रविवार, 29 जुलाई 2012
शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
बुधवार, 18 जुलाई 2012
दर्द न मिले, तो दुखता है
दर्द !
अब न मिले
तो दुखता है
नहीं बंधु !!
घाव नहीं है यह
हथेली का ठेल्ला (गांठ) है
कुदाली दो पारने को
पत्थर दो तोड़ने को
बस यही एक दवा है
नहीं !!!
नहीं लगती चोट
इस बात को लेकर
जी अक्सर कचोटता है
सोमवार, 16 जुलाई 2012
... तो पैदल हो जायेंगे कोशीवासी
फनगो हाल्ट के पास कोशी का कटाव |
दहाये हुए देस का दर्द- 83
डुमरी पुल के बेकाम होने के बाद से सहरसा, खगड़िया, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया जिलों के करीब 30-35 लाख लोगों को बाहर ले जाने का एक मात्र रास्ता सहरसा-मानसी रेल-लाइन है। यह एक लूप लाइन है, जिसकी उपेक्षा की अपनी अलग कहानी है। एक बार फिर इस लाइन पर कोशी मैया का कोप टूटा है। कोई छह गाड़ियां रद्द की जा चुकी हैं और अगर मैया नहीं मानी तो एक-दो दिनों में ही पटरी पर गाड़ी नहीं नदी की धारा चलेगी। मिली जानकारी के अनुसार, कोपरिया और धमारा स्टेशन के बीच फनगो हॉल्ट के समीप नदी की एक धारा राह भटक गयी है। वह अपने निर्धारित रास्ते से बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्ट के कारण निर्धारित चैनल में शायद कोई बड़ा डेल्टा बन गया है, जो धारा को पार्श्व की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। लेकिन पार्श्व में रेलवे लाइन अवरोधक बन रही है। इसलिए नदी इसे जोर-जोर से खुरच रही है। आलम यह है कि करीब 50 मीटर की लंबाई में नदी और पटरी के बीच मीटर-दो मीटर का फासला ही बचा है। रेलवे के इंजीनियर बोल्डर और क्रेटर के जरिये इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए भारी संख्या में मजदूर लगाये गये हैं। बावजूद इसके इंजीनियर साहेब लोग यह कहने में असक्षम हैं कि वे पटरी को बचा पायेंगे या नहीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छह सवारी गाड़ियों का परिचालन रद्द किया जा चुका है। इनमें सहरसा-मधेपुरा (55555/56), सहरसा-मानसी (55569/70) और सहरसा-समस्तीपुर सवारी गाड़ियां शामिल हैं। जनसेवा एक्सप्रेस, हाटे बजारे एक्सप्रेस, कोशी एक्सप्रेस तथा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन तो हो रहा है, लेकिन ये गाड़ियां तय समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं। अब जबकि रेलवे और राज्य सरकार के विशेषज्ञ इंजीनियर आगामी स्थिति को लेकर अनिश्चित हैं, तो मैंने अपने कोशी विशेषज्ञों से जानना चाहा कि आगे क्या संभावना बन सकती है। लगभग सभी ने कहा कि अगर चार-पांच दिनों तक पानी के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी या घटोतरी नहीं हुई तो संभव है कि पटरी बच जाये। पानी अगर तेजी से कम या ज्यादा हुआ, तो बोल्डर और क्रेटर के पहाड़ भी रेल लाइन को नहीं बचा पायेंगे। पानी का लेवल गिरेगा तो नदी को मुख्य धारा में बने डेल्टा को पार करने में भारी दिक्कत होगी, लेकिन उसकी बहाव-शक्ति में इजाफा होगा। परिणामस्वरूप पटरी की ओर बहने का प्रयास कर रही धारा और जोर से कटाव करने लगेगी। अगर लंबे समय तक स्तर बरकरार रहा, तो संभव है कि नदी डेल्टा को तोड़कर मुख्य धारा में बहने लगे और पटरी को बख्श दे। समस्तीपुर मंडल कार्यालय के अनुसार, कटाव रोकने के लिए 109 बैगन बोल्डर उझला जा चुका है। 