(4 जनवरी : कुसहा में पायलट चैनल-निर्माण की जद्दोजहद )
(२० अगस्त : कुसहा कटान का भयानक दृश्य )
( 4 जनवरी: नाव हादसा के बाद लाशों की तलाश )
(२० अगस्त : कुसहा कटान का भयानक दृश्य )
( 4 जनवरी: नाव हादसा के बाद लाशों की तलाश )
दहाये हुए देस का दर्द-27
कड़ाके की ठंड से सिकुड़े और कोशी की मार से उजड़े बिहार और नेपाल के 35 लोगों ने कल जल समाधि ले ली। दुर्घटना कुसहा कटान के बिल्कुल नजदीक में घटी । नाव पर 40 लोग सवार थे और अहले सुबह वे नेपाल के श्रीपुर गांव से सुपौल के भंटाबाड़ी बार्डर की ओर आ रहे थे। सभी लोग ग्रामीण थे और दैनिक कार्यों से भंटाबाड़ी की ओर आ रहे थे। दुखद बात यह है कि 40 में से महज पांच लोगों ही बच पाये । देर शाम तक सिर्फ दो लाशें बरामद की जा सकी थी।
उल्लेखनीय है कि उत्तरी बिहार में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ठंड का आलम यह है कि दिन में भी घना कुहासा छाया रहता है और सूर्य का दर्शन दुर्लभ हो गया है । ठंड और कोहरे के कारण लोगों का अपने घर से निकलना भी दूभर हो गया है। लेकिन अगस्त की बाढ़ से बेघर हुए लोगों के पास न तो घर है और न ही खाने-पीने की सामग्री। इसलिए वे अपनी झोपड़ियों में बैठे नहीं रह सकते। चूंकि आवागमन के साधनों और मार्गों को बाढ़ ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है, इसलिए अब लोगों के इधर-उधर आने-जाने एक मात्र साधन नाव रह गया है। लेकिन ये नाव या तो पुराने हैं या फिर कमजोर हैं। इनमें क्षमता से ज्यादा लोग सवार हो जाते हैं, जिसके कारण दुर्घटना की संभावना हमेशा बनी रहती है। बाढ़ के बाद अब तक अकेले सुपौल जिले में छह बड़ी नाव दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। डेढ़ महीना पहले ही सुपौल जिले के प्रतापगंज प्रखंड में एक नाव पलट गयी थी जिसमें 34 लोग मारे गये थे। इससे पहले कुमारखंड प्रखंड में ऐसे ही एक बड़े नाव हादसे में 19 लोग असमय मौत के मुंह में समा गये थे।
अब थोड़ा कुसहा का हाल भी जान लीजिए। वहां पायलट चैनल का निर्माण अभी तक पूरा नहीं हो सका है। जबकि इसे 10 दिसंबर तक ही पूरा कर लिया जाना था। इंजीनियरों का कहना है कि मकर संक्रांति से पहले वह पायलट चैनल बना लेंगे। इस चैनल के द्वारा कोशी को पुरानी धारा में लौटाने की योजना है। इसके बाद क्षतिग्रस्त बांध की मरम्मत का काम शुरू होगा। लेकिन मैंने आज तक कभी इनकी बातों पर भरोसा नहीं किया, जिस दिन कुसहा को बांध लिया जायेगा, उसी दिन मुझे विश्वास होगा।
कुसहा में अब पानी काफी कम हो गया है। अगस्त का कुसहा और जनवरी का कुसहा में काफी फर्क महसूस हो रहा है। मैं जब 20 अगस्त को वहां पहुंचा था, तो चारों ओर जल-ही-जल, प्रलय -ही- प्रलय दिख रहा था। आज जल की मात्रा काफी कम हो गयी है। इसलिए इस पोस्ट में मैं कुसहा की दो तस्वीर रख रहा हूं। पहली तस्वीर 4 जनवरी की है और दूसरी 20 अगस्त की। तीसरी तस्वीर कल की नाव दुर्घटना की है।
कड़ाके की ठंड से सिकुड़े और कोशी की मार से उजड़े बिहार और नेपाल के 35 लोगों ने कल जल समाधि ले ली। दुर्घटना कुसहा कटान के बिल्कुल नजदीक में घटी । नाव पर 40 लोग सवार थे और अहले सुबह वे नेपाल के श्रीपुर गांव से सुपौल के भंटाबाड़ी बार्डर की ओर आ रहे थे। सभी लोग ग्रामीण थे और दैनिक कार्यों से भंटाबाड़ी की ओर आ रहे थे। दुखद बात यह है कि 40 में से महज पांच लोगों ही बच पाये । देर शाम तक सिर्फ दो लाशें बरामद की जा सकी थी।
उल्लेखनीय है कि उत्तरी बिहार में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ठंड का आलम यह है कि दिन में भी घना कुहासा छाया रहता है और सूर्य का दर्शन दुर्लभ हो गया है । ठंड और कोहरे के कारण लोगों का अपने घर से निकलना भी दूभर हो गया है। लेकिन अगस्त की बाढ़ से बेघर हुए लोगों के पास न तो घर है और न ही खाने-पीने की सामग्री। इसलिए वे अपनी झोपड़ियों में बैठे नहीं रह सकते। चूंकि आवागमन के साधनों और मार्गों को बाढ़ ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है, इसलिए अब लोगों के इधर-उधर आने-जाने एक मात्र साधन नाव रह गया है। लेकिन ये नाव या तो पुराने हैं या फिर कमजोर हैं। इनमें क्षमता से ज्यादा लोग सवार हो जाते हैं, जिसके कारण दुर्घटना की संभावना हमेशा बनी रहती है। बाढ़ के बाद अब तक अकेले सुपौल जिले में छह बड़ी नाव दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। डेढ़ महीना पहले ही सुपौल जिले के प्रतापगंज प्रखंड में एक नाव पलट गयी थी जिसमें 34 लोग मारे गये थे। इससे पहले कुमारखंड प्रखंड में ऐसे ही एक बड़े नाव हादसे में 19 लोग असमय मौत के मुंह में समा गये थे।
अब थोड़ा कुसहा का हाल भी जान लीजिए। वहां पायलट चैनल का निर्माण अभी तक पूरा नहीं हो सका है। जबकि इसे 10 दिसंबर तक ही पूरा कर लिया जाना था। इंजीनियरों का कहना है कि मकर संक्रांति से पहले वह पायलट चैनल बना लेंगे। इस चैनल के द्वारा कोशी को पुरानी धारा में लौटाने की योजना है। इसके बाद क्षतिग्रस्त बांध की मरम्मत का काम शुरू होगा। लेकिन मैंने आज तक कभी इनकी बातों पर भरोसा नहीं किया, जिस दिन कुसहा को बांध लिया जायेगा, उसी दिन मुझे विश्वास होगा।
कुसहा में अब पानी काफी कम हो गया है। अगस्त का कुसहा और जनवरी का कुसहा में काफी फर्क महसूस हो रहा है। मैं जब 20 अगस्त को वहां पहुंचा था, तो चारों ओर जल-ही-जल, प्रलय -ही- प्रलय दिख रहा था। आज जल की मात्रा काफी कम हो गयी है। इसलिए इस पोस्ट में मैं कुसहा की दो तस्वीर रख रहा हूं। पहली तस्वीर 4 जनवरी की है और दूसरी 20 अगस्त की। तीसरी तस्वीर कल की नाव दुर्घटना की है।
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