवों में नहीं चुभते
और आज भी
'आदमी' कोई एक्सक्लूसिव न्यूज नहीं होता
एक दिन वह देहाती आदमी
इस शहर को राम-राम कहेगा
सड़कों पर रोप देगा मुलायम दूब
झोपड़ी के बच्चों में बांट देगा
मंडी के सब अमरूद
उठती इमारतों में लगा देगा
बांस का सोंगर
और संसद के सामने गायेगा आल्हा-उदल
और हां !
वह देहाती आदमी
जाते-जाते एक पत्थर जरूर फेंकेगा
शहर के सबसे सुरक्षित घर पर
शायरन और लालबत्तियां अनिवार्य हो जायेंगी
और टेलीविजन के सीरियल
घर में रहने की शर्त बन जायेंगे
तो वह देहाती आदमी
खिड़की के रास्ते लौट जायेगा अपना गांव
जहां के मेड़ पांवों में नहीं चुभते
और आज भी
'आदमी' कोई एक्सक्लूसिव न्यूज नहीं होता
एक दिन वह देहाती आदमी
इस शहर को राम-राम कहेगा
सड़कों पर रोप देगा मुलायम दूब
झोपड़ी के बच्चों में बांट देगा
मंडी के सब अमरूद
उठती इमारतों में लगा देगा
बांस का सोंगर
और संसद के सामने गायेगा आल्हा-उदल
और हां !
वह देहाती आदमी
जाते-जाते एक पत्थर जरूर फेंकेगा
शहर के सबसे सुरक्षित घर पर
6 टिप्पणियां:
काश वो देहाती आदमी अपनी जड़ को पहचाने और जल्दी अपने घर आए ... इसी घर में उसके प्राण हैं ...
इंसान अपने जड़ से जुदा हो गया है ... इसलिए एक्स्क्लुसिव निउज़ बन गया है ....
बहुत सुन्दर रचना है !
Wah! bahoot khoob .kya baat kahi hai aapne.
poonam
"एक दिन वह देहाती आदमी
इस शहर को राम-राम कहेगा
सड़कों पर रोप देगा मुलायम दूब
झोपड़ी के बच्चों में बांट देगा"
अगर जा सकता है तो जरुर जाये लेकिन लगता नहीं कि वो जायेगा क्योंकि आज वहां भी कुछ ऐसा ही पायेगा - प्रेरक रचना के लिए आपको बधाई
कहतें हैं की सभ्यता की शुरुयात शहरी करण ( नगरों के साथ हुयी. हड़प्पा और मोहन -जो-दाड़ो को याद करें ) के साथ हुयी. मानवता के इतिहास में शहरों का उदय एक महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु है. शहर और गाँव परस्पर एक दूसरे के negation नहीं माने जा सकते.
कविता का स्वर एक आत्म -निर्वासित व्यक्ति -जो शहर में रहने को मजबूर है और जिसे गाँव की sanitised ( कहें तो dettol से धो पोछ कर साफ़ सुथरी की हुयी ) काल्पनिक तस्वीर
का सम्मोहन्न व्याकुल किये हुए है - का सा लगता है.संभावनाएं तो मुझे , सच कहूं तो गाँव और शहर दोनों में दिखती है.
कविता की बिम्ब योजना , हर बार की तरह मन मोहक है. पर गाँव में हर कुछ रूमानी नहीं है.
सादर
jee kaushal jee. gawan me V har kuch manmafik nahin hai. Balki kuch biduon par patan sahar se V jyada hua hai.
lekin kavita ke "Shahar " ko sambednatamak patan kaa prateek aur "Gawan" ko jeevantta ka prateek mana jaye to mujhe jyada khusee hogee.
apko bahut-bahut dhanyawaad.
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