फनगो हाल्ट के पास कोशी का कटाव |
दहाये हुए देस का दर्द- 83
डुमरी पुल के बेकाम होने के बाद से सहरसा, खगड़िया, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया जिलों के करीब 30-35 लाख लोगों को बाहर ले जाने का एक मात्र रास्ता सहरसा-मानसी रेल-लाइन है। यह एक लूप लाइन है, जिसकी उपेक्षा की अपनी अलग कहानी है। एक बार फिर इस लाइन पर कोशी मैया का कोप टूटा है। कोई छह गाड़ियां रद्द की जा चुकी हैं और अगर मैया नहीं मानी तो एक-दो दिनों में ही पटरी पर गाड़ी नहीं नदी की धारा चलेगी। मिली जानकारी के अनुसार, कोपरिया और धमारा स्टेशन के बीच फनगो हॉल्ट के समीप नदी की एक धारा राह भटक गयी है। वह अपने निर्धारित रास्ते से बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्ट के कारण निर्धारित चैनल में शायद कोई बड़ा डेल्टा बन गया है, जो धारा को पार्श्व की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। लेकिन पार्श्व में रेलवे लाइन अवरोधक बन रही है। इसलिए नदी इसे जोर-जोर से खुरच रही है। आलम यह है कि करीब 50 मीटर की लंबाई में नदी और पटरी के बीच मीटर-दो मीटर का फासला ही बचा है। रेलवे के इंजीनियर बोल्डर और क्रेटर के जरिये इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए भारी संख्या में मजदूर लगाये गये हैं। बावजूद इसके इंजीनियर साहेब लोग यह कहने में असक्षम हैं कि वे पटरी को बचा पायेंगे या नहीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छह सवारी गाड़ियों का परिचालन रद्द किया जा चुका है। इनमें सहरसा-मधेपुरा (55555/56), सहरसा-मानसी (55569/70) और सहरसा-समस्तीपुर सवारी गाड़ियां शामिल हैं। जनसेवा एक्सप्रेस, हाटे बजारे एक्सप्रेस, कोशी एक्सप्रेस तथा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन तो हो रहा है, लेकिन ये गाड़ियां तय समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं। अब जबकि रेलवे और राज्य सरकार के विशेषज्ञ इंजीनियर आगामी स्थिति को लेकर अनिश्चित हैं, तो मैंने अपने कोशी विशेषज्ञों से जानना चाहा कि आगे क्या संभावना बन सकती है। लगभग सभी ने कहा कि अगर चार-पांच दिनों तक पानी के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी या घटोतरी नहीं हुई तो संभव है कि पटरी बच जाये। पानी अगर तेजी से कम या ज्यादा हुआ, तो बोल्डर और क्रेटर के पहाड़ भी रेल लाइन को नहीं बचा पायेंगे। पानी का लेवल गिरेगा तो नदी को मुख्य धारा में बने डेल्टा को पार करने में भारी दिक्कत होगी, लेकिन उसकी बहाव-शक्ति में इजाफा होगा। परिणामस्वरूप पटरी की ओर बहने का प्रयास कर रही धारा और जोर से कटाव करने लगेगी। अगर लंबे समय तक स्तर बरकरार रहा, तो संभव है कि नदी डेल्टा को तोड़कर मुख्य धारा में बहने लगे और पटरी को बख्श दे। समस्तीपुर मंडल कार्यालय के अनुसार, कटाव रोकने के लिए 109 बैगन बोल्डर उझला जा चुका है। 500 मजदूर दिन-रात कटाव निरोधक काम में लगे हैं। अभियंताओं की 15 टोली लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले ही सहरसा-मानसी के बीच पटरी का अपग्रेडेशन हुआ था। पुरानी छोटी लाइन से अलग हटकर बड़ी लाइन के लिए पुल बनाये गये थे। उस समय भी गैर-सरकारी नदी विशेषज्ञों ने पटरी और नदी के अलाइनमेंट को लेकर सवाल खड़े किये थे। लेकिन उनकी बातें नहीं सुनी गयीं। यही कारण है कि हर साल बरसात के मौसम में मानसी से लेकर सिमरी बख्तियारपुर तक भारी जल-जमाव होता है। कोशी और बागमती की विभिन्न धाराएं पटरी और पुलों की इस "रामसेतु' के बीच अटक सी जाती हैं। लेकिन ऐसी नौबत पिछले कुछ वर्षों में नहीं आयी