500 मजदूर दिन-रात कटाव निरोधक काम में लगे हैं। अभियंताओं की 15 टोली लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले ही सहरसा-मानसी के बीच पटरी का अपग्रेडेशन हुआ था। पुरानी छोटी लाइन से अलग हटकर बड़ी लाइन के लिए पुल बनाये गये थे। उस समय भी गैर-सरकारी नदी विशेषज्ञों ने पटरी और नदी के अलाइनमेंट को लेकर सवाल खड़े किये थे। लेकिन उनकी बातें नहीं सुनी गयीं। यही कारण है कि हर साल बरसात के मौसम में मानसी से लेकर सिमरी बख्तियारपुर तक भारी जल-जमाव होता है। कोशी और बागमती की विभिन्न धाराएं पटरी और पुलों की इस "रामसेतु' के बीच अटक सी जाती हैं। लेकिन ऐसी नौबत पिछले कुछ वर्षों में नहीं आयी थी। जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोशी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कोशी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोशी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोशी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोशी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। शब्द भले भिन्न हों, लेकिन वे भी घोर अंधविश्वासी की तरह कहते हैं- "सब कुछ कोशी पर है। हम कुछ नहीं कह सकते।' कोई संदेह नहीं कि कोशी और अभियंताओं का यह द्वंद्व आगे नये-नये गुल खिलाते रहेंगे। पटरी टूटे या तटबंध, अभियंता मालामाल होंगे। कहर तो हमेशा आम लोगों पर ही बरपेगा।
डुमरी पुल के बेकाम होने के बाद से सहरसा, खगड़िया, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया जिलों के करीब 30-35 लाख लोगों को बाहर ले जाने का एक मात्र रास्ता सहरसा-मानसी रेल-लाइन है। यह एक लूप लाइन है, जिसकी उपेक्षा की अपनी अलग कहानी है। एक बार फिर इस लाइन पर कोशी मैया का कोप टूटा है। कोई छह गाड़ियां रद्द की जा चुकी हैं और अगर मैया नहीं मानी तो एक-दो दिनों में ही पटरी पर गाड़ी नहीं नदी की धारा चलेगी। मिली जानकारी के अनुसार, कोपरिया और धमारा स्टेशन के बीच फनगो हॉल्ट के समीप नदी की एक धारा राह भटक गयी है। वह अपने निर्धारित रास्ते से बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्ट के कारण निर्धारित चैनल में शायद कोई बड़ा डेल्टा बन गया है, जो धारा को पार्श्व की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। लेकिन पार्श्व में रेलवे लाइन अवरोधक बन रही है। इसलिए नदी इसे जोर-जोर से खुरच रही है। आलम यह है कि करीब 50 मीटर की लंबाई में नदी और पटरी के बीच मीटर-दो मीटर का फासला ही बचा है। रेलवे के इंजीनियर बोल्डर और क्रेटर के जरिये इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए भारी संख्या में मजदूर लगाये गये हैं। बावजूद इसके इंजीनियर साहेब लोग यह कहने में असक्षम हैं कि वे पटरी को बचा पायेंगे या नहीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छह सवारी गाड़ियों का परिचालन रद्द किया जा चुका है। इनमें सहरसा-मधेपुरा (55555/56), सहरसा-मानसी (55569/70) और सहरसा-समस्तीपुर सवारी गाड़ियां शामिल हैं। जनसेवा एक्सप्रेस, हाटे बजारे एक्सप्रेस, कोशी एक्सप्रेस तथा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन तो हो रहा है, लेकिन ये गाड़ियां तय समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं। अब जबकि रेलवे और राज्य सरकार के विशेषज्ञ इंजीनियर आगामी स्थिति को लेकर अनिश्चित हैं, तो मैंने अपने कोशी विशेषज्ञों से जानना चाहा कि आगे क्या संभावना बन सकती है। लगभग सभी ने कहा कि अगर चार-पांच दिनों तक पानी