बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का "विश्वास मेल'' आज कालजयी कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म भूमि औराही हिंगना (सिमराहा) पहुंचने वाला है। कोशी अंचल में मुख्यमंत्री की विश्वास यात्रा का यह अंतिम पड़ाव होगा। मुख्यमंत्री का "विश्वास मेल'' सहरसा, सुपौल, कटिहार और मधेपुरा से गुजर चुका है। मुझे नहीं मालूम कि इन जिलों के लोगों का विश्वास जीतने में मुख्यमंत्री कितने कामयाब हुये। हालांकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि कोशी अंचल की लगभग एक करोड़ आबादी बड़ी बेसब्री से नीतीश के "विश्वास मेल' का बाट जोह रही थी। लोग जानना चाहते थे कि कुसहा हादसा के बाद मुख्यमंत्री ने उनसे जो बड़े-बड़े वादे किए थे, उनका क्या हुआ। कहे थे कि पहले से बढ़िया कोशी अंचल बनायेंगे। उखड़े हुए खूंटे फिर से गाड़ेंगे और कोशी की प्रचंड धारा में भसिया गयी बस्तियों को दोबारा बसायेंगे। रेत के कारण परती (बंजर) हुई जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए हर संभव उपाय किया जायेगा। किसानों को ट्रेनिंग दी जायेगी, मिट्टी की जांच होगी वगैरह-वगैरह। अब जब "विश्वास मेल'' पास कर गया है, तो कुछ दिल फेंक युवक कहते हैं- "...वादे तो टूट जाते हैं।'' बात सही भी है। वादे तो प्रधानमंत्री ने भी तोड़ दिया। राष्ट्रीय आपदा कहकर जो दिल्ली गये, सो गये ही रह गये।
आखिर वही हुआ जो कोशी में सदियों से होता आ रहा है। पहले बाढ़ फिर विपत्ति और उसके बाद परती खेतों की अंतहीन परिकथा- परती परिकथा। वही फणीश्वरनाथ रेणु की "परती परिकथा।'' दूर-दूर तक रेत ही रेतऔर रेत से लड़ती मानवीय जिजीविषा। मानो कह रहे हो, नियति को जो हो मंजूर, हम तो हार नहीं मानेंगे। कुछ ने ककड़ी लगायी, कुछ ने खिरा, कहीं-कहीं परबल... लेकिन लाख प्रयास के बाद भी धान और गेहूं इन रेतों में नहीं उगे।
दिन बीता, महीने बीते और अब तो कुसहा की दूसरी वर्षी भी आने वाली है। लेकिन न तो परती जमीन में फसल लहलहाई और न ही उखड़े हुए खूंटे पर टाट और ठाट चढ़े। लेकिन हर गांव में कुछ आलीशान मकान जरूर बन गये हैं। मुखिया, वार्ड सदस्य, प्रखंड सदस्य और पंचायत सेवक साहेब लोगों के दोनों गाल में पान ही पान है। बीडीओ, प्रखंड प्रमुख और जिला पार्षदों का क्या कहना ! उनकी तो दसों उंगली घी में है। मजाल है कि आप उनसे कबूल करवा लें कि कोशी त्रासदी के भुक्तभोगियों को कुछ नहीं मिला। "पान तो आप खा गये, लोगों को तो उसकी डंटी भी नहीं मिली हजूर ?''। ऐसा कहते ही वे जोर से ठहाका लगायेंगे। गलफर के कोने से लीक करते पान के पीत को आपकी धोती से पोंछ लेंगे। अगर आपके ताल्लुकात कलम-अखबार या कैमरा-माइक आदि से है, तो वे आप के साथ हल्की-फुल्की दिललगी भी कर लेंगे। यह जताने के लिए वे आपकी बात को लंगोटिया यार की तरह ले रहे हैं, अगर दूसरा कोई होता तो बीच सड़क पर दौड़ा देते। बोलेंगे, "आप भी न गजबे करते हैं। मुख्यमंत्री का प्रोग्राम चल रहा है यार। काहे दाल-भात में मूसलचंद बनते हो, फटे में टांग डालते हो जी!''