थी। जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोशी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कोशी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोशी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोशी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोशी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। शब्द भले भिन्न हों, लेकिन वे भी घोर अंधविश्वासी की तरह कहते हैं- "सब कुछ कोशी पर है। हम कुछ नहीं कह सकते।' कोई संदेह नहीं कि कोशी और अभियंताओं का यह द्वंद्व आगे नये-नये गुल खिलाते रहेंगे। पटरी टूटे या तटबंध, अभियंता मालामाल होंगे। कहर तो हमेशा आम लोगों पर ही बरपेगा।
डुमरी पुल के बेकाम होने के बाद से सहरसा, खगड़िया, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया जिलों के करीब 30-35 लाख लोगों को बाहर ले जाने का एक मात्र रास्ता सहरसा-मानसी रेल-लाइन है। यह एक लूप लाइन है, जिसकी उपेक्षा की अपनी अलग कहानी है। एक बार फिर इस लाइन पर कोशी मैया का कोप टूटा है। कोई छह गाड़ियां रद्द की जा चुकी हैं और अगर मैया नहीं मानी तो एक-दो दिनों में ही पटरी पर गाड़ी नहीं नदी की धारा चलेगी। मिली जानकारी के अनुसार, कोपरिया और धमारा स्टेशन के बीच फनगो हॉल्ट के समीप नदी की एक धारा राह भटक गयी है। वह अपने निर्धारित रास्ते से बहने से कतरा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिल्ट के कारण निर्धारित चैनल में शायद कोई बड़ा डेल्टा बन गया है, जो धारा को पार्श्व की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। लेकिन पार्श्व में रेलवे लाइन अवरोधक बन रही है। इसलिए नदी इसे जोर-जोर से खुरच रही है। आलम यह है कि करीब 50 मीटर की लंबाई में नदी और पटरी के बीच मीटर-दो मीटर का फासला ही बचा है। रेलवे के इंजीनियर बोल्डर और क्रेटर के जरिये इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए भारी संख्या में मजदूर लगाये गये हैं। बावजूद इसके इंजीनियर साहेब लोग यह कहने में असक्षम हैं कि वे पटरी को बचा पायेंगे या नहीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छह सवारी गाड़ियों का परिचालन रद्द किया जा चुका है। इनमें सहरसा-मधेपुरा (55555/56), सहरसा-मानसी (55569/70) और सहरसा-समस्तीपुर सवारी गाड़ियां शामिल हैं। जनसेवा एक्सप्रेस, हाटे बजारे एक्सप्रेस, कोशी एक्सप्रेस तथा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन तो हो रहा है, लेकिन ये गाड़ियां तय समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं। अब जबकि रेलवे और राज्य सरकार के विशेषज्ञ इंजीनियर आगामी स्थिति को लेकर अनिश्चित हैं, तो मैंने अपने कोशी विशेषज्ञों से जानना चाहा कि आगे क्या संभावना बन सकती है। लगभग सभी ने कहा कि अगर चार-पांच दिनों तक पानी के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी या घटोतरी नहीं हुई तो संभव है कि पटरी बच जाये। पानी अगर तेजी से कम या ज्यादा हुआ, तो बोल्डर और क्रेटर के पहाड़ भी रेल लाइन को नहीं बचा पायेंगे। पानी का लेवल गिरेगा तो नदी को मुख्य धारा में बने डेल्टा को पार करने में भारी दिक्कत होगी, लेकिन उसकी बहाव-शक्ति में इजाफा होगा। परिणामस्वरूप पटरी की ओर बहने का प्रयास कर रही धारा और जोर से कटाव करने लगेगी। अगर लंबे समय तक स्तर बरकरार रहा, तो संभव है कि नदी डेल्टा को तोड़कर मुख्य धारा में बहने लगे और पटरी को बख्श दे। समस्तीपुर मंडल कार्यालय के अनुसार, कटाव रोकने के लिए 109 बैगन बोल्डर उझला जा चुका है। 