दहाये हुए देश का दर्द -28
झांझर मन में वनझर नाचे
सारा गांव मछिंदर लागे
जहां बंधाती थी बूढ़ी गैया
अब नाव वहां सरकारी लागे
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
सारा गांव मछिंदर लागे
जहां बंधाती थी बूढ़ी गैया
अब नाव वहां सरकारी लागे
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
आश्विन बीते, कार्तिक बीते
हाड़ तोड़ कर पूस निकल गये
माघ की रात बिजुरिया चमके
गहंवर घर में गिद्ध धमके
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
हाड़ तोड़ कर पूस निकल गये
माघ की रात बिजुरिया चमके
गहंवर घर में गिद्ध धमके
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
सारे गाछ के पात बिछुड़ गये
पीपल-बर्गद बांस बन गये
सभी दूब को रेत निगल गये
धनहर खेत धधरता लागे
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
पीपल-बर्गद बांस बन गये
सभी दूब को रेत निगल गये
धनहर खेत धधरता लागे
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
मंदिर बह गये मस्जिद बह गये
घंटी बह गये कंठी बह गये
मौलवी के बधना बह गये
दारू संग-संग चखना बह गये
बीच दोपहरिया बतहिया नाचे
हाय माय कोशिकी, दुहाइ माय कोशिकी
घंटी बह गये कंठी बह गये
मौलवी के बधना बह गये
दारू संग-संग चखना बह गये
बीच दोपहरिया बतहिया नाचे
हाय माय कोशिकी, दुहाइ माय कोशिकी
बीडीओ-मुखिया ढोल बजाये
विधायक-मंत्री जोड़ लगाये
हर दिन डीएम पटना भागे
फन गेहुमन का फैलता जाये
हाय माय कोशिकी, दुहाई माय कोशिकी
(शब्दार्थ ः झांझर- विदीर्ण, वनझर- जंगल की सूखी डाली और पत्ती, मछिंदर- मरी हुई मछली की महक वाली जगह, हाड़- हड्डी, गाछ- पेड़, धधरता- आग की लपट से घिरा हुआ, धनहर- धान की अच्छी उपज वाली जमीन, कंठी- निरामिष लोगों द्वारा बांधे जाने वाला गले की हार, बतहिया- झक्खी महिला)
2 टिप्पणियां:
रंजीत जी
बेजोड़ चित्रण है दहाये हुए देश का आपकी कविता में.
गजब की संगीतात्मकता है
और अद्भुत बिम्ब संयोजन
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का मौका मिला .कमाल की रचनात्मकता समाहित किए है आपकी रचनाएँ.
एक अनुरोध
विषय वैविध्य अपेछित है.
बिहार के ताजा हालत पर भी नजर फेरें.
सादर
भाई कौशल जी, तारीफ के लिए आभार। मैं आपके सुझाव पर अमल करने की पूरी कोशिश करूंगा।
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