पर मुख्यमंत्री को विश्वास चाहिए। जनता का विश्वास ! इसलिए वे सभाओं में ब्यौरे दे रहे हैं। पुरानी योजनाओं की खूबी गिना रहे हैं और नयी योजनाओं की धड़ाधड़ घोषणा भी कर रहे हैं। पर पिछली घोषणाओं का मूल्यांकन करना नहीं चाहते। स्थानीय-नेता और अधिकारी ने जो कह दिया, वह ब्रह्म बात। वही एक सांच, बाकी सब झूठ। रेणुग्राम में भी यही सब होना है। यह रेणु के देहावसान के चार दशक बाद की "परती परिकथा'' है। चचा फणीसर, आप नहीं रहे, लेकिन कोशी की धरती पर परती की परिकथा जारी है।
आखिर वही हुआ जो कोशी में सदियों से होता आ रहा है। पहले बाढ़ फिर विपत्ति और उसके बाद परती खेतों की अंतहीन परिकथा- परती परिकथा। वही फणीश्वरनाथ रेणु की "परती परिकथा।'' दूर-दूर तक रेत ही रेतऔर रेत से लड़ती मानवीय जिजीविषा। मानो कह रहे हो, नियति को जो हो मंजूर, हम तो हार नहीं मानेंगे। कुछ ने ककड़ी लगायी, कुछ ने खिरा, कहीं-कहीं परबल... लेकिन लाख प्रयास के बाद भी धान और गेहूं इन रेतों में नहीं उगे।
दिन बीता, महीने बीते और अब तो कुसहा की दूसरी वर्षी भी आने वाली है। लेकिन न तो परती जमीन में फसल लहलहाई और न ही उखड़े हुए खूंटे पर टाट और ठाट चढ़े। लेकिन हर गांव में कुछ आलीशान मकान जरूर बन गये हैं। मुखिया, वार्ड सदस्य, प्रखंड सदस्य और पंचायत सेवक साहेब लोगों के दोनों गाल में पान ही पान है। बीडीओ, प्रखंड प्रमुख और जिला पार्षदों का क्या कहना ! उनकी तो दसों उंगली घी में है। मजाल है कि आप उनसे कबूल करवा लें कि कोशी त्रासदी के भुक्तभोगियों को कुछ नहीं मिला। "पान तो आप खा गये, लोगों को तो उसकी डंटी भी नहीं मिली हजूर ?''। ऐसा कहते ही वे जोर से ठहाका लगायेंगे। गलफर के कोने से लीक करते पान के पीत को आपकी धोती से पोंछ लेंगे। अगर आपके ताल्लुकात कलम-अखबार या कैमरा-माइक आदि से है, तो वे आप के साथ हल्की-फुल्की दिललगी भी कर लेंगे। यह जताने के लिए वे आपकी बात को लंगोटिया यार की तरह ले रहे हैं, अगर दूसरा कोई होता तो बीच सड़क पर दौड़ा देते। बोलेंगे, "आप भी न गजबे करते हैं। मुख्यमंत्री का प्रोग्राम चल रहा है यार। काहे दाल-भात में मूसलचंद बनते हो, फटे में टांग डालते हो जी!''
पर मुख्यमंत्री को विश्वास चाहिए। जनता का विश्वास ! इसलिए वे सभाओं में ब्यौरे दे रहे हैं। पुरानी योजनाओं की खूबी गिना रहे हैं और नयी योजनाओं की धड़ाधड़ घोषणा भी कर रहे हैं। पर पिछली घोषणाओं का मूल्यांकन करना नहीं चाहते। स्थानीय-नेता और अधिकारी ने जो कह दिया, वह ब्रह्म बात। वही एक सांच, बाकी सब झूठ। रेणुग्राम में भी यही सब होना है। यह रेणु के देहावसान के चार दशक बाद की "परती परिकथा'' है। चचा फणीसर, आप नहीं रहे, लेकिन कोशी की धरती पर परती की परिकथा जारी है।
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