500 मजदूर दिन-रात कटाव निरोधक काम में लगे हैं। अभियंताओं की 15 टोली लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले ही सहरसा-मानसी के बीच पटरी का अपग्रेडेशन हुआ था। पुरानी छोटी लाइन से अलग हटकर बड़ी लाइन के लिए पुल बनाये गये थे। उस समय भी गैर-सरकारी नदी विशेषज्ञों ने पटरी और नदी के अलाइनमेंट को लेकर सवाल खड़े किये थे। लेकिन उनकी बातें नहीं सुनी गयीं। यही कारण है कि हर साल बरसात के मौसम में मानसी से लेकर सिमरी बख्तियारपुर तक भारी जल-जमाव होता है। कोशी और बागमती की विभिन्न धाराएं पटरी और पुलों की इस "रामसेतु' के बीच अटक सी जाती हैं। लेकिन ऐसी नौबत पिछले कुछ वर्षों में नहीं आयी थी। जब से कुसहा कटाव हुआ है, तब से कोशी की प्रकृति में विचित्र बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कोशी महासेतु के कारण भी इसके प्रवाह डिस्टर्ब हुए हैं, क्योंकि इस पुल के कारण लिंक बांध बनाये गये हैं। कोशी महासेतु के बाद भी दो और पुल कोशी में बन रहे हैं। इसलिए यह कहना अब असंभव हो गया है कि कोशी की मौजूदा प्रकृति क्या है और उसकी मुख्य धारा कहां है। ऐसी परिस्थिति में आम लोगों के अलावा विशेषज्ञ भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। शब्द भले भिन्न हों, लेकिन वे भी घोर अंधविश्वासी की तरह कहते हैं- "सब कुछ कोशी पर है। हम कुछ नहीं कह सकते।' कोई संदेह नहीं कि कोशी और अभियंताओं का यह द्वंद्व आगे नये-नये गुल खिलाते रहेंगे। पटरी टूटे या तटबंध, अभियंता मालामाल होंगे। कहर तो हमेशा आम लोगों पर ही बरपेगा।
5 टिप्पणियां:
मेहनत जरूर काम लायेगी ब्लाग से वर्ड वेरिफिकेशन हटाये परेशानी होती है कमेन्ट करने मे
युनिक ब्ला{ग ----- फेसबुक टाईमलाईन
Shukriya Vinod jee. Main ise hata dunga. apke dwara diya gaya link khul hee nahin Raha hai,kripya apne blog ka link mujhe mail karen-ranjitkoshi1@gmail.com
Comment of Dr. Dinesh Kumar Mishra, famous hydrologist and River Scientist of our time
Thanks Ranjit Ji rfor this interesting story. I was in Saharsa/Supaul
between 12th to 14th and could read the panic on the faces of the
people there. Communication to and from Saharsa is going to be a great
problem as the bridge at Dumri has virtually become inoperational.If
rhe rail line also succumbs to the Kosi, the only route levt would be
via Purnea or via newly done Mahasetu. The bridge near Baluaha ghat
has not created any ripples anywhere and its impact is yet to be felt.
I saw Kosi flowing very close to the Ghat and also near Karu Baba Than
this time and filling of the land depressions within the Kosi
embankments near Pipra Hari and Devan Ban.
I still have a feeling that the railways are more responsible than the
Water Resorces Dept and they will be able to do something. You
remember, Ganga had come very close to NH-31 IN EARLY 1970S BUT THE
CRISIS WAS AVRTED. Hope the same happens this time also.
रणजीत जी २००८ के बाद पूरे कोसी इलाके के भूगोल और मौसम में गजब बदलाव आया है... ये अपने आप में स्वतंत्र अध्ययन का विषय है. जहाँ तक कोसी के परिवहन का मसला है... वह थोडा राजनीतिक भी है... सहरसा जिले को पिछले कुछ साल से लगातार उपेक्षित रखा जा रहा है.. डुमरी के पास परिवहन की समस्या कोई आज की नहीं है.. मगर इसका कोई पक्का समाधान निकलने की कोशिश कभी नहीं की गयी..
रणजीत जी २००८ के बाद पूरे कोसी इलाके के भूगोल और मौसम में गजब बदलाव आया है... ये अपने आप में स्वतंत्र अध्ययन का विषय है.
Bahut mahatwapurn baat kahee hai aapne Pushyamita bhai. nonsensitive Govtt ke daur me in baton par vichar karne wala sarkar ke andar koi nahin hai, Swatantra institute se hee apekcha hai...
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