दो सप्ताह से मुझे इस कार्ड का इंतजार था। पिछले पोस्ट में मैंने इसकी चर्चा भी की थीकि यह देखना दिलचस्प होगा कि पिनाकी राय वर्ष 2008 के राष्ट्रीय हलचलों को अपने ग्रीटिंग कार्ड पर कैसे उकेरते हैं। मुझे उन्होंने दो दिन पहले यह कार्ड भेजा था, लेकिन अति व्यस्तता के कारण इसे मैं आज पोस्ट कर पा रहा हूं। इस कार्ड के बारे में ऐसे तो बहुत लिखा जा सकता है ; शब्दों, चित्रों और रेखाओं के माध्यम से पिनाकी ने इस छोटे-से कार्ड पर देश की डायरी को उतार दिया है। इसके हर शब्द, हर चित्र और रेखांकन बड़े विषयों के दरवाजे खोलते हैं, जिस पर लंबा बहस-विमर्श किया जा सकता है। लेकिन अगर संक्षेप में कहूं , तो मुझे लगता है कि 2008 के आखिरी दिनों में और बाद में भी, जब पत्र-पत्रिकाएं एवं टेलीविजन न्यूज चैनल पूरे वर्ष की प्रमुख घटनाओं को एकत्रित करने की भरपूर कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई न कोई कमी रह ही जाती थी; तब ऐसे कार्ड एवं पेटिंग्स उन्हीं कमियों को पूरे करते हैं। क्योंकि यहां घटनाओं का निर्जीव वर्णन नहीं, बल्कि समय के सतत चलायमान पहिये का जीवंत चित्रांकण है। अपने देश, समाज, सरोकार; आपदा, विपदा और उपलब्धि के साथ । यह शब्दो-चित्रों का एक खामोश अभिव्यक्ति जैसी है। ठीक वैसे ही जैसे अगर हम पूरी बात नहीं कह पाते हैं, तो खामोश हो जाते हैं और अक्सर ऐसी खामोशी बहुत कुछ कह जाती है। चेहरे के एक साधारण भाव में पूरी कहानी बयां हो जाती है। अभी मुझे इतना ही कहना था। अब आगे कार्ड है और आप हैं, बस ...
शनिवार, 3 जनवरी 2009
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