के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी या घटोतरी नहीं हुई तो संभव है कि पटरी बच जाये। पानी अगर तेजी से कम या ज्यादा हुआ, तो बोल्डर और क्रेटर के पहाड़ भी रेल लाइन को नहीं बचा पायेंगे। पानी का लेवल गिरेगा तो नदी को मुख्य धारा में बने डेल्टा को पार करने में भारी दिक्कत होगी, लेकिन उसकी बहाव-शक्ति में इजाफा होगा। परिणामस्वरूप पटरी की ओर बहने का प्रयास कर रही धारा और जोर से कटाव करने लगेगी। अगर लंबे समय तक स्तर बरकरार रहा, तो संभव है कि नदी डेल्टा को तोड़कर मुख्य धारा में बहने लगे और पटरी को बख्श दे। समस्तीपुर मंडल कार्यालय के अनुसार, कटाव रोकने के लिए 109 बैगन बोल्डर उझला जा चुका है। 500 मजदूर दिन-रात कटाव निरोधक काम में लगे हैं। अभियंताओं की 15 टोली लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले ही सहरसा-मानसी के बीच पटरी का अपग्रेडेशन हुआ था। पुरानी छोटी लाइन से अलग हटकर बड़ी लाइन के लिए पुल बनाये गये थे। उस समय भी गैर-सरकारी नदी विशेषज्ञों ने पटरी और नदी के अलाइनमेंट को लेकर सवाल खड़े किये थे। लेकिन उनकी बातें नहीं सुनी गयीं। यही कारण है कि हर साल बरसात के मौसम में मानसी से लेकर सिमरी बख्तियारपुर तक भारी जल-जमाव होता है। कोशी और बागमती की विभिन्न धाराएं पटरी और पुलों की इस "रामसेतु' के बीच अटक सी जाती हैं। लेकिन ऐसी नौबत पिछले कुछ वर्षों में नहीं आयी थी। जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोशी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कोशी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोशी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोशी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोशी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। शब्द भले भिन्न हों, लेकिन वे भी घोर अंधविश्वासी की तरह कहते हैं- "सब कुछ कोशी पर है। हम कुछ नहीं कह सकते।' कोई संदेह नहीं कि कोशी और अभियंताओं का यह द्वंद्व आगे नये-नये गुल खिलाते रहेंगे। पटरी टूटे या तटबंध, अभियंता मालामाल होंगे। कहर तो हमेशा आम लोगों पर ही बरपेगा।
गुरुवार, 12 जुलाई 2012
सूअर बनकर खुश हूं, मत मारो (एक लघु कथा)
उस व्यक्ति को अचानक अपने अगले जन्म का दिवज्ञान हुआ। जब वह बूढ़ा हो चला और मौत की घड़ी नजदीक आयी, तो वह अचानक बहुत परेशान हो उठा। जोर-जोर से विलाप करने लगा। पिता को तड़पते देख बेटों को चिंता हुई। वे अस्पताल जाने की तैयारी करने लगे। लेकिन बूढ़े ने मना कर दिया। बोला, मुझे कोई कष्ट नहीं है। बेटों ने पूछा, तो आप तड़प क्यों रहे हैं पिता जी ? तब बूढ़े ने पूरी कहानी विस्तार से सुनाई। कहा, बेटा मैं किसी व्याधि के दर्द से नहीं रो रहा हूं, बल्कि अगले जन्म की तस्वीर देख कर मुझे मरने की इच्छा नहीं होती। बेटों ने पूछा, अगले जन्म की ऐसी कौन बात है कि उसे लेकर आप अभी से खौफ खा रहे हैं ? बूढ़े ने कहा, बेटे, मैं देख रहा हूं कि मेरा अगला जन्म एक सूअर के वंश में होगा। मैं सूअर बनकर धरती पर आना नहीं चाहता, लेकिन इसे टाल भी नहीं सकता। पिता की बात सुन सभी बेटे गहरी चिंता में डूब गये। लंबे समय तक खामोशी पसरी रही। तब बूढ़े ने कहा, मैंने उपाय खोज लिया है। मैं तुम लोगों को उस सूअर मालिक का नाम और पता बताता हूं, जिसकी पालतू सूअरनी की कोख से ठीक साल भर बाद आज के ही दिन मेरा जन्म होगा। तुम लोग कुछ समय बाद वहां पहुंच जाना और सूअरपालक से मुझे खरीदकर मार डालना। बेटे ने कहा, आप चिंता नहीं करें पिताजी, हम ऐसा ही करेंगे।
कुछ दिन बाद बूढ़े ने प्राण त्याग दिये। जल्द ही वह दिन भी आ गया। गांव से दस मील दूर एक सूअरपालक के यहां बूढ़े का पुनर्जन्म हुआ। ठीक एक महीने बाद तीनों बेटे सूअरपालक के पास पहुंचे। पूछा कि कुछ दिन पहले आपकी सूअरनी ने जो बच्चा जना है, वह मुझे दे दीजिए। बदले में आप जो राशि चाहें, मांग ले। सूअरपालक खुश हुआ और उसने मुंहमांगी कीमत पर सूअर के बच्चे बेच दिये। जैसे ही सूअर के बच्चे को लेकर वे लोग एक सुनसान जगह पर पहुंचे और उसे मारने की कोशिश की, सूअर का बच्चा जोर-जोर से रोने लगा। प्राण बख्शने की गुहार करने लगा। बेटे को अचरज हुआ, कहा- आपने ही तो कहा था पिता जी कि मुझे मार देना। सूअर ने जवाब दिया- मैं गलत था। अब मेरा मन इस जीवन में ही रम गया है। मुझे साथी सूअरों के साथ गंदे कीचड़ों में नहाना, मल खाना, गंदगी में घूमना अच्छा लगने लगा है। मुझे बख्श दो, मैं मरना नहीं चाहता !!! तीनों बेटे ने सिर पीट लिया और वापस लौट गये।
कुछ दिन बाद बूढ़े ने प्राण त्याग दिये। जल्द ही वह दिन भी आ गया। गांव से दस मील दूर एक सूअरपालक के यहां बूढ़े का पुनर्जन्म हुआ। ठीक एक महीने बाद तीनों बेटे सूअरपालक के पास पहुंचे। पूछा कि कुछ दिन पहले आपकी सूअरनी ने जो बच्चा जना है, वह मुझे दे दीजिए। बदले में आप जो राशि चाहें, मांग ले। सूअरपालक खुश हुआ और उसने मुंहमांगी कीमत पर सूअर के बच्चे बेच दिये। जैसे ही सूअर के बच्चे को लेकर वे लोग एक सुनसान जगह पर पहुंचे और उसे मारने की कोशिश की, सूअर का बच्चा जोर-जोर से रोने लगा। प्राण बख्शने की गुहार करने लगा। बेटे को अचरज हुआ, कहा- आपने ही तो कहा था पिता जी कि मुझे मार देना। सूअर ने जवाब दिया- मैं गलत था। अब मेरा मन इस जीवन में ही रम गया है। मुझे साथी सूअरों के साथ गंदे कीचड़ों में नहाना, मल खाना, गंदगी में घूमना अच्छा लगने लगा है। मुझे बख्श दो, मैं मरना नहीं चाहता !!! तीनों बेटे ने सिर पीट लिया और वापस लौट गये।
बुधवार, 4 जुलाई 2012
एक लोकप्रिय सरकार की नोज डाइविंग
ज्ञानी अक्सर कहते हैं- अति आत्मविश्वास आत्मघाती होता है। लेकिन विधि का विधान यह कि अप्रत्याशित सफलता आदमी को अति आत्मविश्वासी बना ही देती है। इससे बचना बहुत कठिन होता है। अति विश्वास एक संक्रामक रोग की तरह है, जो पहले इंसान को अहंकारी और बाद में लापरवाह बनाकर निष्क्रिय कर देता है। जमीन पांव के नीचे से खिसक जाती है, लेकिन आत्म-श्लाधा के नशा में चूर व्यक्ति को कुछ दिखाई नहीं देता। शुभचिंतकों की सलाह उन्हें बेवकूफी और आलोचना दुस्साहस लगती है। जी हां, मैं बात बिहार की नीतीश सरकार का कर रहा हूं। यह सरकार तेजी से अलोकप्रिय हो रही है, लेकिन सरकार के मुखिया और सत्तारुढ़ दलों के नेताओं को शायद इसका कोई इल्म नहीं है। हाल के दिनों में मैंने मध्य बिहार और उत्तर बिहार के कई गांवों का दौरा किया है। मुझे माहौल बदले-बदले से लगे।
महज डेढ़-दो साल पहले तक गांवों में नीतीश और उनकी सरकार का गुणगान होता था। क्या किसान, क्या मजदूर ! शिक्षित से लेकर अशिक्षितों तक, लगभग हर जाति-समुदाय में नीतीश के समर्थक मिल जाते थे। लेकिन अब नीतीश-समर्थक आसानी से नहीं मिलते। कुछ समय पहले तक नीतीश और उनकी सरकार की चर्चा लोगों के चेहरे पर सकारात्मक भाव पैदा कर देती थी, लेकिन अब स्थिति पलट चुकी है। अब लोगों के चेहरे शिकायती हो चले हैं। मुखिया, सरपंच, बिचौलिया, कर्मचारी, अधिकारी को छोड़ दें, तो सरकार की तारीफ के शब्द सुनने के लिए आपके कान तरस जायेंगे।
सवाल उठता है कि लोकप्रियता के सातवें आसमान पर विराजमान एक सरकार, महज एक-डेढ़ साल में इतने नीचे क्यों आ गयी है ? विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखें, तो इसकी कोई एक वजह नहीं है। दरअसल, जिन कामों के बदौतल इस सरकार ने लोगों के दिलों में जगह बनायी थी, अब उसकी रिवर्स करेंट उठने लगी है। मजबूत कानून-व्यवस्था, इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन अब कानून-व्यवस्था की स्थिति तेजी से लचर हो रही है। आलम यह है कि उत्तर बिहार के गांवों में लगभग तीन दशकों के बाद एक बार फिर लोग डकैतों के आतंक के साये में रतजग्गा कर रहे हैं। कोशी अंचल में हाल के महीनों में डकैती की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन पुलिस इसे रोकने में नाकामयाब है। सुपौल, अररिया, मधेपुरा जिलों में तो जिला परिषद और प्रखंड समिति के नेताओं तक के नाम डकैतों के संरक्षक के रूप में सामने आये हैं। जिस भ्रष्टाचार के टॉनिक के बल पर सरकार ने ग्रामीण इलाकों में खूब पैसे खर्च किये और कुछ काम कराने में सफलता हासिल की थी, वही भ्रष्टाचार अब सरकार की छवि को नेस्तनाबूद कर रही है। सरकारी योजनाओं में हो रही लूट जनता को साफ नजर आने लगी है। दफ्तरों में व्याप्त रिश्वतखोरी की संस्कृति इतनी मजबूत हो चली है कि दफ्तर जाने के नाम से आम आदमी के पसीने छूट जाते हैं।
इन सब बातों के इतर सत्तारुढ़ दलों की हालिया राजनीति भी लोगों को हजम नहीं हो रही। राष्ट्रीय राजनीति में पैठ बनाने की महत्वाकांक्षा के कारण जद(यू) ने हाल के दिनों में जो करतब दिखाये हैं, लोगों को उसके मायने समझ में नहीं आ रहे। और जो मायने समझ में आ रहे हैं, उसका "न्याय के साथ विकास'' के नारे से कोई रिश्ता नहीं बनता। इस सब के अलावा आम लोगों की समस्याओं को लेकर सरकार की घटती दिलचस्पी ने भी लोगों का दिल तोड़ा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से प्रदेश भाजपा और जद(यू) के नेताओं ने खुद को जमीनी राजनीति से दूर कर लिया है। दोनों दल के कार्यकर्ता जनता से कटते जा रहे हैं। शुरू-शुरू में प्रशासनिक मशीनरी ने प्रो-पीपुल होने का संकेत दिया था। लेकिन अब प्रशासन का रुख पहले की तरह एंटी-पीपुल हो गया है। प्रशासन पर सरकार की पकड़ हाल के दिनों में लगातार ढिली होती गयी है। तीसरी और सबसे बड़ी वजह अधूरी घोषणाएं हैं। गौरतलब है कि बीते वर्षों में नीतीश सरकार ने प्रदेश में रोजगार, विकास आदि की घोषणाओं की बरसात कर दी थी। इसके कारण आम आदमी की अपेक्षा काफी बढ़ गयी थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहे हैं, लोग खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि सरकार की अधिकांश घोषणाएं कागज पर ही दम तोड़ रही हैं। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि सत्ताधारी दल के नेता इन सबसे अनजान है। जनता ने इस सरकार को एक मजबूत राजनीतिक समीकरण दे रखा है। लेकिन राज्य के नेता किसी तीसरे समीकरण की खोज में मशगूल है। जनता को ऐसी अनावश्यक कसरतों के मायने भी समझ में नहीं आ रहे हैं। दिल्ली के लिए दुबले होते जा रहे नीतीश को शायद मालूम नहीं कि यहां पटना में ही उनकी जमीन धीरे-धीरे खिसक रही है।
मंगलवार, 3 जुलाई 2012
दर्द का अपरूप : एक कोशी, एक बह्मपुत्र
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